हमारा मस्तिष्क दो हिस्सों में है एक अवचेतन मन और दूसरा चेतन मन इसीलिए हम इंसानों की यह प्रवर्ती है कि हम रहते तो हमेशा आज में हैं सभी कार्य करते तो आज में परन्तु हमारी सोंच और हमारा मन या तो भविष्य में रहता या तो अपने अतीत में चला जाता।
आज अभी इसी वक्त हम जिस भी क्रिया में संलग्न हैं उसमे पूरी तरह से हैं या नहीं हैं, इसके प्रति कितने सजग हैं कितने सतर्क हैं और कितने जागरूक हैं। यह हमारे ऊपर निर्भर है।
जैसे यदि हम वर्तमान में कार या बाइक ड्राइव कर रहें पर सोंच कुछ और रहें हो सकता है कोई पिछली घटना या भविष्य की कोई योजना कार्य आदि वो चाहे सकारत्मक हो या नकारत्मक, और जब तक ड्राइव करते हैं तब तक उसी में डूबे रहते हैं हालाकि हम वर्तमान में हैं और हमे पता भी है कि हम कार ड्राइव कर रहें हैं क्योंकि ड्राइविंग हमारे अवचेतन मस्तिष्क में स्मृति के रूप में पहले से मैजूद है इसलिए उसपे मस्तिष्क का एक हिस्सा कार्यमान है परन्तु मस्तिष्क का दूसरा हिस्सा अतीत या भविष्य में कार्यमान है तो हम कह सकते हैं कि हम वर्तमान में तो हैं परन्तु अतीत या आभाषी संभावित भविष्य में जी रहें हैं। इससे स्पष्ट है हम ड्राइविंग के दौरान अपने वर्तमान को पूर्ण रूप से नहीं जी रहें।
जैसे कहीं अच्छी जगह घूमने गए जहाँ के सुंदर दृश्यों का आनंद लेने की बजाए हम किसी अतीत की घटना से संबंधित सोंच में चले गए या अपने भविष्य की चिंता में डूब गए तो क्या हम वहाँ पे मैजूद नज़ारे का वर्तमान में पूरा लुफ्त उठा सकते हैं ? नहीं क्योंकि हम उस उक्त अपने अतीत या आभाषी भविष्य की स्मृति में जी रहे होंगे आज हम कैसे जी रहें कैसा महसूस कर रहे हैं क्या सोंच रहें ये सब स्मृति के रूप में अतीत में जाने वाला है और भविष्य में ये स्मृतियों की पुनरावृति वर्तमान को प्रभावित करेगी।
आज कैसी भी स्थिति हो इसे पूरी शिद्दत के साथ सकारत्मक दृष्टि से प्रशन्नता पुर्वक जीने से आने वाला प्रत्येक पल से हमे आंतरिक मजबूती मिलती है और अच्छी स्मृति हमे आगे वर्तमान में बेहतर जीवन जीने में सहायक कारगर होगी।
वर्तमान सिचुएशन कैसी भी इससे आज ही निपटने का रास्ता खोजना होगा।
हम अपने आप को वर्तमान अवस्था मे देख पा रहे हैं कार्य कर भी रहें हैं पर हमारा मन मस्तिष्क दोहरा ब्यवहार करता है कभी वह अतीत की किसी घटना में चला जाता है तो कभी भविष्य की चिंता में चला जाता है जिससे हम अपने वर्तमान को पूर्ण रूप से सजगता के साथ नहीं जी पाते। इसलिए हमें अपने अतीत में आवश्यकता पड़ने पर ही जाना चाहिये वो भी सकारत्मक पहलुओं पर जिनसे वर्तमान में कोई सहायता मिल सके और भविष्य निर्भर करता है आज पर इसलिए आज हम अपनी ज़िंदगी को कितनी स्फूर्ति और प्रशन्नता के साथ सकारत्मक सोंच के साथ जी सकते हैं।
आज कितना आनंद महसूस कर सकते हैं आज अपने कार्यों को कितने रचनात्मक तरीके से कर सकते हैं आज अपने साथ साथ किस किस को प्रसन्न कर सकते हैं आज और सिर्फ आज इसे आज अभी और इसी वक्त जीना होगा। क्योंकि जो अतीत में चला गया उसे दोहराने से उसमे जीने से कोई लाभ नहीं और भविष्य की चिन्ता क्यों करें बल्कि आज कुछ ऐसा करें ताकि कल हम अच्छा जी सकें।
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