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सियासी मुशायरा

28 नवम्बर 2021

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(एक बार की बात है— संसद चल नहीं पा रही थी, गतिरोध अपने चरम पर था और ऐसे में कोई और रास्ता न निकलते देख, सांसदों के बीच समन्वय बनाने के लिये तय हुआ कि एक मुशायरा कर लिया जाये।

सब तैयार हो गये।

(हाल में गद्दे डला दिये गये... एक तरफ पढ़ने वाले नगीने बिठा दिये गये और सामने बाकी सांसद "श्रोता मोड" में बिठा दिये गये। दो माइक वाला बैठका पढ़ने वाले नमूनों के लिये सज गया और तय हुआ कि मुशायरों के सभी रूल फॉलो किये जायेंगे और हस्बे दस्तूर अंडे, टमाटर और जूतों का भी व्यापक प्रबंध कर लिया गया। बाकी इधर उधर मुशायरों में इस्तेमाल होने वाला सड़ा गला धूल खाया संचालक भी अरेंज करके रिफ्रेश कर लिया गया।)

संचालक: तो जनाब, ख्वातीनों हज़रात, जैसा कि आप सभी जानते हैं कि यहाँ सभी नमूने मुशायरा मुशायरा खेलने को इकट्ठे हुए हैं. तो एक भोंपू तो हस्बे दस्तूर मेरे कने ही रहेगा और बाकी के शायर-ए-हिन्द, अपने शब्दों से पूरे देश को उल्लू बनाने के महारथी इन भोंपुओं पर अपनी कला के जौहर दिखाएंगे और ये महान विभूतियाँ हैं मोदी जी, राहुल जी, सोनिया जी, मुलायम जी, मायावती जी, स्मृति जी, राजनाथ जी, नायडू जी और मेहमान कलाकार रहेंगे केजरीवाल और लालू जी।

(श्रोताओं ने टेबल थपथपाने के अंदाज़ में शोर किया।)

संचालक: परफेक्ट... तो पहला नमूना— ऊप्स, माफ़ी चाहूंगा... मन के शब्द फिसल गये साले। तो पहले योद्धा के तौर पर आपके सामने आयेंगे वो, जिन्हें देख कर आपको अपना बचपन याद आ जायेगा जब आप बैंगन में आँख, नाक, मुंह बना लेते थे।

(नायडू संचालक को घूरते 56 इंची बैक लिये माइक पर सरके।)

नायडू: तो हम पेश करता अपना जज़्बात... थोड़ा आप लोग अपना भावनओं पे काबू रखियेगा... अंडा, टमाटर हम कच्चा नहीं खाता।

("चप्पल-जूते खा लीजियेगा हुज़ूर" की आवाज़ पीछे से आयी। नायडू ने पलट के देखा तो सबने राजनाथ सिंह की तरफ ऊँगली उठा दी।)

राजनाथ: मैं नहीं— मैं नहीं नायडू साहब, मैं इन सब की कड़ी निंदा करता हूँ। आप कढ़ी चावल पकाइये।

नायडू: क्या राजनाथ जी— यहाँ तो निंदा करनी छोड़िये। खैर... भाइयों और भाइयों की बहनों—

संचालक: आपकी नहीं हैं बैंगन शरीफ।

नायडू: शायरी सुनाऊँ या बिल ठन्डे बस्ते में डाल दूँ।

संचालक: इरशाद— इरशाद—

नायडू: इरशाद कहाँ है... वो सुनेगा तो नहीं सुनाऊंगा।

पीछे से मोदी: अबे घोण्डू... रायता मत फैला— सुना भी डाल।

नायडू: ठीक है— तो सुनिये...

मैं एक फिसलन भरी राह का राही हूँ

मैं एक फिसलन भरी राह का राही हूँ

मुझे गर्व है कि मैं संघ का सिपाही हूँ।

(कुछ "वाह-वाह" आगे पीछे से गूंजे तो कुछ अंडे टमाटर हवा में उछले— जिन्हें पूरी सफाई से मंच वालों ने कैच कर लिया।)

नायडू: आगे अर्ज़ किया है...

