कोरोना से डेराने हैं।अभी लेखक सभी हेराने हैं ... कही लिखते मिले तो भईया हमे बता दइयों। कोरोना मे अपने वजूद को भुलाने हैं।खोकर मीडिया के हो-हल्ला मे, सामाज को रचने वाले शब्द हेराने हैं... कवि, ब्यंग, शायर, गजल सभी बौराने हैं,खोज-खाज राजनीति के चुटकले उन्हे नही फैलाने हैं।सच कहने व लिखने से लेखक भी
कलम शोर मचाती नहींशब्द गुनगुनाते नहींकिताबें पड़ी हैं मगर,किसी से पढ़ी जाती नहीं।लेखक हो मशहूरखर्चा पाते नहींलिखावट से इबादत कीमहक अब आती नहीं।कलम दुनिया बदल देंऐसा अब होता नहींप्रेमचंद लिए नए जूतेइसीलिए रोता नहीं।' सत्य ' स्वयं गुरूर मेंकलम चुभोता नहींअंतः कविता पेश हैकवि का भरोसा नहीं।
कोरोना से डेराने हैं।अभी लेखक सभी हेराने हैं ... कही लिखते मिले तो भईया हमे बता दइयों। कोरोना मे अपने वजूद को भुलाने हैं।खोकर मीडिया के हो-हल्ला मे, सामाज को रचने वाले शब्द हेराने हैं... कवि, ब्यंग, शायर, गजल सभी बौराने हैं,खोज-खाज राजनीति के चुटकले उन्हे नही फैलाने हैं।सच कहने व लिखने से लेखक भी
★★★★★★★★★★★★★★आजूबाजू में हैं- मोबाइल खेलते हैं!चाँद है पास हमिमून तक भूलते हैं!!★★★★★★★★★★★★★★दिल धड़कता है महसूस गर करते।राह पर चलते, गर नहीं- बहकते।।ठहर जाना हीं काबलियत है।खुशबुओं में बह जाना हीं ज़िंदगी है।।दिल धड़कता है महसूस गर करते।राह पर चलते, गर नहीं बहकते।।★★डॉ. कवि कुमार निर्मल★★
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺*"काव्य सरिता" घर-घर बहती है!**कवि-मन को व्यथित करती है!!**अन्न-जल त्याग "देवी जी" बैठी है!**"दुर्गा" का मानो 'अवतार' हुआ है!!**'क्षत-विक्षत' सारा 'घर-बार' हुआ है!**ठप्प कलह-द्वद्व से व्यापार हुआ है!!**"पाठ-मंचन" से नहीं त्राण मिलना है!**ऋणम् लेवेत-धृतम् पिवेत वरना है!!**कलश स्
नर नारायण बन स्वामि बन अगराता है।नारी कामायनी बन, अश्रु धार बहाती है।।🏵️ 🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️ 🏵️भ्रुण काल माना विस्मृत कर क्षमा - पात्र है।शिशु स्तन पान कर नवजीवन हीं पाता है।।तरुण गोद से उछल - कूद दौड़ लगाता है।युवा नार सौंदर्य में अपने स्वप्न सजाता है।।
"अवसाद" एक ऐसा शब्द जिससे हम सब वाकिफ़ हैं।बस वाकिफ़ नहीं है तो उसके होने से।एक बच्चा जब अपनी माँ-बाप की इच्छाओं के तले दबता है तो न ही इच्छाएँ रह जाती हैं ना ही बचपना।क्योंकि बचपना दुबक जाता है इन बड़ी मंज़िलों के भार तले जो उसे कुछ खास रास नहीं आते।मंज़िल उसे भी पसंद है पर र
महादेव को शब्दों में बांधना असंभव है फिर भी मैंने एक प्रयत्न किया है कि मैं जगत के स्वामी देवाधिदेव महादेव को अपनी कविता के माध्यम से आप सबके समझ उनके स्वरूप का वर्णन करने का प्रयत्न करूँ।हर हर महादेव
