ज़रूरत पड़े तो वही लोग क्यों याद आते हैं जिनको हम भूल जाए करते हैं
सबसे पहले वही क्यों दिखते हैं जिनके सामने आने से हम छिपते हैं
आजका एक वाक्या सुनाती हूँ
आपको बताकर थोड़ा सा हंसाती हूँ
बारिश हो रही थी बाहर बराबर
पर पढ़ाना था स्कूल भी जाकर
सोचा चलो सुंदर सा छाता निकालती हूँ,
आज बारिश में थोड़ा रंग जमाती हूँ।
इधर देखा उधर देखा ,जहाँ मिल सकता था सभी ओर देखा ,पर लग रहा था मानो उसे लग चुका है पता तो सोच रहा होगा इससे दूर ही भागो।
बार-बार एक काला छाता आ रहा था सामने ,जिसे शायद व्यर्थ समझकर डाल दिया था कोने में।
उसे किनारे कर-करके मैं सुंदर छाता ढूँढती थी,पर लगता वो
मुझसे कहता साथ तुम्हारे सदा हूँ मैं बस तुम ही मुझसे रूठती थीं।
और कोई चारा न दिखा , मुझे मेरा छाता न मिला।
अब तो समय बचा नहीं था साथ काले छाते ने छोड़ा नहीं था ,मंज़िल तक पहुंचाया उसने।
समझ मे आयी बात मेरे जो दिल से सुंदर वही है सुंदर बाकी जगत है सिर्फ बवंडर।