जब भी तन्हाई में अपनी जात पे गौर करता हूँ

जब भी तन्हाई में अपनी जात पे गौर करता हूँ

मैं आदमी हूँ और आदमी से प्यार करता हूँ

संचालक: हाउ रिअलिस्टिक— झकास मामू। दिल का दर्द बयान कर दिया।

(इस बार "वाह-वाह" के साथ उछले अंडे बैंगन को चोटिल कर गये, पर संघ का सिपाही मंच पे डटा रहना चाहता था, लेकिन भला हो पीछे वालों का कि पीछे से टाँगे पकड़ कर खींच लीं और लुंगी खुलने का डर हावी हो गया।)

संचालक: तो एक विकेट गिरने के बाद अब आयेंगे ज़हरीली खांसी के धुरंधर अरविन्द केजरीवाल। इनकी जितनी तारीफ की जाये कम है— इन्हें ऐसे ही रायता किंग थोड़े कहा जाता है। पधारिये गुरु जी।

(पर स्वागत ही अंडे और टमाटरों से हुआ— कुछ कैच हुए तो कुछ फ़ैल गये।)

केजरीवाल: सब मिले हुए हैं जी... मैं तो कहता हूँ कि मुझे शेर पढ़ने से रोका जा रहा है— इसमें भी केंद्र की साज़िश है।

पीछे से राजनाथ: मैं इसकी कड़ी निंदा करता हूँ।

(पीछे वालों ने राजनाथ सिंह को टिपिया लिया और भीड़ से किसी ने अंडा भी खींच मारा।)

संचालक: अरे हज़रत आलूबुखारा, ये शिकायत बाहर कर लीजियेगा— यहाँ शायरी फेंकिये।

केजरीवाल: जी जनाब... तो गौर कीजियेगा ए चुनाव आयोग—

हमें तो तुमने मारा है, मोदी जी में कहाँ दम था

हमें तो तुमने मारा है, मोदी जी में कहाँ दम था

कुछ तुम्हारी ईवीएम ने मारा, कुछ हमारा वोटर भी कम था।

("वाह-वाह" के साथ अंडे टमाटर की बौछार हुई— पूरी कुशलता से कैच किये गये। जो जूते आये, वो जमा कर लिये गये।)

संचालक: जब वोटर ही कम था तो शिकायत ईवीएम से क्यों?

केजरीवाल: शिकायत करना हमारा काम है जी। एक शायरी और बर्दाश्त कीजिये...

तुम यूज़ कर लो हमारे खिलाफ कपिल पंडे को

चला लो कितना भी हम पे एल जी के डंडे को

लेकिन जो रायता फैलाया हमने फ्राइडे को

वहीँ फैलाएंगे हम फिर एक बार सन्डे को।

(इस बार कोई रिस्पॉन्स ही नहीं मिला, सबने बर्दाश्त ही कर लिया और बड़े बेआबरू हो के कूचे से बाबूजी खांसते हुए रुखसत हुए।)

संचालक: और अब आ रही हैं त्याग और बलिदान की जीती जागती मैडम तुषाद की स्टैच्यू... हजरात, आपसे गुजारिश है कि शब्दों पे न जाइयेगा और भावना को ढूंढ-ढूंढ कर पकड़ियेगा। आइये सोनिया जी।

सोनिया: आदाब... मुझे सायरी आती तो नहीं, पर आजकल करने को कुछ है नहीं तो इसी में टाईमपास करते हैं।

संचालक: जी-जी, हम 45-50 की पीड़ा समझ सकते हैं... आप अर्ज कीजिये।

सोनिया: मैं अपनी बात चांद शब्दों में खतम खरना चाहूंगी... थोरा गोर कीजियेगा...

