22 मार्च 2022
मंगलवार
समय- 11:45(रात)
मेरी प्यारी सखी,
हम सब सीखते कुछ है और उसे व्यवहार जीवन में कुछ और ही तरह से प्रयोग में लाते हैं। बचपन में जब भी मैं विवाद या निबन्ध लिखती थी, जल संकट पर ही अधिक लिखती। मुझसे जब भी पूछा जाता बड़े होने पर क्या सुधारोगी या मुझसे बोलने के लिए जब भी कहा जाता पता नहीं क्यों मैं हमेशा कहती सभी को समझाऊंगी कि पानी का दुरुपयोग रोके पर शायद लोगों के समझाना इतना आसान नहीं। आज उसी जल पर सच में संकट आ चुका है।
आज इतनी बड़ी होने के बाद भी मैं तो प्रतिदिन जल का दुरुपयोग होते हुए देखती हूं लेकिन मेरे हाथ बंधे हैं कुछ नहीं कर पाती।
एक दो बार कई लोगों को समझाया भी कि पानी का उतना ही उपयोग करो जितना जरूरी है। सड़क धोने या अपनी गैलरी को धोने में पानी का दुरुपयोग मत करो। झाड़ू भी लग सकती है। कितना समझाया। लेकिन कई लोगों ने तो यह कहते हुए हंसी उड़ाई बड़ी कि आई उपदेश झाड़ने वाली।
अब गर्मी आ रही है। पानी का संकट पुनः कितने ही जिलों में, अखबारों में पढ़ने या देखने को मिल जाता है। राजस्थान में तो जल संकट के कारण प्रतिवर्ष कितने ही लोगों को गंदा पानी पीने के लिए मजबूर होना पड़ता है। लेकिन लोगों को समझाने का क्या परिणाम? ढाक के तीन पात, लोग समझना ही नहीं चाहते।
मैंने तो ठान लिया है किसी को नहीं समझाऊंगी। सखी तुम ही बताओ अगर समझाऊं और वो ही हंसी उड़ाए तो क्या फायदा? जितना हो सके मैं खुद ही पानी की बचत करने की कोशिश करती हूं।
सब्जी धोने के बाद उस पानी का उपयोग पेड़ों में पानी डालने के लिए करती हूं। कपड़े धोने वाले पानी को गाड़ी धोने में काम लेती हूॅं। इस तरह से जितना हो सके पानी बचाने की कोशिश करती हूं। पर सखी मैंने तय कर लिया है किसी को नहीं समझा ना बाबा ना।
बिल्कुल नहीं कभी नहीं।
पापिया