खुले आसमान के तले,
बिस्तर लगाकर सो जाना
और सोने से पहले,
चाँद को देर तक निहारना
अब कहाँ संभव होता है?
आसमान में केवल,
एक सितारा देखकर डर जाना
और फिर आकाश में चारों तरफ,
अन्य सितारों को खोजना
अब कहाँ संभव होता है?
चाँद को देखते-देखते,
लाखों किमी की दूरी तय कर जाना
और सूत काटती बुढ़िया से,
मिलकर वापस आ जाना
अब कहाँ संभव होता है?
सोने से पहले रात को,
तारो को गिनने की कोशिश करना
और टूटते हुए तारे से,
कोई अनोखी सी गुजारिश करना
अब कहाँ संभव होता है?
चाँद को हर बात का हमराज बना लेना
ख़ुशी हो या गम के आंशु उसे दिखा देना
फिर कहीं से बदरी का घिर जाना
और चाँद सितारों का उसके पीछे छुप जाना
फिर एक दूसरे को ढूढ़ने का खेल,
अब कहाँ संभव होता है?
ऊँची इमारतों के फ्लैट की बालकनियों से,
अब कहाँ आसमान पूरा दिख पाता है
अगर अपने घर की छत भी हो,
तो ऐ सी, कूलर की जंजीरों में जकड़ा इंसान,
अब कहाँ छत पर सोने जा पाता है
वो चाँद से बात करते हुए,
और तारों की गिनती कई बार करते हुए
कब नींद का आ जाना
और सुबह होने पर,
सूरज की पहली किरण का,
चेहरे को छूकर हमें जगाना
अब कहाँ संभव होता है?