इब्ने बटाटा... इब्ने बटाटा

हकूना मटाटा... हकूना मटाटा

सस्ता हो गया डाटा

मंहगा हो गया आटा

इलाज का वादा कर के

रोग है मोदी जी तुमने बाटा

और आखिर में कहना चाहूंगी...

हाय मोदी तेरे राज में

गरीब को पड़ गया चांटा 

संचालक: वाह-वाह मम्मी जी... बहुत खूब... छील दिये एकदम।

(महिला के सम्मान में... सारे सांसद उतर आये मैदान में। कोई अंडा टमाटर न चला और न चली चप्पल और देवी जी जा बिराजी अपने आसन पर।)

संचालक: और अब आयेंगी, बहनों की बहन, सुपर बहन... बहन मायावती, जिनकी आवाज में जादू है... बहन जी गा के सुनायेंगी।

मायावती: का हय कमीने... सबसे पढ़वा रहा है और मैं गा के सुनाऊं रे दलित विरोधी।

संचालक: अच्छा चलिये, सिपारा पढ़ दीजिये बहन जी। पर्ची तो लायी होंगी न।

(बहन जी पर्ची दिखाती आगे सरक आती हैं और पीछे खुसुर फुसुर शुरू हो जाती है कि भला बहन जी ने एग्जाम कैसे दिया होगा। बहन जी पलट कर घूरती हैं तो सबकी उंगलियां राजनाथ की तरफ उठ जाती हैं।)

राजनाथ: मैं इस बात की भी कड़ी निंदा करता हूँ बहन जी

मायावती: अरे चुप कर निंदा रावण।

संचालक: टेम न वेस्ट कीजिये बहन जी, वर्ना माईक रूठ जाता है और पर्ची जोर से पकड़ियेगा... हवा चल रही है।

मायावती: अब तुझे भी मेरी निंदा चाहिये क्या रे। सज्जनों... देख रहे हैं मनुवादियों को, बहन कह कर भी छेड़ने से बाज नहीं आते। खैर... मैं चार लाईन की अपनी शायरी पेश कर रही हूँ, सुन लीजिये...

गद्दार चौधरी, गद्दार मौर्या, गद्दार निकला नसीमुद्दीन

गद्दार चौधरी, गद्दार मौर्या, गद्दार निकला नसीमुद्दीन

और सब छोड़ भगे जब गेंडे ने बजायी बीन

चुनाव में मुसलमानों ने हमें गोली दी तो दी

मेरे अपने दलित भाई भी हो गये ससु मीन

हारी हूं, बैठी नहीं हूं, कसम हाथी की

पा लूंगी आस्मां, पा लूंगी अपनी खोई हुई जमीन

("वाह-वाह" आगे पीछे से फिर हुई, पर अंडे टमाटरों ने फिर महिला का सम्मान किया।)

मायावती: एक और पढ़ूं?

(संचालक ने पास चलते फर्राटा का रुख उनकी तरफ कर दिया और पर्ची ससुरी उड़ गयी।)

संचालक: अब पढ़िये।

मायावती: आने दे मेरी सरकार को... तेरी बैक पे मुल्तानी मिट्टी डलवा के वहां पुदीना उगवाऊंगी।

संचालक: तो लीजिये हाजरीन... अब पेश है दुनिया का सबसे घातक हथियार-- निंदास्त्र बनाने वाले राजनाथ सिंह जी, जो सिर्फ अपनी निंदा से पाकिस्तान की नाक में दम करते आये हैं, अब आपके बम में दम करेंगे... आइये टीनपुरुष निंदानाथ जी।

राजनाथ: टीन पुरुष।

संचालक: लौहपुरुष तो वृद्धाश्रम में मार्गदर्शन कर रहे हैं, वहीं जाना हो तो कहिये, वो पदवी दे दें।

राजनाथ: नहीं नहीं रहने दीजिये। टीन पुरुष ही ठीक है। तो बहनों भाइयों... सीमा पर सैनिक शहीद हो रहे हैं, कुछ बोलने का मन तो नहीं पर अब जब बुलाया गया है तो...

