अरे ओ प्राणी
हरिनाम स्मरण कर ले बंदे, जीवन का कोई ठिकाना नहीं।
उस पिता से जोड़ ले नाता, वह अपना है बेगाना नहीं
ये भवसागर है काल का चक्र, बचने का कोई ठिकाना नहीं।*
माया मोह की नाव में बैठकर, तू इसमें डूब जाना नहीं
हरिनाम स्मरण कर ले बंदे, जीवन का कोई ठिकाना नहीं
यह तन विष की बेल है, अज्ञानी तू भूल जाना नहीं।
काम-क्रोध, मद-लोभ, मोह, स्वार्थ में तू फंस जाना नहीं
हरिनाम स्मरण कर ले बंदे, जीवन का कोई ठिकाना नहीं