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रोहित की शहादत, राजनीति करण एवं हम

30 जून 2016

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रोहित की शहादत, राजनीति करण एवं हम

हरेश परमार

 

कुछ परिदृश्य ऐसे होते है जिसे हम देखना नहीं चाहते, हम उनसे आँखे मूंदना चाहते है, फिर भी वह मंजर हमारी आँखों के सामने आ जाते है | हम लाख कोशिश करें पर फिर भी ऐसे वक्त में हम उनसे आँख चुराकर भी देख ही लेते है | समर्थन में हो या असमर्थन में पर हमारे सामने यव यथार्थ आ ही जाता है, हम हमारे ज्ञान के अनुसार उस घटना पर बात करते है या अपनी राय रखते है, कभी कभी हम उसी घटनाओं में उलझ जाते है | हमारी आँखों के आगे अँधेरा सा जाता है | जेसिका घटना हुई थी तब अपराधी सामने था और कोई उसे पकड़ नहीं पाया था, मगर मीडिया ने उस वक्त जिम्मेदारी उठाई और जो दोषी थे उसे सजा मिली, मुझे जहाँ तक याद है, निर्भया के मामले में भी यही मीडिया ने समाज को सोते हुए पकड़ा, पुलिस के साथ साझेदारी की एवं लोगों के आंदोलन को आवाज़ दी | आज हमें जरुरत है उच्च शिक्षा में हो रहे जातिभेद के खिलाफ उठ खड़े होने की | हम मानते है की जब जब दलित का मुद्दा उठा मीडिया ने उनसे आँख चुराई और हमने मीडिया को खूब भला बुरा कहाँ | रोहित वेमुला के बारें में भी हम मीडिया को दोष देते है, फिर भी यहाँ जिम्मेदारी बंट जाती है | रोहित वेमुला के पक्ष में दो तरह के मीडिया हमारे सामने है जातिवादी एवं संवेदनशील | तो साथ में हमें उन लोगों से भी लड़ना पड रहा है जो सत्ता में है एवं कट्टर भी है | अपनी बात को राष्ट्रवाद के नाम पर लोगों को भड़काते है एवं देश के प्रति जवाबदेही कानून के ऊपर उठ कर निभाने लगे है |


हमारे देश में एक और एकलव्य अंगूठा बिना काटे आत्महत्या करता है और हमारी व्यवस्था देख के भी अनदेखा करती है | यह आत्महत्या नहीं थी, जातिव्यवस्था के चलते हत्या थी | सजा के प्रावधान में यह भेद क्यों की जो दोषी सवर्ण या सत्ता पर हो, अमीर हो, शाख हो तो उसे कई तरह से कई रास्ते मिल जाते है या बना दिए जाते है | जब की, दलित के प्रति कोई संवेदनशीलता नहीं रहती है एवं उसे सड़क पर बैठा दिया जाता है | अगर यह उच्च शिक्षा में होता है तो सबसे ज्यादा गंभीर है | उच्च शिक्षा में दलित अपने आप को अकेला पाता है | कट्टर जातिवाद उन्हें अवशाद में ला देता है | रोहित वेमुला कमजोर नहीं था पर वह आम दलित शोधार्थी से ज्यादा संवेदनशील था | या उसने अपने आप को अलग एवं अकेला पा लिया | ऐसी स्थिति दलित शोधार्थी के साथ अक्षर आती है | ऐसी स्थिति में अगर उन्हें कोई सहारा या संवेदनशीलता मिल जाए तो वह अपने आप को कुछ वक्त ठहर जाता है | रोहित के साथ कई लोग थे, पर सायद उसने अपने आप को उस वक्त अकेला पाया जब उसके निष्काशन में उच्च पदों पर आसीन लोग ही इस कार्य पर सम्मिलित पाए गए | जो लोग नियम एवं कानून बनाते है, जैसे की रेगींग, महिला सेल आदि उसी के माध्यम से विद्यार्थिओं के प्रति यह ज्यादती होते देख अपने आप को कोई भी अकेला महसूस करेगा | रोहित भी इसी हताशा के चलते अपने आप को उस द्रोण के हाथ में सौंप दिया | एक तारा जो दलित सितारा था वह असमय टूट गया |


