जीवन की भागदौड़ से अब थक गई हूं ।
खुद को भुलाकर में....
मैं क्या हूं
ये मैं खुद भी नहीं जान पाई
बस इतना कह सकती हूं।
मैं खुद से दूर भागने लगी हूं।
इस माहौल में खुद को ढाल नहीं पा रही हूं
शायद अब भी लोग मुझ में दोष निकाले।
तू ऐसी क्यों है...
पागल कहीं की... बेवकूफ
पर कोई मेरे दिल का क्या हाल जाने
मैं क्या चाहती हूं
यह मैं खुद नहीं समझ पा रही
पर! अब खुद से लड़ते-लड़ते
मैं थक गई हूं...
किसी को मेरी वजह से दुख ना हो।
मैं कहीं गुम सी गए हूं....
परिवार ने जब साथ छोड़ा
तो अब दोस्तों से क्या कहूं।
बस इतना की.....
खुद से जरा हार गई हूं।
🌺
लेखिका
शीला चारण
🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