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हमारा समय

11 जून 2016

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हमारा समय

 

हम जीस रास्ते चले

जरुरी नहीं की फूल ही बीछे हो,

कांटे ना सही लेकिन रास्ता कठिन जरुर हो सकता है.

हमें तो चलना है अपनी धुन पर...

और हम चले

अंजान रास्तों पर

धूल भरे रास्तों से शुरु हुआ था सफ़र हमारा

आज सडको पर चलते है पक्की सडको पर

पर हमारें अंदर बसा इन्सान सो चूका है

बहुत गहरी निंद...

पत्थरों से कभी-कभार हमारा अभिवादन होता था

उस वक्त जो हमने सोचा था

‘आगे जाके हम इस पत्थर को फूल बना देगे’

लेकिन सपना जैसे टूटता है आँख खुल जाने पर

विचार ठंड आहें भरे

सांसों से निकल जाती है ...

कभी पानी के लिए तड़प उठते थे

जुल्लू भर के पीना पड़ा

सौंदर्य से नहीँ, मज़बूरी से

उसी वक्त हमने आगे निकलने का मन बनाया था

पर आज पहूंचे कहाँ ... ?

लगता है

हम भी कोई हिस्सा है उन्ही में से

जिसे वह लोग पहचान नहीं पाए थे

गले मिला लिया, घर पे बुला लिया ...

हमने यह ना जाना की हम वही है जहाँ से हम चले थे

उससे भी बदतर स्थिति मैं है सायद.

भीतर से सुना पड़ा कोना सुबक रहा है

दीवारे हँस रही है

आसमान के नीचे, हम भौंकते से रहते है

हमारा समय

मौक़ा दे के, मौक़ा छीन लेता है,

अब जब कोई धूल उडाता चलता है कोई

पैर थम से जाते है ... आँखे धुंधला सि जाती है ...


हरेश परमार 

 

डॉ उमेश पुरी 'ज्ञानेश्‍वर'

डॉ उमेश पुरी 'ज्ञानेश्‍वर'

जीवन संघर्ष का नाम है राह के रोड़े हटाने के लिए संघर्ष तो हम सब की नियति है। हारना कभी नहीं चाहिए क्योंकि हार के बाद ही जीत है।

14 जून 2016

वल्लभ वाणवी

वल्लभ वाणवी

sab kuch dhundhlaa saa .bilkul jindagi ki hakikato ki taraah, sab kuch saamne hote huye , aankhe kholo to koyi saamne nahi.....agar h to kuch dikhtaa nahi. .......aadhunik rachnaao ki kaxaa me saamil kar sakte h is kruti ko........gahraayi ko samj ne ke liye anubhv aur dimaag - dono kaa eksaath honaa jaruri h......nahi to saamne sunyaavkaas.......

11 जून 2016

11 जून 2016

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परिवार वाद के विरोध में परिवारवाद

6 जून 2016
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'हमने कई लोगों की मिठाई रोक दी और ऐसा करनेमें मुझे कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा' - महा प्रधान मंत्री कम विदेश मंत्री श्रीश्री मोदी जीRSSएक परिवारहै,जिसे कईपदों पर इस कार्यकाल में परिवार वाद का विरोध करते हुए आसीन किये|अभी अभीकिरण बेदी को गवर्नर बनाया गया | मिठाई तो बंटी पर अपने लोगों के बीच में बंट

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अगर दोबारा कहीं मिले चौराहे परमुबारक मुँह मत मोड़ना, आरक्षण से है, रहेगे, आगे भी बढ़ेगे, हमें मिटाने से हम नहीं मिटेगेजहाँ भी दफ़न होगे, आपके रास्ते पे वटवृक्ष बन ऊग आयेगे ....-हरेश परमार

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तुं ही है अभी मंजर में आ देख बहुजनो के बंजर मेंअभी तो सोया हुआ है,कुम्भकर्ण सी नींद में, तुझे जो करना है कर ले अभी हीजागेगा जब बंजर सारा, तेरा मंजर बदल देगा....वक्त की नजाकत का फायदा लिया है तूनेअपने लोगो को सत्ता में देखलाडला बनवाया है तुझेमोहरा जब उतरेगा,वह कफ़न किसी और का पुकारेगा,वह हाल बस होगा,

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ठण्ड रात थीउनकी चादर फटी हुई थी,चादर कंप कंपा रही थी,कभी इधर-कभी उधर लुढ़क रहीथी.बस सिर्फ चादर फटी हुईथी,गहरी अँधेरी रात थी,ठण्ड उससे भी ज्यादा ढीठथी....रात जितनी लंबी थी, उससेभी ज्यादा लंबी हो रही थीचादर फटी हुई थी...नींद आँखों में होते हुएभी ठंडे तारों को देख रहीथी...

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28 फरवरी 2017
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