संचालक: बुलाया गया है।

राजनाथ: गंगा मय्या ने बुलाया है।

संचालक: हाऊ रूड... साहेब के जूते में पांव न डालिये, वो सिर्फ मोदी जी को बुलाती हैं, नमामि गंगे का हिसाब लेने। कुछ शेर बकरी लाये हों तो परोसिये... अंडे टमाटर बेचैन हो रहे हैं।

राजनाथ: जी। जरूर... जरूर। तो गौर फरमाइये हजरात...

बेजा इल्जाम है कि हम देश को शर्मिंदा करते हैं

बेजा इल्जाम है कि हम देश को शर्मिंदा करते हैं

हम तो बस साधारण, कड़ी, कठोर निंदा करते हैं

भुला दी वामपंथी इतिहासकारों ने जिनकी वीरता

हम उन संघी जायके वाले नायकों को जिंदा करते हैं

("वाह-वाह" की जबर छौंक के साथ अंडे, टमाटर, जूतों का बघार हुआ... संगमरमरी चांद को रुमाल से बचाने की कोशिश में वापस ठाकुर साब अपने आसन पर जा लुढ़के।)

संचालक: और ठाकुर निंदानाथ जी का विकेट गिरने के बाद अब आयेंगे लैंड पुत्र... तलफ्फुस पे गौर कीजियेगा, मामला धरतीपुत्र का है, मने नेता जी अब Rलेस शायरी फेकेंगे, "आर" से उन्हें बचपन से शिकायत है तो वे उसे सीधा खा जाते हैं।

मुलायम: तोय का इंसल्ट कओगे हमाई... हमाई मज्जी, हम आ बोलें न बोलें।

संचालक: चलिये खा लीजिये, हमाई बला से... कुछ धोती में बंधा हो तो छुड़ाईये।

मुलायम: धोती मा तुमाई अम्मा बंधी हय।

संचालक: अरे नेता जी, अक्लेस का क्लेस हमपे उताएंगे का, कुछ डालिये शेर बकरी।

मुलायम: हाँ तो लेव न... हमाई धोती से लंगोटी तक सब उत्त पदेस से जुड़ी हय तो शायई भी उत्त पदेस से होगी।

संचालक: हाँ तो राजस्थान के चुनाव के बाद सुनायेंगे का।

मुलायम: तो सुनो... अज्ज किया हय...

खता न थी छिपाल की, न थी अकलेस की

गोटी फिट कई दियो थी नारद ने क्लेस की

कहां सपने थे हमाए केन्द की ताकत बन्ने के

कहां सत्ता भी न बची हमाए उत्त पदेस की

और अंत में बउवा के बिहाफ में

कभी सत्ता आती है तो कभी सत्ता चली जाती है

औ लइके हैं लइकों से तो गलती हो ही जाती है 

("वाह-वाह" के साथ अंडे टमाटर का प्रसाद नाजिल हुआ ही था कि राहुल बाबा मचल गये।)

राहुल: अब मैं सुनाऊंगा... मैं सुनाऊंगा।

संचालक: क्या सुनायेंगे नवाब साहब?

राहुल: शायरी, मैं और मेरा कांपलान।

(पीछे बैठी शोअरा कराम की टीम ने वहीं गिरा कर टिपिया लिया... माता ने बचाया, तो बमुश्किल युवराज मुक्ति पाये।)

राहुल: अबे सालों, मम्मी को साथ बिठा कर शायरी करवाओगे तो कांपलान की ही करूँगा, न कि सनी लियोन की।

संचालक: चलिये आ जाइये, दिल के छाले फोड़ लीजिये।

राहुल: थैंक्यू-थैंक्यू, तो पेश है मेरा मैनीफेस्टो

संचालक: अरे युवराज, मुशायरा है प्रेस कांफ्रेंस नहीं, मैनीफेस्टो बाद में पढ़ लीजियेगा।

राहुल: अबे चुपेगा या आस्तीन चढ़ाऊं... नेता शिट भी पालिटिकल स्टाईल में करता है, हम मैनीफेस्टो ही पढ़ेंगे। तो दोस्तों, सुनिये और दाद दीजिये।

संचालक: इरशाद... इरशाद।

राहुल: तेल लेने गये हैं, हाँ तो मुलाहिजा फरमाइये...

