रोहित की शहादत, राजनीति करण एवं हम
हरेश परमार
कुछ परिदृश्य ऐसे
होते है जिसे हम देखना नहीं चाहते, हम उनसे आँखे मूंदना चाहते है, फिर भी वह मंजर
हमारी आँखों के सामने आ जाते है | हम लाख कोशिश करें पर फिर भी ऐसे वक्त में हम
उनसे आँख चुराकर भी देख ही लेते है | समर्थन में हो या असमर्थन में पर हमारे सामने
यव यथार्थ आ ही जाता है, हम हमारे ज्ञान के अनुसार उस घटना पर बात करते है या अपनी
राय रखते है, कभी कभी हम उसी घटनाओं में उलझ जाते है | हमारी आँखों के आगे अँधेरा
सा जाता है | जेसिका घटना हुई थी तब अपराधी सामने था और कोई उसे पकड़ नहीं पाया था,
मगर मीडिया ने उस वक्त जिम्मेदारी उठाई और जो दोषी थे उसे सजा मिली, मुझे जहाँ तक
याद है, निर्भया के मामले में भी यही मीडिया ने समाज को सोते हुए पकड़ा, पुलिस के
साथ साझेदारी की एवं लोगों के आंदोलन को आवाज़ दी | आज हमें जरुरत है उच्च शिक्षा
में हो रहे जातिभेद के खिलाफ उठ खड़े होने की | हम मानते है की जब जब दलित का
मुद्दा उठा मीडिया ने उनसे आँख चुराई और हमने मीडिया को खूब भला बुरा कहाँ | रोहित
वेमुला के बारें में भी हम मीडिया को दोष देते है, फिर भी यहाँ जिम्मेदारी बंट
जाती है | रोहित वेमुला के पक्ष में दो तरह के मीडिया हमारे सामने है जातिवादी एवं
संवेदनशील | तो साथ में हमें उन लोगों से भी लड़ना पड रहा है जो सत्ता में है एवं
कट्टर भी है | अपनी बात को राष्ट्रवाद के नाम पर लोगों को भड़काते है एवं देश के
प्रति जवाबदेही कानून के ऊपर उठ कर निभाने लगे है |
हमारे देश में एक
और एकलव्य अंगूठा बिना काटे आत्महत्या करता है और हमारी व्यवस्था देख के भी अनदेखा
करती है | यह आत्महत्या नहीं थी, जातिव्यवस्था के चलते हत्या थी | सजा के प्रावधान
में यह भेद क्यों की जो दोषी सवर्ण या सत्ता पर हो, अमीर हो, शाख हो तो उसे कई तरह
से कई रास्ते मिल जाते है या बना दिए जाते है | जब की, दलित के प्रति कोई
संवेदनशीलता नहीं रहती है एवं उसे सड़क पर बैठा दिया जाता है | अगर यह उच्च शिक्षा
में होता है तो सबसे ज्यादा गंभीर है | उच्च शिक्षा में दलित अपने आप को अकेला
पाता है | कट्टर जातिवाद उन्हें अवशाद में ला देता है | रोहित वेमुला कमजोर नहीं
था पर वह आम दलित शोधार्थी से ज्यादा संवेदनशील था | या उसने अपने आप को अलग एवं
अकेला पा लिया | ऐसी स्थिति दलित शोधार्थी के साथ अक्षर आती है | ऐसी स्थिति में
अगर उन्हें कोई सहारा या संवेदनशीलता मिल जाए तो वह अपने आप को कुछ वक्त ठहर जाता
है | रोहित के साथ कई लोग थे, पर सायद उसने अपने आप को उस वक्त अकेला पाया जब उसके
निष्काशन में उच्च पदों पर आसीन लोग ही इस कार्य पर सम्मिलित पाए गए | जो लोग नियम
एवं कानून बनाते है, जैसे की रेगींग, महिला सेल आदि उसी के माध्यम से विद्यार्थिओं
के प्रति यह ज्यादती होते देख अपने आप को कोई भी अकेला महसूस करेगा | रोहित भी इसी
