मद्रास की एक सभा में स्वामी विवेकानन्द के परिचय में कहा गया कि वे अपना घर-परिवार, धन-संपत्ति, मित्र बंधु, राग-द्वेष तथा समस्त सांसारिक कामनाएं त्याग चुके हैं। इस सर्वस्वत्यागी जीवन में यदि अब भी वे किसी से प्रेम करते हैं, तो वह भारतमाता है; और यदि उन्हें अब भी कोई दुख है, तो भारतमाता तथा उसकी संतान के अभावों और अपमान का दुख ह । स्वामी जी ने भारतमाता को अपमानित और कलकित करने वालों के देश में पहुंचकर उनकी जनता की पंचायत में उनकी भूल दर्शाई अपनी मां के गौरव को स्थापित 1 किया। यह कृति इसी सारी प्रक्रिया का विश्लेषण करती है। इसे हम उपन्यास की शैली में लिखी गई जीवनी कह सकते हैं।
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