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भारतीय न्यायव्यवस्था

25 सितम्बर 2015

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भारतीय न्यायव्यवास्था (प्राचीन एवं वर्तमान) राजीव भाई भारतीय न्यायव्यवास्था (प्राचीन एवं वर्तमान) राजीव भाई विलीयम एडम के सर्वे के अनुसार १८३५-५० तक भारत में स्टील बनाने वाली १०००० फेक्ट्रीयां थी । भारत कि उन १०००० स्टील की फेक्ट्रीयांओं से कुल स्टील का उत्पादन ८० से ९० लाख टंन होता था सन १८३५-५० तक और आज भारत में इतने बडे - बडे स्टील पलान्ट, इतनी मशीनें , इतने विदेशी कम्पनियां और इतने सारे स्टील के फेक्ट्रीयां परन्तू कुल उत्पादन ७० से ७५ लाख टंन प्रति वर्ष था । उनमे जो स्टील बन रहा था उसकी गुणवता (कूवालीटी ) क्या थी ? उस पर वर्षो -वर्ष जंग नहीं लगता था इतना बडीयां गुण्वत्ता का स्टील भारत में बनता रहा १८३५-५० तक । जिसका जीवांत उदाहरण हैं मेहरोली में लोहे का अशोक स्तम्भ । और आज का स्टील यदि वर्षा के पानी में छोड दें तो ३ महीने में ही लोहे पर जंग लग जायेंगा । और यह स्टील कि सबसे अधिक फेक्ट्रीयां सर्गूजा मध्य प्रदेश मे है क्यों की दूनियां का सबसे अच्छा आईरन ऑर सबसे अधिक मात्रा में भारत के सर्गूजा में पाया जाता हैं, और जो इस तकनिक को जानते है उन्हे हम आदिवासी कहते हैं उन के पास कोई डीग्री नहीं है परन्तू वह सबसे अच्छा स्टील बनाने की कला जानते हैं परन्तू हम मनते हैं कि जिसके पास कोई डीग्री नहीं हैं वो अशिक्षीत हैं ,मुर्ख हैं । जबकी उनके पास सबसे उत्तम तकनीक हैं जो आज धीरे -धीरे लूप्त होती जा रही है हमरी गलती के कारण । अंग्रेजों ने इस कला को बर्बाद करने के लिये भी एक कानून ( ईण्डीयन फोरेस्ट एक्ट) बनाया था जिसके अनूसार स्थानीयें आदीवासीओं को लोहे से अच्छी स्टील बनाना जानते थे उन्हे खादानो से कंचा माल नही लेने देते थे । यदि वह खदानों से कचा माल लें तो उनको ४० कोडे मारे जाते थे और उस पर भी यदि वह व्यक्ति नहीं मरे तो उसको गोली मार दी जाती थी इसना सख्त कानून बना दिया । तो बीना कचां माल के वह लोग भूखे मरने लगे । और उन्हीं खदानों से अंग्रेज लोहा खोद - खोद कर ले जाते थे । और स्टील की विभिन्न वस्तूएं बनाकर हमरे बाजारो में बेचा करते थे । आज भी वोही कानून( ईण्डीयन फोरेस्ट एक्ट) चल रहा है भारत के मूल निवासी (आदिवासी) लोहा नही ले जा सकते । जबकी जापान कि काम्पनी निपन्डेरनू (एसी ही और भी विदेशी कम्पनियां) । आज भी कचा माल कोडीयों केदाम खोद - खोद कर ले जा रही है और स्टील बनाकर हमे ही उंच्चे दामॉ पर बेच रही हैं । आज भी सर्गुजा मे कुछ आदिवासी लोग हैं जो उस तकनीक को जानते है परन्तू उनको आज भी उसी कानून के कारण स्टील नही लेने दिया जाता । तो हम कैसे अपनी अर्थव्यवस्था को सुधारे जब हमे ही हमारा कचां माल नही लेने दिया जाता और विदेशी कम्पनियों को कोडीयों के दाम पर कचां माल खोद-खोद करे लें जा रही हैं । और क्यों कोई राजनितिक पार्टी , भारत देश के लोग इस पर विचार नही मरते । क्यों नहीं इस कानून को रद्द किया जाता हैं । कैसे में मानू के यह देश आजाद हो गया ? भारत में बहुत अच्छा कपडा बनाने वाले बडीयां कारीगर होते था वो कपडा इतना बारीक बुनाई करते थे की कोई मशीन भी नहीं कर सकती । उस कपडे के थान के थान एक छोटी सी अंगूठी में से निकल जाते थे । पूरी दुनियां मे प्रसिध्द था भारत का कपडा १८३५-५० तक । भारत मे उस समय तक दो ही वस्तूएं सबसे जादा निर्यात होती थी कपडा और मसाले । अंग्रेजो का कपडा लंका शयर और