हम-तुम ,
चाहें तो,
बदल सकते,
हैं देश,
और परिवेश,
मगर,
हम-तुम ,
अपनी,
संकीर्ण सोच,
और निज स्वार्थ,
से ऊपर उठकर,
जब कुछ और ,
सोच सकें और
सकें देख ।
प्रभा मिश्रा 'नूतन'
18 अगस्त 2022
हम-तुम ,
चाहें तो,
बदल सकते,
हैं देश,
और परिवेश,
मगर,
हम-तुम ,
अपनी,
संकीर्ण सोच,
और निज स्वार्थ,
से ऊपर उठकर,
जब कुछ और ,
सोच सकें और
सकें देख ।
प्रभा मिश्रा 'नूतन'
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मैं प्रभा मिश्रा 'नूतन' ,हिंदी में एम. ए. हूँ । मैं यू ट्यूब पर भी हूं। यू ट्यूब पर मेरा चैनल --नूतन काव्य प्रभा मैं कोई कवियित्री न हूँ पर बचपन से मन के भावों को शब्दों का रूप दे कागज पर उतारती रही हूँ ,जो मुझे बहुत आत्मसंतुष्टि देता है । आसपास के वातावरण ,और लोगों की वेदनाएं ,आँसू ,देखकर मन में जो भाव उपजते हैं बस उन्हीं धागों में लेखनी की सुई से शब्दों के मोती पिरो देती हूँ ।कहानी लेखन में भी थोडा़ बहुत प्रयास किया है । मेरी एक किताब'बहना तेरे प्यार में'प्रकाशित हो चुकी है।मेरी समस्त रचनाओं पर मेरा कापीराइट है, सर्वाधिकार सुरक्षित है, तो इनके साथ छेड़छाड़ न करें।D