यह भारत के किसी भी कोने में होता यह मुद्दा उठाना ही था, इसमें राजनीति से ज्यादा जातिवादी मानसिकता है | इसी मानसिकता एवं व्यवस्था के भोगी हर वह छात्र ने अपने आपको इस समय में पाया एवं जात-पात भूल के रोहित के इस हत्या में न्याय के लिए आगे आये | मामला सीधा सा था, पर राजनीतिक लोगों को बचाने के लिए या राजनीतिक लोग को अपनी सत्ता जाते हुए देख के इसी मुद्दे की राजनीति ही कर दी | रोहित तो क्रांति की मशाल जला के चला गया, मशाल की जिम्मेदारी अब हर व्यक्ति अपनी तरफ से निभा रहा है | लोगों ने जैसे विवेक निर्भया एवं जेसिका के प्रति रखा था आज वह विवेक नहीं दिखाई देता, जो सरकार के सामने बोलता है वह देश विरोधी कहलाता है | यह ऐसी व्यवस्था है, जिसमें न्याय मांगने वाला ही गुनेगार गिना जा रहा है, पुलिस की लाठियों में जान आ गई है, सत्ता पर बसी जुबाने तलवार की तरह चलने लगी है एवं जो अपने आपको विकास के दावेदार मानते है वह विदेशों के प्रति संवेदनशीलता दिखाते हुए अपने ही लोगों को भूल जाते है, जब कोई विरोध करता है तो उसे सजा दी जाती है | न्याय की गुहार के लिए सड़के जाम हो गई, स्टेज भर गए, मीडिया टीआरपी में बहुत आगे जा चुकी है एवं जैसे नशा कुछ हावी हो रहा है | एक माँ न्याय के लिए संघर्ष कर रही है और उसे अपनी बात कहने के लिए उसी सरकार से इजाज़त लेनी पड़ती है बिना इजाज़त के वह मोमबत्ती से श्रद्धांजली भी नहीं दे सकती | यह हमारी व्यवस्था है, जो शांतिप्रिय है, अहिंसक है उन पर हिंसा हो और जो हिंसक हो जाये पर वह सत्ता के प्रति इमानदार हो तो उसे कई छूट मिल जाती है |


हम कहते है की आज २१वीं सदी में कहाँ जातिवाद है | जाति अब नहीं है | जाति के आधार पर आरक्षण ख़त्म करों |  योग्यता अहम् होनी चाहिए |

यहाँ पर जो योग्य है उसे ही तो एकलव्य बनना पड़ता है | एकलव्य से रोहित तक जातिवाद ने अपना रूप बदला है | आज जाति व्यवहार में कम, मानसिकता में जहर की तरह फैली हुई है | हमें स्वस्थ एवं वैज्ञानिक समाज का निर्माण करना था पर आज कहाँ जाता है की सुविधाएँ विदेशी हो, आधुनिक हो पर आत्मा-विचार यही के अपने ही हो | हमने अपने आपको ऐसी व्यवस्था में ढाल लिया है जहाँ पर हम जीते कुछ और है व्यवहार में कुछ और करते है एवं सोचते कुछ और ही है |


हम ऐसी व्यवस्था में जी रहे है जहाँ पर पढ़लिखना भर काफी नहीं है, जो शिक्षा है वह नाकाफी है, हमें उनसे आगे बढ़ना है, हम किसी के गुलाम नहीं है न दैहिक ना ही मानसिक | हमें इस स्वतंत्रता की जरुरत है आज की हम स्वस्थ एवं वैज्ञानिक विचार एवं मानसिकता को परिभाषित करें एवं देश के प्रति अपनी जवाबदेही सुनिश्चित करें |

जय भारत

 

