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बुंदेली

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*बुंदेली कुण्डलिया:-*दारू में गुन भौत है,   दारू करती   ढ़ेर।दारू से कइयक मिटे,  पार लगे ना फैर।।पार लगे ना   फेर, ग्रहस्थी  चौपट  देखें |आन-वान सँग 

#जय_बुंदेली_साहित्य_समूह #बुंदेली दोहा बिषय- #बतकाव सबइ  जगत्तर  जानतइ , बुंदेली  बतकाव | लगै रसीले आम-सो , #राना सबखौ भाव || जौ अपने बतकाव से , सबखौ लेतइ जीत | #राना ऊकै पास से , दूर

बुंदेली चौकडि़या-"पानी"     *****बिकबै, दूध भाव से पानी, नशलें नयी नशानी।।गैया कौ बौ दूध बताबै, करत सदां बेमानी।।पानी दैकै हाथ बना रय,चतुर बढ़े रमजानी।।आय मिलौनी, कहै निपनिया,भ

*बुंदेली दोहा बिषय- गुदना*गुदनारी गुदना गुदे,गोरी के ही गाल।गोला गरे बना रई,गोरी भई गुलाल।।***16-5-2022*© राजीव नामदेव "राना लिधौरी" टीकमगढ़*           संपादक- "आकांक्षा"

*बिषय-अत्त*

*1*

अत्त करे हलके कभी,

छमा करो श्रीमान।

अगर बडे से होय तो

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