संभव है ,
कि ये धरा
ऊपर टंग कर लहराये,
संभव है ,
ये ये गगन ,
नक्षत्रों संग नीचे आ मुस्काये
सँभव है ,
कि दिवाकर ,
शीतलता बरसाये ,
संभव है ,
कि चाँद अनल बन,
हमको झुलसाये ,
संभव है ,
कि ओस बिंदु ,
कभी हाथों में उठा पायें,
पर असंभव है ,
कि पुरुष की हमारे प्रति ,
मलिन,वासनायुक्त,
सोच कभी बदल पाये !!!!
प्रभा मिश्रा 'नूतन'