आज बैसाखी का पवित्र त्यौहार है. आज ही के दिन दशम गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह ने आनंदपुर की पवित्र धरती पर खालसा पंथ की नींव रखी थी. उन्होंने समाज के निचले तबके के लोगों को अमृत चखा कर शेरों की एक महान क़ौम को जन्म दिया था.
आज सोशल साइट्स पर जब लोगों को बैसाखी की शुभकामनायें देते देखा तो सोचने को मज़बूर हो गया. आज जब पंजाब की वर्तमान तस्वीर देखता हूँ तो पंजाब को बैसाखी के सहारे धीरे धीरे लंगड़ाते हुए, घिसटते हुए पाता हूँ.गुरुओं की इस पवित्र धरती को नशों के दीमकों ने अपाहिज बनाना शुरू कर दिया है. शेरों की उस महान क़ौम के नौजवान नशे के दलदल में गिरते जा रहे हैं. शहरों से लेकर गावों की गलियों तक नशे का दलदल फ़ैल चुका है. ताज़्ज़ुब है कि सरकार आँखों में बेशर्मी का चश्मा लगा कर तमाशा देखने में लगी है. मीडिया ज़ोर ज़ोर से सरकार को नशों का सौदागर बता रही है. सरकार के कुछ मंत्रियों के नाम प्रमाण सहित नशे के सौदागरों के तौर पर आ रहे हैं. मुख्यमंत्री के कुछ क़रीबी रिश्तेदारों पर सरे आम उँगलियाँ उठ रही हैं, पर बेशर्म सरकार उन पर कार्यवाही करने के बजाये उनके भत्तों और तनख़्वाह में इज़ाफ़ा करने में मशरूफ है.
अन्नदाता किसान खुद्कुशियाँ कर रहे हैं. क़ाबिल नौजवान बेरोज़गारी की चक्की में पिस रहे हैं. विधायक और मंत्री रेत, बज़री और कमीशन खाने में व्यस्त हैं.
ऐसे में मैं बैसाखी की मुबारकबाद किस मुँह से दूँ .........?
कैसे मैं पंजाब की लाचारी पे भंगड़ा डालूँ ......?
मैं गुरुओं को कैसे मुँह दिखाऊं .......?