कहा गया है अति सर्वत्र वर्जयेत । आजकल सोशल मीडिया पर बहुत सारी बुरी बातें लिखी जाती हैं तो बहुत सारी अच्छी बातें भी लिखी जाती हैं । बहुत से लोग फेसबुक आदि पर अपनी उपस्थिति दर्ज करने के लिये यहाँ वहाँ से सुवचन और महापुरुषों के कथन कट पेस्ट शेयर करते रहते हैं । कुछ लोग तो पूरे समय इसी में जुटे रहते हैं । उन्हें शायद आभास नहीं होता उनके ये रेडीमेड उठाये और डाले गये संदेश दूसरों के मौलिक और रचनात्मक संदेशों के स्थान का अतिक्रमण करते है । साथ ही कुछ अतिसंवेदनशील व्यक्ति इन सुवचनों से लाभान्वित होने के स्थान पर अवसाद का शिकार हो सकते हैं । उदाहरण के लिये कोई कहता है मनुष्य चाहे तो सबकुछ कर सकता है । कोई एक पढ़ने वाला व्यक्ति अपने वारे में सोचकर परेशान होता है कि उसकी तो बहुत सी सीमाएं हैं जिन्हें वो नहीं लांघ पाता । कथन अपनी जगह सही है । वो मनुष्य की बात कर रहा है किसी एक व्यक्ति की नहीं । मेरा तो मानना है कि सुवचन भी ठीक से न समझें तो भ्रमित और निराश कर सकते है अतः सिर्फ सुवचनों के फेर में न पड़े और स्व विवेक से निर्णय लेकर अपने कर्तव्यों का निर्वाह करें ।
विज्ञानं परास्नातक ,भारतीय राजस्व सेवा से सेवा निवृत ,कविता कहानी पढ़ने लिखने का शौक ,कुछ ;प्रकाशित पुस्तकें -संवाद कविता संग्रह , मेरी पाँच कहानियाँ , द गोल्ड सिंडीकेट (उपन्यास ), लुटेरों का टीला चंबल (लघु उपन्यास )।;D