जब भी मैं परेशान हुआ

मेरे पास मेरा कांपलान हुआ

गिरा दूंगा, ढहा दूंगा, ध्वस्त कर दूंगा तुम्हारे वकार को

मेरे कांपलान को हाथ लगाया तो उखाड़ दूंगा सरकार को

भले दुनिया भोजन, रोजगार, न्याय को तरसती है

लेकिन मेरी तो दुनिया ही कांपलान में बसती है

बस यही क्राईम मैं बेशुमार करता हूँ

मैं अपने कांपलान से बहुत प्यार करता हूँ

(पहले मतले के साथ ही अंडे, टमाटर, जूते चलने लगे थे, लेकिन बाबा माईक छोड़ने को राजी नहीं थे तो पीछे वालों ने टांगे पकड़ कर खींच ली और अपने बीच बिठा लिया।)

संचालक: और जैसा कि आप देख रहे हैं कि हम कांपलान पुराण से मुक्ति पा चुके हैं तो अब चुराया हुआ चारा शायरी की शक्ल में लेकर पेश होंगे वह, जिनके कानों में भी रेशमी जुल्फें हैं..

(लालू ने पास पड़ा अंडा संचालक को खींच मारा।)

राजनाथ: मैं इसकी कठोर निंदा करता हूँ।

लालू: हाँ तो करते रहो बुड़बक। हुर्रर्रर्रर्र। हाँ तो भाई खरा, जादा तो हम बोलते नहीं हैं तो रचिसे बोलेंगे... गौर कीजिये...

चिप्स में आलू से और बिहार में लालू से

मुक्ति मिलना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है।

संचालक: इसमें शेर कहां है?

लालू: अबे हम यादव हैं... इसमें नौ मन की भैंस है और तुम छटांक भर का शेर ढूंढ रहे हो, लो एक ठो और सुनो...

अनुराग की बीवी थी कालकी

फिलम बनाता है आर बालकी

कुछ उखाड़ न पहियो गुदड़ी के लाल की

हाँ तो प्रैम से बोलो, जय कनहइयालाल की

(इस बार तो ससुरे अंडे, टमाटर, जूते सब खत्म ही हो गये।)

(तो लालू जी को सारे अंडे, टमाटर खत्म कराते देख अपने साहेब की खुशी का ठिकाना न रहा।)

मोदी: अंडे टमाटर कांग्रेस की तरह खत्म हो चुके हैं तो हम आयें अब।

संचालक: अरे आलीजाह, अभी तो 'डियर' स्मृति जी...

मोदी: उनके अल्फाज भी हमारे मुंह से निकल कर धन्य हो जायेंगे। संसद के राजपाल यादव, तुम सोच भी नहीं सकते कि मंच और माईक देख कर जब्त करना कितना मुश्किल है हमारे लिये... पेट में गुड़गुड़ होने लगी है।

संचालक: जी समझ क्यों नहीं सकते बाबा झोले वाले... पूरा देश ही आपकी इस अवस्था को समझता है।

मोदी: तो बुलाते क्यों नहीं... पता तो है कि शायरी से मेरा बचपन से नाता है और मैं बचपन से शायर बनना चाहता था।

संचालक: जी-जी... तो जनाबे हाजरीन, अब आपके सामने पेश हैं शायर-ए-हिंद-- सेल्फ डिक्लेयर्ड... श्री नरेन्द्र दास ब्राहमोस जी।

