17 मार्च 2022
गुरुवार
समय - 12:20(दोपहर)
मेरी प्यारी सखी,
एक चिड़िया के बच्चे चार,
उड़ते रहते पंख पसार।
पूरब से पश्चिम को जाए,
उत्तर से दक्षिण को आए।
देख लिया यह जग सारा,
अपना घर है सबसे प्यारा।।
मां की सिखाई हुए यह कविता आज जीवन में भी चरितार्थ होती दिखाई दी पड़ती है। एक लंबी यात्रा के बाद घर आकर ऐसा लग रहा है मानो सुकून की जिंदगी मैं पुनः आगमन हो चुका है।
इसी तरह के भाव शायद कल दीदी ने भी कहे। दीदी मेरी जेठानी जोकि 5 दिनों की यात्रा के बाद कल शाम को जेठ और जेठानी दोनों वापस आ गए। उन्होंने भी इसी प्रकार का मंतव्य व्यक्त किया।
उन्होंने कहा हम लोग एक साथ घर में रहते हैं। छोटी मोटी बातों को लेकर मनमुटाव हो भी जाए, लेकिन हम पुनः एक तार में बंध जाते हैं। यही सबसे बड़ी बात है। बाहर ऐसा नहीं है सभी एकाकीपन की कुंठा में जीते हुए लगते हैं।
सखी बाहर का आनंद 4 दिन की चांदनी जैसा ही लगता हैं। घर पूरा आज पुनः संपूर्ण हो गया है सभी अपनी अपनी यात्राओं से वापस आकर अपने अपने अनुभव साझा करते हुए आनंदित हो रहे हैं। थकावट है वह तो जाते-जाते ही जाएगी। लेकिन परिवार के साथ अपनी बातों को साझा कर हर्ष उल्लास का वातावरण, हंसी के ठहाके पुनः होने लगे हैं। चाय का सिलसिला भी चल निकला है।
चलो अभी के लिए यही तक। फिर मिलते हैं।
लेखिका
पापिया