डॉ. हरेश परमार

hareshgujarati@gmail.com

 
डॉ हरेश परमार

डॉ हरेश परमार

प्रिय प्रकाश जावड़ेकर जी, केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री के रूप में आपका स्वागत है. उम्मीद है कि आप भारतीय विश्वविद्यालयों में फिर से अमन चैन कायम करेंगे, जिसे आपकी पूर्ववर्ती मनुस्मृति ईरानी ने छीन लिया था. आपकी सामाजिक पृष्ठभूमि और RSS से आपके अंतरंग रिश्तों को लेकर कुछ लोग आपको संदेह की नजर से देख रहे हैं. यह गलत है. आपको काम करने का मौका मिलना चाहिए. आपका मूल्यांकन समय करेगा. क्या मैं आपसे यह निवेदन कर सकता हूं कि हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में बाबा साहेब की जो मूर्ति मनुस्मृति ईरानी के दौर में वाइस चांसलर अप्पा राव ने उठवा ली थी, उसे फिर से आप ससम्मान स्थापित करवा दें? इससे कैंपसों में अच्छा मैसेज जाएगा. मैं आपको दो तस्वीरें भेज रहा हूं. पहली तस्वीर में बाबा साहेब की प्रतिमा है. दूसरी तस्वीर में वह कुर्सी खाली है, जिस पर बाबा साहेब की मूर्ति थी. सादर

11 जुलाई 2016

डॉ हरेश परमार

डॉ हरेश परमार

बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे बोल ज़बाँ अब तक तेरी है तेरा सुतवाँ जिस्म है तेरा बोल कि जाँ अब तक् तेरी है देख के आहंगर की दुकाँ में तुंद हैं शोले सुर्ख़ है आहन खुलने लगे क़ुफ़्फ़लों के दहाने फैला हर एक ज़न्जीर का दामन बोल ये थोड़ा वक़्त बहोत है जिस्म-ओ-ज़बाँ की मौत से पहले बोल कि सच ज़िंदा है अब तक बोल जो कुछ कहने है कह ले फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

11 जुलाई 2016

डॉ हरेश परमार

डॉ हरेश परमार

ब्राह्मणवाद दुनिया का सबसे खतरनाक आतंकवाद है. क्योंकि इसकी वजह से जो मार खाता है, उसे कोई शिकायत नहीं है. वह मजे से मार खाता है, ताकि उसका परलोक सुधर जाए. वह अपमानित होता है और अपमानित करने वाले को दक्षिणा भी देता है. इटली के समाजशास्त्री अंतोनियो ग्राम्शी इसे 'हेजेमनी बाई कंसेंट' कहते हैं. यानी पीड़ित की सहमति से चल रहा वर्चस्ववाद. इसके लिए सहमति की संस्कृति बनाई जाती है. यही ब्राह्मण धर्म है. बहुजनों की सहमति से अल्पजन का राज. इसका सबसे बुरा असर यह है कि अपार प्राकृतिक संसाधनों के बावजूद भारत आज दुनिया के सबसे गरीब, निरक्षर, बीमार और लाचार देशों में एक है. जीवन के हर क्षेत्र में सवर्ण वर्चस्व ने देश का बुरा हाल कर दिया है. क्या आपने कभी सोचा है कि 1946-47 की विश्व इतिहास की भीषणतम सांप्रदायिक हिंसा के दौर में, जब 10 लाख से ज्यादा लोग मारे गए, तब भी बाबा साहेब जातिमुक्त भारत के बारे में ही लिख रहे थे? बाबा साहेब जानते थे कि भारत के ज्यादातर लोगों की समस्या जाति है. उससे मुक्ति जरूरी है. यही भारत की असली आजादी है. यही राष्ट्र निर्माण है. - Dilip C Mandal

