सुनो द्रोपदी शस्त्र उठा लो, अब गोविंद ना आएंगे छोड़ो मेहंदी खड़ग संभालो खुद ही अपना चीर बचा लो द्यूत बिछाए बैठे शकुनि, ... मस्तक सब बिक जाएंगे सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो, अब गोविंद ना आएंगे |
घरेलू हिंसा अब इस पर लोगों की मानसिकता के बारे में क्या ही कहे ।एक औरत किस किस तरह इस हिंसा का शिकार होती है, कभी दहेज़ के नाम पर कभी अपनी मर्जी की जिंदगी के ख़्वाब सजाने पर भी पर आज मै तुमसे एक पुरुष
जिंदगी दर्द का दरिया... सुन ऐ जिंदगी मेरी आंखों में आसूं है मगर टूटी नही हूं रो रही हूं बेशक मगर कमजोर नहीं हूं जिंदगी दर्द का दरिया है मेरी कस्ती भंवर में फसी है होंसले बुलंद ह
हमारा देश भारत त्योहारों का देश है। यहां अनेक त्योहार धूमधाम से खुशी और उमंग के साथ मनाए जाते हैं। इन त्योहारों में हिंदुओं का एक त्यौहार हरितालिका तीज का है, जिसे कजली तीज भी कहते हैं। यह त्योहार यहा
पब्लिशर आर्टिकल सारांश 17/8
*बुंदेली कुण्डलिया:-*दारू में गुन भौत है, दारू करती ढ़ेर।दारू से कइयक मिटे, पार लगे ना फैर।।पार लगे ना फेर, ग्रहस्थी चौपट देखें |आन-वान सँग
ब्याह के किसी की लख़्ते जिगर को वह कमीना इस क़दर पीट रहा है। 🙇 बूढ़े हैं मां-बाप सह न पायेंगे सोचकर मासूम ने सब्र किया है 🙇रुकते नहीं आंसू देख ये नजा़रा क्यों दुनिया को चाहिए दहेज का पिटारा 🙇कुचल
गाजे-बाजे के साथ आई बारात ढ़ोल नगाड़ों से किया स्वागत लड़की वालों ने फिर लड़के वालों की, की आवभगत रस्में निभाई जा रहीं थीं दावत उड़ाई जा रही थी तभी अचानक शौर हुआ दूल्हा दहेज के लिए अड़ गय
मैं अफसर बेटी पढ़ लिख कर, मेहनत कर हासिल किया मुकाम कमाई इज्जत, शोहरत, पैसा और कमाया नाम मान प्रतिष्ठा, रुतबा मुझको मिला तमाम वाहवाही खूब लूटी मैं अफसर बे
मदर्स डे, फादर्स डे, ब्रदर्स डे, फ्रेंडशिप डे हर रिश्ते को हम विशेष दिवस मनाते हैं तो बहू डे कब मनाते हैं विशेष दिवस पर चॉकलेट, गिफ्ट दिलाते हैं खूब स्टेटस लगातें है
घरेलू हिंसा होती नही सिर्फ मार से ये शुरू हो जाती है बातो के वार से कोई किसी को आंख दिखाता है तो कोई गाली गलोच पर उतर जाता है ये ही वाद विवाद हिंसा पर उतर जाता है । जो पति पत्नी के संबंध विच
9/8/2022प्रिय डायरी, आज शब्द.इन ने विषय दिया है घरेलू हिंसा, घरेलू हिंसा अर्थात मार पीट और गाली गलौज ये गल
डियर काव्यांक्षी कैसी हो प्यारी, मै अच्छी ही आज का विषय मिला घरेलू हिंसा अब इस पर लोगों की मानसिकता के बारे में क्या ही कहे तुम्हे तो पता ही है एक औरत किस किस तरह इस हिंसा का शिकार ह
आतंक केवल आतंकवादी से नही होता।शगुन ने आतंक प्रत्यक्ष देखा है।वह आतंक के साये मे जी है।शगुन अपने माँ बाप की इकलौती संतान थी।मुँह से बाद मे निकालती थी चीज पहले हाजिर हो जाती थी।लाड प्यार से पली-बढ़ी थी