आज सारी दुनिया में भारतीय चुनाव प्रणाली दोष रहित मानी जाती है भारत सहित सारी दुनिया में
भारतीय की आजादी का पुख्ता सबूत के रूप में देखा जाता है
पर विचारणीय बात यह है कि भारत में चुनाव तो 18वीं सदि में कांग्रेस के जन्म के बाद से ही शुरू हो गये थे हां उनके नाम विदेशी भाषा में हुआ करते थे
जनता के मत अनुसार तब भी जनप्रतिनिधि असंबैली में जाते थे पर मूल प्रभुसत्ता तब अंग्रेजों के पास ही रहती थी
1947 के बाद से से भारतीय चुनाव प्रणाली समृद्धता की और बड रही है यह लगातार खर्चीली हो रही है
आज आम आदमी से लेकर बड़े-से बड़ा राजनेता इससे तृस्त है अरबों लोगों को चुनाव में सक्रिय कर उनके मत प्राप्त करने मे भारी ऊर्जा संसाधन और जनसंसाधन व समय लगता है जिनका चुनाव के बाद कोई उपयोग भी नहीं रहता है
हाल में पांच राज्यों के चुनाव परिणाम के मद्देनजर हम भारतीय राजनीति व चुनाव के बाद की राजनैतिक सक्रीयता पर विचार कर रहे हैं
दरअसल भारतीय चुनाव प्रणाली प्रभुसत्ता हथियाने के सगल से अधिक कुछ नहीं है
47 के पहले चुनाव से नेता बनने को मिलता था पर प्रभुसत्ता अंग्रेजों के पास ही रहती थी
47 के बाद के भारतीय परिवेश को राजनैतिक आजादी का पर्याय माना जाता है
भारतीय राजनीति पर गंभीर चिंतन से समझ आता है कि दृश्य जो हमने देखें है उनमे बहुत कुछ एसा है
जो आवरण में हे हम भारत के लोगो के इससे अंजान रखा गया है ताकि कुछ लोग हम पर राज कर सके इसलिए जनराज को भारत में रोक दिया गया है
क्या आपने कभी विचार किया कि आज़ादी मिलती नहीं वरन आजादी प्राप्त करनी होती है मिलने वाली आजादी तो शर्तो के साथ आती है जिस आजादी से शर्ते बंधी हो उसे आजादी कहना तो स्वयं को धोखा देना है
हम भारतीय दुनिया की सबसे प्राचीन राजनैतिक इकाई है और आधी से अधिक दुनिया कभी भारतीयता से ओतप्रोत थी और यह सब एक दौ नहीं वरन लाखों वर्षों का भारतीय इतिहास है
जब अंतरराष्ट्रीय युद्ध पर विचार कर देखें तो समझ आयेगा कि दुबका पहला विश्व युद्ध भारत भूमि पर ही 5000 हजार वर्ष हो चुके है हम युद्ध की नहीं भारतीय राजनीति पर बात कर रहे हैं
इतिहास गवाह है कि हम भारतीयों ने कभी किसी को युद्ध के लिए प्रेरित नहीं किया न ही किसी पर हम कोई आक्रमण करते थे
इसका सीधा सा अर्थ है हमारी सभी आवश्यकताओं को हम स्वयं ही पूरी कर लेते रहे हमारे लिए जरूरी कोई भी वस्तु दुनिया में कहीं थी सारी दुनियाव्य से हमे व्यापार में सोना प्राप्त होता था हम समृृद्ध थे इसलिए सारी दुनिया से लोग भारत से युद्ध करते रहे हैं और की कौमों और देशों ने हम पर राज करने की कोशिश की और किया
भारतवर्ष एक विशाल भौगोलिक इकाई है यहां से मानवीय संस्कृति का उदय हुआ है दुनिया जिसे विज्ञान से पाने में लगी है हमने उसे ध्यान धारणा वह साक्षात्कार से पाया है
भारतीय जनमानस कभी भी राजनीति के प्रति आकर्षित नहीं है हमने राजनीति में प्रत्यक्ष शामिल होने की चेष्टा कभी नहीं की लाखों वर्षों से राजसी समाज और नागरिक समाज की महत्वाकांक्षाएं अलंग रही है पर अपने अपने वृत में चलते हुए हम सब कुछ त्याग कर ही अपने आप को परमात्मा के सुपुर्द करना ही मूल रूप से भारतीयता है