मान्चेस्ट्र का कपडा बिक नही पाता था क्योंकी भारत का ही कपडा इतना बडीयां होता था । तो फ्री ट्रेड के नाम पर अंग्रेजों ने उन सब करीगरों के अंगूठें और हाथ कटवा दियें । सुरत में १००००० बहतरीन कारीगरों के अंगूठें और हाथ कटवा दियें । बिहार मे एक इलाका हैं मधूबनी । मधूबनी मे २५०००० से ३००००० कारीगरों के हाथ कटवा दियें अंग्रेजों ने । इस पर अंग्रेज बडा गर्व करते है, कयोकी भारत का सबसे बडा उद्योग हैं कपडा मील्ले और कारीगर नही रहेंगे तो कपडा मील्ले नही चल सकती और जब कपडा मील्ले धराशाही होगी तो भारत की अर्थव्यवस्था भी धराशाही हो जाएगी । यह एक वार्ता हैं ब्रिटीश की संसाद मे चल रही हैं । और उसके बाद अंग्रेजों ने यह कर दिया हैं ताकी अंग्रेजो का माल (लंका शयर और मान्चेस्ट्र का कपडा ) भारत मे बिक पायें । और अंग्रेजों ने अपने कपडों पर से सारे टेक्स हटा लियें और भारत की कपडा मील्लों पर अतीरीक्त टेक्स लगाया । सुरत की कपडा मील्लों पर १०००% अतीरिक्त टेक्स लगा दिया । ताकी यह उद्योग बन्द हो जायें । और लंका शयर और मान्चेस्ट्र का कपडा बिकने लगे । अब कपडा बनाने के लियें कच्चा माल अंग्रेजों को चाहीयें तो भारत का कोटन ब्रिटेन मे जाने लगा । तो अंग्रेजों को बडा परीशाम करना पडता था तो अंग्रेजों ने जहां - जहा पर अच्छे कोटन (कच्चा माल) मिलता था वहां - वहां पर अंग्रेजों ने अपने स्वार्थ के लियें रेलगाडी चलाई इस देश में । आपको लगता होगा कि अंग्रेज नही आते तो रेलगाडी नही होती इस देश में परन्तू आप यह नही जानते की अंग्रेजो ने रेल इस लियें चलाई ताकी अंग्रेजे भारत के गांव - गांव से कोटन को ईकाठा करके मुम्बाई ले जा सके और मुम्बाई के बन्द्रगाह से जहाजॐ के द्वारा कोटन को ब्रिटेन ले जा सके । और बाद में इसी रेल का एक और प्रयोग होने लगा । अंदोलन को कुचलने के लियें जल्दी से जल्दी भारत के विभिन्न क्षेत्रो मे सेना को पहुंचाने के लिए रेल का प्रयोग भी किया जाने लगा । अंग्रेजों के सबसे पहले रेल जो चलाई है मुम्बाई से थाना के बीच में ट्राईल के रुप में । जब बाद मे प्रयोग सफल हो गया तो सबसे पहले अंग्रेजों ने रेल चलाई है मुम्बाई से अहमदाबाद मे बीच में जो कपास के लिये सबसे अच्छा उत्पादान करते हैं । अब अंग्रेजों के कपास को ईकाठा कर के मुम्बाई के बंद्र्गाह से कपास के जहाज तो भर कर भेजना शुरु कर दियें परन्तू इंग्लेंड से खाली जहाज आते थे तो खाली जहाज समून्द्र में डुब जाते थे । तो इसके लियें उन्हो ने समून्द्री जहाजों में नमक भर कर भेजना शुरु कर दिया । समून्द्री जहाजों में नमक भर कर ईंग्लेंड से आते थे और मुम्बाई के बन्द्रगाह पर नमक डाल देते थे । और यहां से कपास भर कर ले जाते थे । भारत में उस समय तक सभी लोग स्वादेशी नमक ही खाते थे । परन्तू अग्रेजों ने स्वदेशी नमक पर भी टेक्स लगा दियें और अपना नमक टेक्स फ्री बेचने लगें ताकी सभी उनका नमक खाएं । इस पर महात्मा गांधी जी ने डांडी सत्यग्रह किया । ६ अप्रेल १९३० में महात्मा गांघी जी ने एक मूठ्ठी हाथ मे लेकर कसम खाई थी के भारत में विदेशी नमक नहीं बिकने दूंगा । और आज भारत में कितने ही विदेशी नमक बिक रहे हैं पत्ता नहीं गांघी जी कि आत्मा को कितना दुःख होता होगा यह देख कर । हमारी सरकारो ने विदेशी कम्पनियों को नमक बनाने के लियें भी अनूमती दे दी । जरा आप बातायें कि नमक बनाने मे कॉन सी हाईटेक तकनीक हैं । समून्द्र का पानी एक जगह ईकाठा कर लेते हैं और धूप में पानी भाप बन कर ऊड जाता हैं और नमक नीचे रह जाता हैं क्या भारत के लोग इतना