जाति
कौन जागता है ?
कौन सोता है ?
यहाँ कौन सा किस तरह का बदलाव हुआ है ?
एक बच्चा आज भी माँ की कोख से
जाति ले के जन्म लेता है.
बोध होता हो या ना होता हो,
दुनिया बोध करा देती है,
जाति ऐसी चीज है
जो उम्र के साथ अपना कद दोगुना बढ़ा लेती है.
एक पेड़ पर चढ़कर
आज भी मनुष्य
अपनी वाली डाली ही काटता रहता है,
यह बिंब प्राचीन से आज तक सांप्रत लगता है.
जाति काटे से न कटी है,
जलने से न जली है,
आत्मा कि तरह वह भी अदृश्य अमरता पायी हुई है.