हजारों साल से हम पर होने वाले विदेशी हमलों और विधर्मीयो के भारतीय जनमानस में सेंधा मारी से तोड़ा गया और इस सिलसिले को अंग्रेजों इसमें आखरी कील ठोकी है हम आज उसे निकाल ने की जगह छुपा रहे हैं
अंग्रेजों ने भारत की स्वतंत्रता की चावी भारत की जनता को नही अपनी औलाद कांग्रेस को सौंप कर गये और हम भारतीय इस चुनावी राजनीति मे के चक्रव्यूह में उलझ गए
आप विचार कीजिए हमारी संसद में 544 सीट है हमने 544 सांसद संसद में भैज भी दिए पर राजनैतिक दलों की गुटबाजी के कारण हमारी संसद लंगड़ी हो जाती भारतीय संसद भिंडी बाजार बन जाती है
हमारे चुनाव आयोग ने आज तक कभी भी किसी राजनैतिक दल को चुनाव लडने का निमंत्रण नहीं दिया पर सरकार बनाने के लिए राष्ट्रपति हमेशा बहुमत दल को ही सरकार बनाने का निमंत्रण देते हैं क्या यह असंवैधानिक कृत्य नहीं कहा जाना चाहिए
संसद में राजकार्यों को पूरा करने की शपथ तो हमारे सांसद लेते हैं पर उनपर पार्टी गाइड लाइन से काम करने का दवाब
यदि पार्टी का बहुमत नही है तो सांसदों की खरीद-फरोख्त के साथ जनप्रतिनिधियों का अपहरण और राष्ट्रपति से बहुमत सिद्ध करने की बात करने वाला कोई जनप्रतिनिधि नही वल्कि दलाल होता है
सत्ता हस्तांतरण पर भारतीय संविधान में स्पष्ट सूचनाओ का अभाव है
समझिए जब भारतीय संसद में हमारे 544 सांसद तब प्रधानमंत्री की चुनाव राजनैतिक दलों के आधार पर न होकर सांसदों पर आधारित होना चाहिए
किसी भी भारतीय नागरिक को प्रधानमंत्री पद पर दावेदारी का अधिकार है हमारे 544 सासंदों को उसे चुनने का अधिकार होना चाहिए
और जीते हुए नागरिक को प्रधानमंत्री व उसे सभी 544 सांसदों के साथ देश के किसी भी व्यक्ति को अपने मंत्री मंडल बनाने का अधिकार होगा चाहिए
असल में भारतीय प्रभुसत्ता अंग्रेज एक राजनैतिक दल को दिए थे तबसे ही यह एक दल से दूसरे दल में ट्रांसफर हो रही है
यही मूल कारण है जो भारत में सरकारें जन सरकार न होकर राजनैतिक दल की सरकार होती है जिसमे जनता गुलाम नेता बे इमान और प्रशासन दलाल होता और पंचवर्षीय योजनाएं बाबू गिरी उलझ कर अर्थ हीन हो जाती हैं औआज सारी दुनिया में भारतीय चुनाव प्रणाली दोष रहित मानी जाती है भारत सहित सारी दुनिया में
भारतीय की आजादी का पुख्ता सबूत के रूप में देखा जाता है
पर विचारणीय बात यह है कि भारत में चुनाव तो 18वीं सदि में कांग्रेस के जन्म के बाद से ही शुरू हो गये थे हां उनके नाम विदेशी भाषा में हुआ करते थे
जनता के मत अनुसार तब भी जनप्रतिनिधि असंबैली में जाते थे पर मूल प्रभुसत्ता तब अंग्रेजों के पास ही रहती थी
1947 के बाद से से भारतीय चुनाव प्रणाली समृद्धता की और बड रही है यह लगातार खर्चीली हो रही है
आज आम आदमी से लेकर बड़े-से बड़ा राजनेता इससे तृस्त है अरबों लोगों को चुनाव में सक्रिय कर उनके मत प्राप्त करने मे भारी ऊर्जा संसाधन और जनसंसाधन व समय लगता है जिनका चुनाव के बाद कोई उपयोग भी नहीं रहता है
हाल में पांच राज्यों के चुनाव परिणाम के मद्देनजर हम भारतीय राजनीति व चुनाव के बाद की राजनैतिक सक्रीयता पर विचार कर रहे हैं
