8 मार्च 2022
मंगलवार
समय-09:40(रात)
मेरी प्यारी सखी,
जब हाथ में मोबाइल लिया और मोबाइल में whatsapp खोला तो देखा आज न जाने कितने ही ग्रुपों में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की शुभकामनाएं पढ़ते हुए मेरा मन भी अहंकार से भर उठा।
मैं खुद भी महिला हूॅं, आज महिलाओं को न जाने किन-किन सम्मानों से सुसज्जित किया गया है। बस उसी समय एक औरत अपने बाएं हाथ में भिक्षा पात्र लिए नजर आई। कुछ ही पल पहले अपने आप को गर्वित महसूस करने वाला मेरा मन वितृष्णा से भर उठा।
एक तरफ अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की बधाइयां प्रसारित हो रही है और वहीं दूसरी तरफ न जाने कितने ही द्वारों पर महिलाएं अपने पेट के लिए अपने हाथ फैलाने को मजबूर दिखाई दे रही है।
कुछ देर पहले अपने आप को झांसी की रानी लक्ष्मी बाई, गार्गी,मैत्री, इंदिरा गांधी, लता मंगेशकर के समकक्ष रखते हुए गर्व की अनुभूति कर रही थी कि वही दूसरी तरफ छोटी-छोटी बच्चियों को देह व्यापार में देखकर मन हताशा से भर जाता है अंतर्मन चित्कार कर पूछ उठता है क्या यही है नारी सशक्तिकरण!
आज नारी ने कितनी उन्नति कर ली है, चांद पर भी अपना परचम पहरा लिया है लेकिन...
लेकिन फिर मुझे लगता है मैं क्यों नहीं रात को घर से बाहर निकल पाती हूॅं? क्यों आज भी मुझे एक शक्ति स्वरूपा होने के बाद भी आज समाज में इत-उत फैले रावण से डर लगता है?
आज भी माता-पिता लड़कियों को कहीं भेजने से क्यों कतराते हैं? नारी आज भी अकेली यात्रा करने से घबराती है। आज भी उसे ऐसा लगता है कि कोई उसे रक्षक बनकर घर तक सही सलामत पहुंचा दें। आज भी लोगों की पहली नजर अंधेरे में उसकी अस्मत लूटने को बेकरार दिखाई देती है। दोगलेपन की आज भी बहुतायतता है एक तरफ स्त्री रक्षक कहा जाने वाला समाज स्त्री को नोच कर खा जाने के लिए प्रस्तुत रहता है।
वाह परेशानी की कौन सी बात है? हम अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मना रहे हैं!
स्त्री बोलकर हर जगह दबा दिए जाने वाली महिला को सफल कहने वाला यह समाज उसी का बलात्कार करने की कोशिश करता है। लेकिन अफसोस करने वाली कौन सी बात है? इन सब के बावजूद उसे कई बार कुल्टा कहकर एक तरफ दरकिनार कर दिया जाता है। फिर भी हम क्यों अफसोस करें?
हम तो नारी हैं, सशक्त हैं। चाहे यह दिवा स्वप्न जैसा ही क्यों ना हो "नारी सशक्तीकरण"। कहने के लिए तो कह सकते ही हैं।
है ना???
पापिया