हताशा के चलते अपने आप को उस द्रोण के हाथ में सौंप दिया | एक तारा जो दलित सितारा
था वह असमय टूट गया |
यह भारत के किसी
भी कोने में होता यह मुद्दा उठाना ही था, इसमें राजनीति से ज्यादा जातिवादी
मानसिकता है | इसी मानसिकता एवं व्यवस्था के भोगी हर वह छात्र ने अपने आपको इस समय
में पाया एवं जात-पात भूल के रोहित के इस हत्या में न्याय के लिए आगे आये | मामला
सीधा सा था, पर राजनीतिक लोगों को बचाने के लिए या राजनीतिक लोग को अपनी सत्ता
जाते हुए देख के इसी मुद्दे की राजनीति ही कर दी | रोहित तो क्रांति की मशाल जला
के चला गया, मशाल की जिम्मेदारी अब हर व्यक्ति अपनी तरफ से निभा रहा है | लोगों ने
जैसे विवेक निर्भया एवं जेसिका के प्रति रखा था आज वह विवेक नहीं दिखाई देता, जो
सरकार के सामने बोलता है वह देश विरोधी कहलाता है | यह ऐसी व्यवस्था है, जिसमें
न्याय मांगने वाला ही गुनेगार गिना जा रहा है, पुलिस की लाठियों में जान आ गई है,
सत्ता पर बसी जुबाने तलवार की तरह चलने लगी है एवं जो अपने आपको विकास के दावेदार
मानते है वह विदेशों के प्रति संवेदनशीलता दिखाते हुए अपने ही लोगों को भूल जाते
है, जब कोई विरोध करता है तो उसे सजा दी जाती है | न्याय की गुहार के लिए सड़के जाम
हो गई, स्टेज भर गए, मीडिया टीआरपी में बहुत आगे जा चुकी है एवं जैसे नशा कुछ हावी
हो रहा है | एक माँ न्याय के लिए संघर्ष कर रही है और उसे अपनी बात कहने के लिए
उसी सरकार से इजाज़त लेनी पड़ती है बिना इजाज़त के वह मोमबत्ती से श्रद्धांजली भी
नहीं दे सकती | यह हमारी व्यवस्था है, जो शांतिप्रिय है, अहिंसक है उन पर हिंसा हो
और जो हिंसक हो जाये पर वह सत्ता के प्रति इमानदार हो तो उसे कई छूट मिल जाती है |
हम कहते है की आज
२१वीं सदी में कहाँ जातिवाद है | जाति अब नहीं है | जाति के आधार पर आरक्षण ख़त्म
करों | योग्यता अहम् होनी चाहिए |
यहाँ पर जो योग्य
है उसे ही तो एकलव्य बनना पड़ता है | एकलव्य से रोहित तक जातिवाद ने अपना रूप बदला
है | आज जाति व्यवहार में कम, मानसिकता में जहर की तरह फैली हुई है | हमें स्वस्थ
एवं वैज्ञानिक समाज का निर्माण करना था पर आज कहाँ जाता है की सुविधाएँ विदेशी हो,
आधुनिक हो पर आत्मा-विचार यही के अपने ही हो | हमने अपने आपको ऐसी व्यवस्था में
ढाल लिया है जहाँ पर हम जीते कुछ और है व्यवहार में कुछ और करते है एवं सोचते कुछ
और ही है |
हम ऐसी व्यवस्था
में जी रहे है जहाँ पर पढ़लिखना भर काफी नहीं है, जो शिक्षा है वह नाकाफी है, हमें
उनसे आगे बढ़ना है, हम किसी के गुलाम नहीं है न दैहिक ना ही मानसिक | हमें इस
स्वतंत्रता की जरुरत है आज की हम स्वस्थ एवं वैज्ञानिक विचार एवं मानसिकता को
परिभाषित करें एवं देश के प्रति अपनी जवाबदेही सुनिश्चित करें |
जय भारत
डॉ. हरेश परमार