11 जुलाई 2016

डॉ हरेश परमार

डॉ हरेश परमार

अंधेरे दौर में एक टुकड़ा गुनगुनी धूप. एक शानदार खबर है. हम सबके प्रिय डॉ. Sunkanna Velpula अपनी पीएचडी पूरी करने के बाद अब पोस्ट डॉक्टरल फेलो हो गए . उन्हें IIT, मुंबई में पढ़ाने का काम मिला है. अब वे वहां टीचर हैं. सुनकन्ना उन पांच रिसर्च स्कॉलर्स में एक हैं जिन्हें रोहित वेमुला के साथ हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी से सामाजिक रूप से बहिष्कृत किया गया था. वे भी हॉस्टल से बाहर खुले में सोते थे. सुनकन्ना का बचपन कैंटीन में बर्तन धोने से शुरू हुआ. चर्च के स्कूल में वे पढ़े. 10वीं में तीन पेपर में फेल हुए. पिता की जेब से 100 रु. चुराकर घर से भागे. दोबारा मेहनत से पढ़ाई की. अच्छे नंबर से पास हुए. उसके बाद हर परीक्षा में बेहतरीन प्रदर्शन किया. पीएचडी किया... क्या तूफानी जिंदगी है बॉस! Dontha Prashanth और सुनकन्ना रोहित वेमुला की सांस्थानिक हत्या के बाद के आंदोलन के अगले मोर्चे पर रहे. बघाई. - Dilip C Mandal

11 जुलाई 2016

डॉ हरेश परमार

डॉ हरेश परमार

मरने के बाद भी RSS और ABVP के लिए खतरनाक है रोहित वेमुला! हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में आज सुबह ABVP के गुंडों ने रोहित वेमुला की मूर्ति चुराने की कोशिश की. गार्ड और विद्यार्थियों के साथ झड़प में मूर्ति गिरकर टूट फूट गई. विद्यार्थियों ने टूटी हुई मूर्ति को फिर से स्थापित कर दिया है. यहां से हटाई गई बाबा साहेब की प्रतिमा अब तक लौटाई नहीं गई है. - Dilip C Mandal

11 जुलाई 2016

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परिवार वाद के विरोध में परिवारवाद

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'हमने कई लोगों की मिठाई रोक दी और ऐसा करनेमें मुझे कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा' - महा प्रधान मंत्री कम विदेश मंत्री श्रीश्री मोदी जीRSSएक परिवारहै,जिसे कईपदों पर इस कार्यकाल में परिवार वाद का विरोध करते हुए आसीन किये|अभी अभीकिरण बेदी को गवर्नर बनाया गया | मिठाई तो बंटी पर अपने लोगों के बीच में बंट

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क्रांति का नारा : जय भीम का नारा

7 जून 2016
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क्रांति का नारा : जय भीम का नारा संघी सफल क्यों होते है आंबेडकर को अपनेअंबेडकर बनाने में ? कारण साफ है : जो लोग शिक्षा ले के आगेआये उन्होंने चाहे वह नौकरी करता हो या न करता हो, उन्होंने आंबेडकर के विचारों को घर घर नहीं पहुँचाया, आंबेडकर के चित्र रखे पर पूजा-धूपबत्ती के छाये में लद गए, समाज से जो बाह

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9 जून 2016
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अपनी परछाई  कभी जिन्दगी की साम ढलने के वक्तकुछ अहसास होता है अँधेरे काकुछ सुकून सा देता हैवह पल चहचहाते उड़ते अपने घर को लौटते पंखकुछ शांत से खड़े, पत्तो को संजोयें पेड़कुछ वक्त के लिए होता है अहसासअँधेरा घना होने से पहलेसूरज के डूबने के बादकुछ लालिमा आसमान कीदेती है सुकूनफिर बढ़ता है अँधेराहमें दिखाई द

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9 जून 2016
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कबीरन अक्सर वह सुमेघ को ट्रेन में दिखायी दे जाती थी। कभीअपने समूह में तो कभी अकेली। सुमेघ उसे देख अपने पास बुला लेता या वह खुद ही चलीआती। ऐसा लगता जैसे वो उसे पहचानती है। सुमेघ ने कई बार सोचा कि उसके बारे मेंजाने लेकिन सार्वजनिक जगह और समय की कमी ने कभी भी मौका ही नहीं दिया। वह बहुतसुन्दर थी और गाती

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11 जून 2016
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हमारा समय  हम जीस रास्ते चले जरुरी नहीं की फूल ही बीछे हो,कांटे ना सही लेकिन रास्ता कठिन जरुर हो सकता है.हमें तो चलना है अपनी धुन पर...और हम चले अंजान रास्तों पर धूल भरे रास्तों से शुरु हुआ था सफ़र हमाराआज सडको पर चलते है पक्की सडको परपर हमारें अंदर बसा इन्सान सो चूका हैबहुत गहरी निंद...पत्थरों से कभ

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दंगा रोकने का लालू-मंत्र.

