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अजीब परिवेश

21 मार्च 2022

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21 मार्च 2022 
    सोमवार 
  समय- 11:45 


मेरी प्यारी सखी,
कई बार हमारे देश की अजीब स्थिति देख कर मन में अजीब सी उलझन पैदा हो जाती है। हमारे देश की प्रतिभा को हम भुनाने की अपेक्षा सिर्फ भेड़ चाल में चलने के लिए तत्पर नजर आते हैं।
               कई बार छोटे-छोटे बच्चे इतनी प्रखर बुद्धि से कार्य करते हुए देखे जाते हैं जिन्हें शायद बड़े भी ना कर पाए। लेकिन यदि वे विद्यार्थी जीवन में पढ़ लिख ना पाए तो वे मूर्ख, निर्गुण का प्रतीक ठहरा दिए जाते है।
                           पिछले ही साल की बात है, हम सब एक फंक्शन के दौरान ग्रुप में बैठे हुए थे। एक लड़की अकेली सी बैठी बैठी कुछ लिख रही थी। मैंने सोचा शायद अपना मैथ का कोई सवाल कर रही होगी। लेकिन किसी कारण से मुझे उसी तरफ से जाना था। ज्योंही मेरी नजर पड़ी मैं ठहर सी गई। वह कविता लिख रही थी जब मैंने उससे कहा तुम अपनी कविता पढ़ कर सुनाओगी तो शायद ही कोई विश्वास करें कि इस छोटी सी बच्ची ने अद्भुत शब्दों को मिलाते हुए बेजोड़ कविता की रचना सुनाई।
                                      हमारे देश में योग्यता की कमी नहीं है। लेकिन कमी है उन्हें भुनाने की।
                                                   हमारे ही पास में एक बच्चे ने फाइन आर्ट्स में ट्रेनिंग ली है हुबहू जीवित मूर्ति बनाने में प्रखर हस्त है। लेकिन माता-पिता के दबाव में आज वह फर्नीचर की दुकान खोल कर अपने फर्नीचर बेचता है। अर्थात उसकी विद्वता गई ठंडे बस्ते में। सिर्फ लक्ष्मी देवी के आह्वान में लगा हुआ दिखाई पड़ता है।
              मन में बहुत दुख होता है बहुत रंज होता है।
          स्थितियां कब संभलेगी? कब आखिर कब तक??

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रचनाएँ
मेरे विचार
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