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'साहित्य आज तक' फिर लौट आया है. इसके साथ ही नवंबर के मध्य में राजधानी में फिर से सज रहा है साहित्य के सितारों का महाकुंभ. तीन दिनों के इस जलसे में हर दिन साहित्य और कलाप्रेमी देख और सुन सकेंगे शब्द, कला, कविता, संगीत, नाटक, सियासत और संस्कृति से जुड़ी उन हस्तियों को, जिन्ह
हिंदी कवि और हिंदी फिल्मों में काम कर चुके पियूष मिश्रा की कविता "वो काम भला क्या काम हुआ" वो काम भला क्या काम हुआ जिस काम का बोझा सर पे हो,वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ जिस इश्क़ का चर्चा घर पे हो,वो काम भला क्या काम हुआ जो मटर सरीखा हल्का हो,वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ जिस में ना दूर तहलका हो,वो काम भल
कौन सुने अब व्यथा हमारी, आज अकेली कलम हमारी,जो थी कभी पहचान हमारी, आज अकेली कलम हमारी।हाथों के स्पर्श मात्र से, पढ़ लेती थी हृदय की बाते,नैनों के कोरे पन्नों को, बतलाती थी मेरी यादें।कभी साथ जो देती थी, तम में, गम में, शरद शीत में,आज वही अनजान खड़ी है, इंतजार के मधुर प्रीत में।अभी शांत हू, व्याकुल भ
पन्नों पर भी पहरे हैं✒️ बैठ चुका हूँ लिखने को कुछ, शब्द दूर ही ठहरे हैं,ज़हन पड़ा है सूना-सूना, पन्नों पर भी पहरे हैं।प्रेम किया वर्णों सेभावों कलम डुबोयासींची संस्कृति अपनीपूरा परिचय बोया,झंकृत अब मानस हैचमक रही है स्याहीपद्य सृजन में ठहराभटका सा एक राही;उभरें नहीं विचार पृष्ठ पर, सोये वे भी गहरे
महाकवि गोपालदास नीरज के गीतों का कारवां सदा के लिए थम गयालाल बिहारी लाल (19 july,2018)हिंदी के महाकवि गोपालदास नीरज का जन्म 4 जनवरी 1925 को उ.प्र.के इटावा जिला केपुरावरी गांव में हुआ था। इनका बचपन काफी मुफलिसी में बिता । शुरु में गंगा मैयामें चढ़ाये जाने वाले 5 या 10 पैसे को नदी से एकत्र कर जीवन या
पंजाब का शाब्दिक अर्थ पांच नदियों की धरती है | नदियों के किनारे अनेक सभ्यताएं पनपतीहैं और संस्कृतियाँ पोषित होती हैं | मानव सभ्यता अपने सबसे वैभवशाली रूप में इन तटों पर ही नजर आती है क्योकि ये जल धाराएँ अनेक तरह से मानव को उपकृत कर मानव जीवन को धन - धान्
इतने बदनाम हुए हम तो इस जमाने में तुमको लग जाएंगी सदियां इसे भुलाने मेंन पीने का सलीका न पिलाने का शऊर, ऐसे भी लोग चले आये हैं मयखाने में अपनी अंतिम सांस तक अपनी कविताओं से हम सब को आत्मविभोर करने वाले कवि गोपालदास नीरज का दिल्ली के एम्स में हुआ निधन । समाचार एजेंसी प
तलबगार है कई पर मतलब से मिलते हैं ये वो फूल हैं जो सिर्फ मतलबी मौसम में खिलते हैं रोक लगाती है दुनिया तमाम इन पर पर देखो मान ये इश्कबाज पक्के जो पाबंदियों में भी मिलते हैं मोहब्बत के रोगी को दुनिया बेहद बदनाम ये करती है जनाब क्यों फिर भी आधी दुनिया हाए इसी पे मरती है कहते हैं कई धोखेबाज भी लेन-देन द
जो और कोई कह ना पाए कर नापाए और कोईऐसा जज्बा लिए संग में चलताहै अकेला कोई। उसके पासअनूठी क्षमता और अनोखा ज्ञान है सदा हीकागज पर अपने रचता अलग जहाँ है।अनोखा अंदाज उसका लिखता जागृतदेश बन