18 जून 2016
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दंगा रोकने का लालू-मंत्र.यूपी में दंगा रोकना अखिलेश सरकार की जिम्मेदारी है. डीएम, एसपी, थानेदार चाह ले और यूपी में कहीं दंगा हो जाए, यह नामुमकिन है.सरकार को सिर्फ इतना कहना होगा कि दंगा हुआ तो इलाके के अफसर बर्खास्त होंगे.सिर्फ यह करके लालू प्रसाद, राबड़ी देवी और नीतीश कुमार ने बिहार में 25 साल तक द

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29 जून 2016
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जाति कौन जागता है ?कौन सोता है ?यहाँ कौन सा किस तरह का बदलाव हुआ है ?एक बच्चा आज भी माँ की कोख से जाति ले के जन्म लेता है. बोध होता हो या ना होता हो,दुनिया बोध करा देती है,जाति ऐसी चीज है जो उम्र के साथ अपना कद दोगुना बढ़ा लेती है. एक पेड़ पर चढ़कर आज भी मनुष्यअपनी वाली डाली ही काटता रहता है,यह बिंब प्

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रोहित की शहादत, राजनीति करण एवं हम

30 जून 2016
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रोहित की शहादत, राजनीति करण एवं हमहरेश परमार कुछ परिदृश्य ऐसेहोते है जिसे हम देखना नहीं चाहते, हम उनसे आँखे मूंदना चाहते है, फिर भी वह मंजरहमारी आँखों के सामने आ जाते है | हम लाख कोशिश करें पर फिर भी ऐसे वक्त में हमउनसे आँख चुराकर भी देख ही लेते है | समर्थन में हो या असमर्थन में पर हमारे सामनेयव यथा

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अनजानी सी ...

25 अगस्त 2016
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कुछ खोई खोई अपने सपनों मेंअपनी मुश्कान मेंअपने ही ख्यालों में अनजानी सी ....आवाज में वह नमी हैऔर पहचान भर बातेंदूर से छूती है दिल कोऔर लहराते बालो कोसँभालते गुजर जाती है अपनी एक अंजान पहचान छोड़करकोई नाम नहींकोई अनाम भी नहींकुछ सुहाने लम्हों को छोड़जाती है वह .....

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संस्कृत किसी भाषा की मां नहीं है - दिलीप मंडल

31 अगस्त 2016
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संस्कृत किसी भाषा की मां नहीं है. किसानों ने कभी भी संस्कृत में अपनी फसल नहीं बेची. मछुआरों ने संस्कृत में मछली का रेट नही बताया. ग्वालों ने संस्कृत में दूध नहीं बेचा, सैनिक ने कमांडर से इतिहास में कभी भी संस्कृत में बात नहीं की, किसी मां ने बच्चे को संस्कृत में लोरी नहीं सुनाई, खेल के मैदान में कभी

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मुँह मत मोड़ना

14 सितम्बर 2016
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अगर दोबारा कहीं मिले चौराहे परमुबारक मुँह मत मोड़ना, आरक्षण से है, रहेगे, आगे भी बढ़ेगे, हमें मिटाने से हम नहीं मिटेगेजहाँ भी दफ़न होगे, आपके रास्ते पे वटवृक्ष बन ऊग आयेगे ....-हरेश परमार

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हरा पेड़ कोयला बन जायेगा....

16 सितम्बर 2016
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तुं ही है अभी मंजर में आ देख बहुजनो के बंजर मेंअभी तो सोया हुआ है,कुम्भकर्ण सी नींद में, तुझे जो करना है कर ले अभी हीजागेगा जब बंजर सारा, तेरा मंजर बदल देगा....वक्त की नजाकत का फायदा लिया है तूनेअपने लोगो को सत्ता में देखलाडला बनवाया है तुझेमोहरा जब उतरेगा,वह कफ़न किसी और का पुकारेगा,वह हाल बस होगा,

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फटी हुई चादर

18 अक्टूबर 2016
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ठण्ड रात थीउनकी चादर फटी हुई थी,चादर कंप कंपा रही थी,कभी इधर-कभी उधर लुढ़क रहीथी.बस सिर्फ चादर फटी हुईथी,गहरी अँधेरी रात थी,ठण्ड उससे भी ज्यादा ढीठथी....रात जितनी लंबी थी, उससेभी ज्यादा लंबी हो रही थीचादर फटी हुई थी...नींद आँखों में होते हुएभी ठंडे तारों को देख रहीथी...

