बदरी को सरोवर की तरफ जाते हुए देखकर,
मुस्कराते हुए चातक ने एक प्रश्न कर लिया
किसी सोच में डूबी हो या भूल गयी हो तुम दिशा,
हँसते हुए चातक ने एक व्यंग कर लिया
न तो वहाँ तपती धरा, जो तुम्हारी प्रतीक्षित हो
न वहाँ कोई मरुभूमि, जो तुम्हे देख प्रफुल्लित हो
चातकों का भी समूह नहीं, तृप्त हो तुम्हारी बूंदों से
मोरो का भी समूह नहीं, आनंदित हो बूंदों में
जलाशय तो जलमग्न, वहां क्या आवश्यकता
लगता है चलते-चलते भ्रमित हो गयीं हो रास्ता
अब बारी थी बदरी की, सहजता से वो बोल गयी
चातक के सामने वह चुभते प्रश्न छोड़ गयी
कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं, ख़ामोशी भी पढ़ लेते
समुन्दर के छुपे मरुस्थल को आसानी से समझ लेते
जलमग्न सरोवर की भी महसूस कर लेते हैं प्यास
दिल से जुड़े रिश्ते होते हैं बहुत ही खास
बड़ा ही अनुपम दृश्य 'देव' बदरी सागर पर छा गयी
सागर की ऊँची लहरें जैसे मिलन को आ गयी
अमृत जैसी बूदों से उसने सारे सागर को भिगो दिया
अपना अस्तित्व मिटा करके, प्यासे सागर को तृप्त किया