भी नहीं कर सकते हैं । कि विदेशी कम्पनियाओं को नमक बनाने के लिये अनूमती दे दी । गांधीजी कि आत्मा कितने आंसू बाहाती होगी यह देख कर कि जिस देश मे मेने नमक सत्यग्रह किया वहां पर आजादी के बाद भी आज तक विदेशी नमक बिक रहा हैं जरा सोचीयें कि यह कितना बडा नेशनल क्राईम हैं । अंग्रेजों ने जो - जो व्यवस्थायें बनाई सभी इस देश मे आज भी चल रही हैं । तो मैं यह कैसे मानू की यह देश आजाद हो चूका हैं । अंग्रेजों ने १८६५ में एक कानून बना दिया । उसका नाम था " ईण्डीयां फोरेस्ट एक्द " । अंग्रेजों ने यह कानून क्यों बनाया था ? भारत मे जंगल जो होते थे । वो ग्रामसभा कि सम्पति होते थे । तो गांव के लोग उन जंगलों कि देखभाल करते थें तो गांव के लोग जो मानते थे कि वो उनकी सम्पति थी । तो जंगलो को सुरक्षीत रखने के लियें गांव वालों ने पचासो तरीके अपनायें । और अंग्रेज जब पेड कटने आते थे तो गांव / आदिवासी लोगो का उनसे झगडा होता था तो अंग्रेजो ने एक कानून बना कर एक ही झटके मे उन सारी सम्पतियों को गांव से लेकर सरकार के पास हाथों मे दे दी । भारत मे आज भी एक जाति है राजस्थान में जिसका नाम है "विष्नोई" । में उस गांव मे गया हू और यह विष्नोई जाति के लोग जंगलो को बचाने के लियें आपनी जान भी देते थे । सन १८६५ में अंग्रेजों ने इस जाति के हजारो लोगों का कत्ल किया इस कानून कि मद्द से । पहले उन लोगो का गला कटता था उसके बाद पेड कटता था । इस प्रकार हाजारों लोगों ने पेडो को बचाने के लिए अपनी कूर्बानीयां दी । और आप को यह सुन कर अश्चरीये होगा कि वो ईण्डीयां फोरेस्ट एक्ट आज भी इस देश में वैसे का वैसा ही चल रहा हैं । जिन आदिवासीयों ने जंगल लगाएं हजारो वर्षो मे उन को ही कोई हक नहीं और जो जंगल कैसे लगाए जाते है नही पत्ता जिनको जंग्लों से कोई लगाव नहीं उनको जंगलों का मालीक बना दिया इस इण्डीयां फोरेस्ट एक्ट ने कानून के अनूसार । अंग्रेजों को जब किसी को मारना पीटना हो या बर्बाद करना हो तो अंग्रेज एक कानून बना देते थे । और कहते थे कि हम तो कानून का पालन कर रहे है अब आपकी जेब कट रही हैं तो हम क्या करें हम तो कानून का पालन कर रहें है । इसी कानून के कारण अंग्रेजों ने हजारों आदिवासीयों की हत्या की । और इसी कानून के अनूसार कोई भी भारतीयें जंगलों से पेड नहीं काट सकता चाहे तो अपने घर मे रोटी बनाने के लिए ही क्यों ना हो । और अंग्रेजो और उनके ठेके दारों को हजारों पेड एक ही दिन मे काट दे इसका लाईसेंस दे दिया । आज भी इस कानून का एक प्रोवीजान वैसे का वैसा ही है कि भारतीयें पेड नहीं काट सकते हैं यदि कोई पेड आप के कम्पाऊंड में हैं और वो पेड आपकी दिवार गिरा सकता हैं तो भी आप उस पेड को काट नहीं सकते हैं यदि पेड काटा तो और किसी ने शिकायत कि तो आप के विरुध्द कोर्ट कैस हो गया । दुसरी और विदेशी कम्पनियों को लाइसेंस दिया जैसे ई.टी.सी. जो सिग्रेट बनाने के लियें एक वर्ष मे १४००,००,००,००,००० पेड काट देती हैं और आपने एक पेड काट दिया तो आपको जेल हो जाएगी । अंग्रेजों ने १८९४ में एक कानून बनाया "लैण्ड अएकूजेशन एक्ट" मटलब जमीन हडपने का कानून । अंग्रेजों को जमीन हडपने में परेशानी होती थी कयोंकी लोग इसका विरोध करते थे तो अंग्रेजों ने एक कानून बना दिया "लैण्ड अएकूजेशन एक्ट" इस कानून के अनूसार अंग्रेज भारतीयों से उनकी जमीने हडप कर अंग्रेजी कम्पनियों को देते थे । बडी बडी रियास्ते हडप लेते थे जैसे झांसी कि रानी कि जमीन अंग्रेजो ने हडप ली थी । गांव के गांव हडप लिया करते थे और इस काम को करने के लियें