मोदी: ब्राहमोस।

संचालक: आपका तखल्लुस है... फेंकने के लिये इससे उम्दा प्रतीक भला और कहां मिलेगा।

(आसपास पड़े सारे अंडे टमाटर साहेब ने फेंक मारे, पर होशियार चंद भाग कर श्रोताओं के बीच जा बैठा।)

संचालक: मुझे बाद में मार लीजियेगा, पहले फेंक लीजिये। कहीं पेट की गुड़गुड़ाहट गैस में तब्दील हो गयी तो अंबानी साब को यहीं से सप्लाई मिल जायेगी।

मोदी: हाँ तो मित्रोंऽऽऽऽ

संचालक: अर्रर्रर्रर्र, यह रैली नहीं है साहेब...

मोदी: अच्छा-अच्छा, स्लिपिंग फाल्ट है, कृपया डिलीट मारें। हाँ तो भाइयों बहनों, पेश है एक हरी ताजी शायरी...

संचालक: आप शायरी सुनाइये, क्वालिटी हम लोग डिसाइड कर लेंगे।

मोदी: लगता है तेरी भी निंदा करनी पड़ेगी, छोटे रीचार्ज... खैर आप नारियल के जूस में डूबी पहली शायरी मुलाहिजा फरमाइये...

कौन है वह, जिसकी अदा पे हम दीवाने हुए

कौन है वह, जिसकी अदा पे हम दीवाने हुए

(इतने में पीछे से आवाज आ गयी... "जसोदा"। साहेब ने पलट के घूरा तो सारे पीछे सरक गये और छोटे नवाब आगे बैठे रह गये कांपलान लिये। साहेब ने एक माईक ही निकाल के खींच मारा, लेकिन निशानेबाज पक्के नहीं थे तो ईरानी जी क्लीन बोल्ड हो गयीं।)

संचालक: यह लीजिये, एक बैटमैन बिना बैटिंग का मौका पाये ही लुल्ल हो गया। अंपायर स्ट्रेचर पर ले जायें प्लीज। सरकार खेला चालू रहे।

मोदी: कौन है वह जिसकी अदा पे हम दीवाने हुए

यह तो हमें भी नहीं पता चल पाया मित्रों

हमने अपने जासूस लगाये भी उस के पीछे

और दुश्मनों ने नाम दिया है स्नूपगेट का

(तभी श्रोताओं की कतार से जावेद साब बिफर पड़े।)

जावेद: क्या है यह क्या ये यह, मलब कुछ भी... यह क़ता है, रुबाई है, नज्म है, गजल है...क्या है।

मोदी: जावेद साब, थूक के छींटे यहां तक आ रहे हैं। अबे संचालक, जब पहले ही यह तय हो गया था कि जहरीली उर्दू प्रयोग नहीं होगी तो फिर यह क्या?

जावेद: जहरीली!

संचालक: जावेद साब, गुस्सा इतनी जोर से न थूकिये कि फकीर के झोले में जा गिरे। ऐसी उर्दू जो साहेब को नर्वस कर दे, उसे जहरीली करार दिया गया है शास्त्रों में। बहने दीजिये साहब के अरमानों को।

जावेद: अच्छा बताइये, आपकी शायरी में रदीब कहां है।

मोदी: अदीब की बीवी के साथ लोधी गार्डेन गया है।

जावेद: अच्छा यही बता दीजिये कि इसमें काफिया कहां है।

मोदी: जाकिया के साथ कोर्ट में इंसाफ की जंग लड़ रहा है।

संचालक: जावेद साब, शबाना के वास्ते चुप हो जाइये, वर्ना बोलने में तो साहेब का कोई सानी नहीं... सवेरा कर देंगे।

जावेद: अरे मगर सबने कम से कम रूल तो फालो किये शायरी के और मोदी जी तो...