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मैं वापिस आऊंगा - सूरज बड़त्या

19 अक्टूबर 2016
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मैं वापिस आऊंगा - सूरज बड़त्या जब समूची कायनातऔर पूरी सयानात की फ़ौजखाकी निक्कर बदल पेंट पहन आपकी खिलाफत को उठ-बैठ करती-फिरती होअफगानी-फ़रमानी फिजाओं के जंगल मेंभेडिये मनु-माफिक दहाड़ी-हुंकार भरे....आदमखोर आत्माएं, इंसानी शक्लों में सरे-राह, क़त्ल-गाह खोद रहे होंसुनहले सपनों की केसरिया-दरियाबाजू खोल बुला

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ओरांग उटांग !!!! - सूरज बडत्या

27 अक्टूबर 2016
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ओरांग उटांग !!!!परम आदरणीय आंबेडकर विरोधियों !!!आपकी महिमा अपरम्पार हो !!! जय जय कार हो !!आपकी सारी बहस को मैंने बेहद बारीकी के साथ सतर्क निगाह से पढ़ा , और मैं अब इस नतीजे पर पहुंचा हूँ की आपके विचारों को मैं पूरी तरह से खारिज कर सकूँ !!! इसे अपने पूर्वज से असहमति दर्ज करना और उनकी सीमाएं दीखाना नही

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देश के लिये....

14 नवम्बर 2016
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जब एक फैसला हुआउस दिन एक बुजुर्ग की नजर में चमक दिखी थीदुसरे दिन बेंको में अपने नोट जो कुछ ही दिन पहले निकले थेबदलने गएउनका बीपी बस बढ़ने लगा था...वह तो देश को अपने सीने में बसा के आया थापर जब अपने आस-पास देखा बूढ़े-गरीब अपना काम छोड़कर अपने लिए खड़े थेदेश के नाम परमैं सोचते हुए आगे बढा ही थाबैंक में पै

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आंसू

15 नवम्बर 2016
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आंसूआपने रोहित वेमुला की माँ की आँखों में आंसू देखे थे ?आपने नजीब की माँ की आँखों में भी आंसू देखे थे ?पर आपको वह नजर नहीं आये ...वह नेता नहीं थेवह नेताओं के पुत्र-पौत्र नहीं थे...आपने उस उना काण्ड में मार खाने वालों के भी आंसू देखे थेआपको उस वक्त क्या लगा था ?आपने जब वह फैसला आया जब देश में आप जो र

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देशभक्ति गीत

28 फरवरी 2017
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मेढक को जब मैंने कहाप्यार की भाषा बोलोउसने कहा ‘ड्राऊ....’मैंने उसे फिर कहा नफरत की भाषा बोल के दिखाओ उसने कहा ‘ड्राऊ....’मैंने उसे फिर कहा चलो कोई नही, देशभक्ति गीत ही सुना दो‘ड्राऊ....’‘ड्राऊ....’‘ड्राऊ....’

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मशाल बुझी हुई है ....

1 मार्च 2017
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मशाल बुझी हुई है .... कोई फूल मुरझाये आपको क्या ?कोई पत्थर पर चढ़ जाए आपको क्या ?क्या कोई इंसान भी जिन्दा है यहाँचाँद पर जाने से जैसे चाँद भी पत्थर हो गया ...चांदनी हो गई उजाला ...माफ़ करना मेरे दोस्त !यहाँ पर कोई तुम्हारी उम्मीद सुनने नहीं आये हैसपने तो ‘पाश’ के समय में भी मरते थेआज सपनों के साथ इन्स

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