एक अंग्रेज अफ्सर डल्होजी ने सबसे अधीक कतल करें गांव के गाव खत्म कर डालटे थे । डल्होजी के कहा कि हमे जमीन हडपने के लिए की बहूत हिन्सा करनी पडती थी तो क्यों ना हम कोई कानून बना दे, तो अंग्रेजों ने एक कानून बनाया था "लैण्ड अएकूजेशन एक्ट" । जो आज भी वैसे का कैसा ही चल रहा है आज भी जमीन किसानों से छीन कर विदेशी कम्पनियों को कोडीयों के दाम पर देते है विकास के नाम पर । पहले भी हमारी जमीन हडप कर विदेशो को अंग्रेज देते थे और आज भी वही हो रहा है तो मैं कैसे यह मानू की यह देश आजाद हो गया हैं ? अंग्रेजों ने १८६० में एक कानून बनाया "ईण्डीयां पुलीस एक्ट " और यह कानून अंग्रेजों ने इसलियें बनाया क्योंकी आप जानते होंगें कि १८५७ के विध्द्रोह को मंगल पांडे ने अंग्रेजी अफ्सर को गोळी मार दी थी क्योंकी वह जान गाया था कि जो कार्तूस उसे मूंह से खोलना पडता था उसमें गाय कि चर्भी इस्तमाल होती था उसका धर्म भ्रष्टकर दिया था तो उसने उस अंग्रेजी अफ्सर कि जान लेली जो उसे गोली चालने के लियें कहता था । और अंग्रेजों ने उसे फांसी पर चडा दिया । यह बात आग कि तरहा भारत मे फेल गाई और जगहा - जगहा पर भारतीयें लोगो व्दारा जो अंग्रेजों के लियें काम करते थे । विरोध होने लागा और उस विरोध को दबाने के लियें अंग्रेजों ने एक कानून बनाया "ईण्डीयां पुलीस एक्ट " इस के अनूसार पुलीस को हाक था कि वोह भारतीयों पर डंडा मार सकते हैं परन्तू भारतीयों को उसका विरोध करने का हक नही था । मतलाब यदि कोई पुलीस वाला आप को मार रहा है तो उसको आप को मारने का हक हैं परन्तू आप उसका डंडा भी नही पकड सकते नही तो आप पर केस होगा की आपने पुलीस वाले को उसकी डूटी करने से रोका रहें है। इस कानून के बाद तो भारत वासीयों पर जो पुलीस का डंडा बर्सा तो सारी कि सारी हदे ही पार कर दी । जगहा - जगहा पर भारत मे लाखों लोगो को डंडे से मार- मार कर जान से मार दिया । मरने वाले को राईट तो डीफेंस नही हैं पूलीस वाले को पीटने का राईट हैं इसी कानून के अधार पर १३ अप्रेल १९३० को जलियां वाला कांड हूआ था इस देश में जनरल डयर ने २० हजार लोगों जो शांति से सभा कर रहे थें पर बिना चेतावनी दियें गोलीयां चलाने का आदेश दे दिया था । और जब उस पर कोर्ट केस हुआ तो उस ने कहां कि मेरे पास गोलीयां समाप्त हो गई थी नहीं तो और आधा घंटा गोलीयां चलाता । और जज ने भी उसे बाईजत बरी किया था १८६० के उस कानून के आधार पर कि अंग्रेज पुलीस वालों को राईट टू ओफेंस हैं पर हमे राईट टू डीफेंस नहीं हैं । जो कानून अंग्रेजों ने बनायां था १८६० में वो कानून आज भी चल रहा हैं इस देश में । भारत में अंग्रेजों द्वारा इस प्रकार के ३४,७३५ कानून बनाए इस देश को बर्बाद करने के लियें जो आज भी चल रहें हैं । तो मैं कैसे यह मानू की यह देश आजाद हो गया हैं ?
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जय श्री कृष्णा!

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गौमाता

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* स्वामी दयानन्द सरस्वती कहते हैं कि एक गाय अपने जीवनकाल में 4,10,440 मनुष्यों हेतु एक समय का भोजन जुटाती है जबकि उसके मांस से 80 मांसाहारी लोग अपना पेट भर सकते हैं।* गाय का दूध, मूत्र, गोबर के अलावा दूध से निकला घी, दही, छाछ, मक्खन आदि सभी बहुत ही उपयोगी है।* मुस्लिम शासन के समय अधिकांश शासकों ने अ

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29 दिसम्बर 2015
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