मोदी: हम रूल नहीं फालो करते, रूल हमें फालो करते हैं जावेद साब... अब अगर आपने एक शब्द भी बोला तो कसम है मुझे मेरे गरीब दलित भाइयों की, मैं चार साल की अपनी पूरी उपलब्धियां गिनवाऊंगा। फिर चाहे आपके कानों से खून क्यों न निकल आये।

(धमकी इतनी बड़ी थी कि सारा हाल सूखे पत्ते की तरह कांप गया और जावेब साब भी दहशत में आकर सीधे फैल ही गये।)

मोदी: शुक्र है मेरी उपलब्धियों का, तो मुलाहिजा फरमाइये मेरे छुपे हुए टैलेंट का...

देश को सेलरी अर्पण, संपत्ति भी चल अचल दूंगा

मैं तो फकीर हूं, एक दिन झोला उठा के चल दूंगा

मत दो इल्जाम मुझे कोलम्बस होने का

मैं तो शैदायी हूं दुनिया के कोने कोने का

प्यार दो, इज्जत दो, सहारा दो, और एक छत दो

मुसलमानों, मेरी मुस्लिम बहनों को तीन तलाक मत दो

ओ जालिमों, क्या बिगाड़ा है इन मासूमों ने थारो

मुझे मार लो, मेरे दलित भाइयों को मत मारो

हमारा कुछ उखाड़ ले वह दम पाकिस्तान में कहां

जो मजा नवाज की बिरयानी में वह हिंदुस्तान में कहां

वह सरहदी घुसपैठ, वह सैनिकों की लाशें, सब भूल गये

जब नवासी की शादी में नवाज, तेरी बाहों में झूल गये

एक दिन हम होली दिवाली सब एकसाथ मनायेंगे

देख लेना कांग्रेसियों, हम हिंदु राष्ट्र बनायेंगे

(एसी भयानक शायरी पर सारे श्रोतागण झूम कर वहीं लोट गये। पूरे आर्यवर्त में हवायें चलने लगीं... पेड़ नृत्य करने लगे और आकाश में मुशायरा सुनने एकत्र हुए देवतागण भी पुष्प वर्षा करने लगे।)
 

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रचनाएँ
छोले
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किसी फिल्म की कहानी को आगे हास्य के रूप में परोसा जाये तो वों भी कम मनोरंजक नहीं होगी.. प्रस्तुत किताब एक ऐसी ही कल्पना है, जिसमे अलग-अलग कई हास्य-व्यंग्य लिए गये हैं...
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छोले

10 नवम्बर 2021
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<p>आइये आइये ठाकुर साहब.. कहिये क्या सेवा कर सकता हूँ?</p> <p>दो लफंगे हैं आपकी जेल में, जय और वीरू.

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सियासी मुशायरा

28 नवम्बर 2021
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<p>(एक बार की बात है— संसद चल नहीं पा रही थी, गतिरोध अपने चरम पर था और ऐसे में कोई और रास्ता न निकलत

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हकले आज़म

28 नवम्बर 2021
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<p><br> हे डूड.. कैसन पधारे?</p> <p>जी ख्वाजा साहब.. आपको तो पता है कि बुढ़ापा कुंडी खटखटा रहा है और

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हलकट सवाल

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<p>पुत्र अर्जुन। <br> जी गुरू द्रोण... <br> कलियुग से तुम्हारे लिये एक मेल आई है, हमारे अकाउंट में।

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चांद के टुकड़े

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<p>अरे बुर्राग... सुनो-सुनो <br> अरे जिबरील मामू आप भोराहरे भोराहरे... खैरियत तो है। <br> खैरियत ही

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अजब रपट

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<p>मोहे पिज्जाहट में चमनलाल छेड़ गयो रे.. मोहे पिज्जाहट में। <br> बेटा यह पुलिस स्टेशन है, तुम यहां क

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पादड़ी बीड़ी

28 नवम्बर 2021
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<p>अरे भाई साहब.. अंदर आ जायें का। <br> अंदर तो आ गये हो गंवार और कितना अंदर आओगे.. दिल में बसा के र

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