दरअसल भारतीय चुनाव प्रणाली प्रभुसत्ता हथियाने के सगल से अधिक कुछ नहीं है
47 के पहले चुनाव से नेता बनने को मिलता था पर प्रभुसत्ता अंग्रेजों के पास ही रहती थी
47 के बाद के भारतीय परिवेश को राजनैतिक आजादी का पर्याय माना जाता है
भारतीय राजनीति पर गंभीर चिंतन से समझ आता है कि दृश्य जो हमने देखें है उनमे बहुत कुछ एसा है
जो आवरण में हे हम भारत के लोगो के इससे अंजान रखा गया है ताकि कुछ लोग हम पर राज कर सके इसलिए जनराज को भारत में रोक दिया गया है
क्या आपने कभी विचार किया कि आज़ादी मिलती नहीं वरन आजादी प्राप्त करनी होती है मिलने वाली आजादी तो शर्तो के साथ आती है जिस आजादी से शर्ते बंधी हो उसे आजादी कहना तो स्वयं को धोखा देना है
हम भारतीय दुनिया की सबसे प्राचीन राजनैतिक इकाई है और आधी से अधिक दुनिया कभी भारतीयता से ओतप्रोत थी और यह सब एक दौ नहीं वरन लाखों वर्षों का भारतीय इतिहास है
जब अंतरराष्ट्रीय युद्ध पर विचार कर देखें तो समझ आयेगा कि दुबका पहला विश्व युद्ध भारत भूमि पर ही 5000 हजार वर्ष हो चुके है हम युद्ध की नहीं भारतीय राजनीति पर बात कर रहे हैं
इतिहास गवाह है कि हम भारतीयों ने कभी किसी को युद्ध के लिए प्रेरित नहीं किया न ही किसी पर हम कोई आक्रमण करते थे
इसका सीधा सा अर्थ है हमारी सभी आवश्यकताओं को हम स्वयं ही पूरी कर लेते रहे हमारे लिए जरूरी कोई भी वस्तु दुनिया में कहीं थी सारी दुनिया से हमे व्यापार में सोना प्राप्त होता था हम समृृद्ध थे इसलिए सारी दुनिया से लोग भारत से युद्ध करते रहे हैं और की कौमों और देशों ने हम पर राज करने की कोशिश की और किया
भारतवर्ष एक विशाल भौगोलिक इकाई है यहां से मानवीय संस्कृति का उदय हुआ है दुनिया जिसे विज्ञान से पाने में लगी है हमने उसे ध्यान धारणा वह साक्षात्कार से पाया है
भारतीय जनमानस कभी भी राजनीति के प्रति आकर्षित नहीं है हमने राजनीति में प्रत्यक्ष शामिल होने की चेष्टा कभी नहीं की लाखों वर्षों से राजसी समाज और नागरिक समाज की महत्वाकांक्षाएं अलंग रही है पर अपने अपने वृत में चलते हुए हम सब कुछ त्याग कर ही अपने आप को परमात्मा के सुपुर्द करना ही मूल रूप से भारतीयता है
हजारों साल से हम पर होने वाले विदेशी हमलों और विधर्मीयो के भारतीय जनमानस में सेंधा मारी से तोड़ा गया और इस सिलसिले को अंग्रेजों इसमें आखरी कील ठोकी है हम आज उसे निकाल ने की जगह छुपा रहे हैं
अंग्रेजों ने भारत की स्वतंत्रता की चावी भारत की जनता को नही अपनी औलाद कांग्रेस को सौंप कर गये और हम भारतीय इस चुनावी राजनीति मे के चक्रव्यूह में उलझ गए
आप विचार कीजिए हमारी संसद में 544 सीट है हमने 544 सांसद संसद में भैज भी दिए पर राजनैतिक दलों की गुटबाजी के कारण हमारी संसद लंगड़ी हो जाती भारतीय संसद भिंडी बाजार बन जाती है
हमारे चुनाव आयोग ने आज तक कभी भी किसी राजनैतिक दल को चुनाव लडने का निमंत्रण नहीं दिया पर सरकार बनाने के लिए राष्ट्रपति हमेशा बहुमत दल को ही सरकार बनाने का निमंत्रण देते हैं क्या यह असंवैधानिक कृत्य नहीं कहा जाना चाहिए
संसद में राजकार्यों को पूरा करने की शपथ तो हमारे सांसद लेते हैं पर उनपर पार्टी गाइड लाइन से काम करने का दवाब
