भारत में जस्ते अर्थात जिंक का उत्पादन औद्योगिक स्तर पर होता था। भारत से जस्ता पूरी दुनिया में एक्सपोर्ट किया जाता था 18 वीं शताब्दी में अंग्रेजों ने भारत के इसी तकनीक को चोरी करके अपने यहां इसका पेटेंट लिया और धीरे धीरे भारत से यह तकनीक विलुप्त होती चली गई।
इंटेलेक्चुअल चोरी का यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण उदाहरण है और साथ ही साथ यह भी दिखाता है कि हमारे पूर्वज किस तरह से मेटालर्जी जैसी चीजों में पूरी दुनिया से आगे थे साथ ही साथ भारत का उत्पादन औद्योगिक स्तर पर होने के बाद भी उत्पादन प्रक्रिया से पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होता था जबकि आधुनिक उत्पादन प्रक्रिया जो है पूरी तरह से पर्यावरण विरोधी है।
पारंपरिक तरीके से 50000 टन से अधिक जस्ते के उत्पादन के बाद भी राजस्थान के जावर में पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचा था क्योंकि जस्ता बनाने का और जस्ते का और निकालने का तरीका पूरी तरह से पर्यावरण मित्र था।