यदि पार्टी का बहुमत नही है तो सांसदों की खरीद-फरोख्त के साथ जनप्रतिनिधियों का अपहरण और राष्ट्रपति से बहुमत सिद्ध करने की बात करने वाला कोई जनप्रतिनिधि नही वल्कि दलाल होता है
सत्ता हस्तांतरण पर भारतीय संविधान में स्पष्ट सूचनाओ का अभाव है
समझिए जब भारतीय संसद में हमारे 544 सांसद तब प्रधानमंत्री की चुनाव राजनैतिक दलों के आधार पर न होकर सांसदों पर आधारित होना चाहिए
किसी भी भारतीय नागरिक को प्रधानमंत्री पद पर दावेदारी का अधिकार है हमारे 544 सासंदों को उसे चुनने का अधिकार होना चाहिए
और जीते हुए नागरिक को प्रधानमंत्री व उसे सभी 544 सांसदों के साथ देश के किसी भी व्यक्ति को अपने मंत्री मंडल बनाने का अधिकार होगा चाहिए
असल में भारतीय प्रभुसत्ता अंग्रेज एक राजनैतिक दल को दिए थे तबसे ही यह एक दल से दूसरे दल में ट्रांसफर हो रही है
यही मूल कारण है जो भारत में सरकारें जन सरकार न होकर राजनैतिक दल की सरकार होती है जिसमे जनता गुलाम नेता बे इमान और प्रशासन दलाल होता और पंचवर्षीय योजनाएं बाबू गिरी उलझ कर अर्थ हीन हो जाती हैं
पश्चिम बंगाल चुनाव परिणाम: मोदी की भाजपा ने महत्वपूर्ण चुनाव हार गए, लेकिन अभी भी भारत के कोविद संकट के बावजूद लाभ कमा रहे हैं
एक आदमी एक मेज के सामने खड़ा है: प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी 12 अप्रैल, 2021 को पश्चिम 24 परगना, भारत में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के लिए एक सार्वजनिक रैली को संबोधित करते हैं।© समर जन / हिंदुस्तान टाइम्स / सिपा यूएसए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 12 अप्रैल, 2021 को उत्तर 24 परगना, भारत में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के लिए एक सार्वजनिक रैली को संबोधित करते हैं।
भारत के पश्चिम बंगाल राज्य में प्रमुख मुख्यमंत्री की पार्टी ने राज्य के चुनाव में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की पार्टी को हरा दिया है क्योंकि देश के कोरोनोवायरस महामारी संकट के स्तर पर पहुंच गई है।
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पश्चिम बंगाल चुनाव परिणाम: मोदी की भाजपा ने महत्वपूर्ण चुनाव हार गए, लेकिन अभी भी भारत के कोविद संकट के बावजूद लाभ कमा रहे हैं
एक आदमी एक मेज के सामने खड़ा है: प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी 12 अप्रैल, 2021 को पश्चिम 24 परगना, भारत में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के लिए एक सार्वजनिक रैली को संबोधित करते हैं।© समर जन / हिंदुस्तान टाइम्स / सिपा यूएसए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 12 अप्रैल, 2021 को उत्तर 24 परगना, भारत में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के लिए एक सार्वजनिक रैली को संबोधित करते हैं।
भारत के पश्चिम बंगाल राज्य में प्रमुख मुख्यमंत्री की पार्टी ने राज्य के चुनाव में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की पार्टी को हरा दिया है क्योंकि देश के कोरोनोवायरस महामारी संकट के स्तर पर पहुंच गई है।