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दादाजी की झोपड़ी भाग 1

14 जनवरी 2023

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   मैं एक महानगर में अच्छी - खासी सर्विस करता हूं। गांव में बहुत पहले हम सब कुछ बेच कर शहर शिफ्ट हो गए थे। मेरे पास ठीक-ठाक पैसा था। लेकिन मेरा स्वास्थ्य कुछ कमजोर रहता था। इसलिए डॉक्टर की सलाह पर मैं कुछ दिन अपने गांव शुद्ध हवा में रहने के लिए वापस आ गया। गांव में थोड़ा दूर के रिश्ते के मेरे एक दादाजी रहते थे। वह बहुत गरीब थे। वह एक छोटी सी झोपड़ी में रहते थे। हालांकि वह गरीब जरूर थे, लेकिन उन्होंने कुछ बकरियां पाल रखी थी और कुछ छोटे - मोटे खेत उनके पास थे। मैं दादाजी के घर उनसे मिलने गया। मैंने दुआ सलाम की। दादाजी ने कहा आओ बेटा बैठो क्या बात है? बहुत दिनों बाद आए हो। तुम्हें गांव की याद तो आती ही होगी। हालांकि तुमने यहां का सब कुछ बेच दिया है। मैंने कहा दादा जी यह तो ऊपर वाले की कृपा है। आज मैं शहर में अच्छी - खासी प्रॉपर्टी का मालिक हूं और अच्छा खासा पैसा भी कमा रहा हूं। दादा जी हंस कर बोले फिर गांव में वापस लौट कर क्यों आए भाई। मैंने कहा दादा जी यह तो कुदरत का खेल है। डॉक्टर ने कहा तुम्हारा शरीर थोड़ा कमजोर हो गया है। किसी हिल स्टेशन पर कुछ महीने रहो। तो मैंने सोचा मेरा गांव क्या किसी हिल स्टेशन से कम है। कुछ महीने मैं यही रहूंगा। आप मेरे रहने का और खाने का जुगाड़ कहीं पर फिट कर दें। इसके लिए मैं थोड़ा बहुत खर्च भी कर दूंगा। दादाजी मुस्कराए और बोले बेटा इतनी बड़ी झोपड़ी है। एक कोने पर मैं रह लूंगा। एक कोने पर तुम रह लेना।


    


    दादाजी ने अपनी झोपड़ी का एक छोटा सा कमरा मुझे रहने के लिए दिया। यह कमरा बहुत साफ - सुथरा था। जरूरी काम की सभी चीजें उस कमरे में थी। दादाजी मुस्कुराए और बोले बेटा मैं गरीब जरूर हूं, लेकिन साफ - सफाई का बड़ा ख्याल रखता हूं और देखो तुम भी साफ - सफाई का जरूर ख्याल रखना और आले में बनी भगवान की मूर्ति की ओर देखकर उन्होंने प्रणाम किया और कहा रोज अपने इस देवता को भी प्रणाम जरूर करना। इस देवता की वजह से ही आज मैं बहुत प्रसन्न और खुश हूं। मैंने दादाजी की हां में हां मिलाई और कहा दादा जी जैसी आपकी इच्छा। आप तो हमारे बुजुर्ग हैं और बुजुर्ग लोगों की इच्छा तो भगवान की ही इच्छा होती है। दादा जी यह सुनकर बहुत खुश हुए। दादा जी काफी वृद्ध थे। 100 वर्ष से ऊपर की उनकी उम्र थी। शायद लगभग 102 -3 बरस के बुजुर्ग इंसान थे। लेकिन अभी भी उनकी फूर्ति 25 वर्ष के जवान को भी मात करती दिखाई देती थी। वह लंबे -चौड़े 6 फीट के सुडौल शरीर के और बहुत ही गोरे - चिट्टे थे। उनके बच्चे नाती - पोते सब नए जमाने की हवा में बह कर अलग-अलग शहरों में बस गए थे और अब वो दादाजी की सुध बहुत कम लेते थे। दादाजी भी इन सब बातों से बेपरवाह होकर अपने में मस्त रहते थे और न किसी से ₹1 मांगते और न किसी से किसी की शिकायत करते।  वह अपनी बकरियां पाल कर और खेतों में थोड़ा खेती करके अपनी जीवन चर्या बहुत आसानी से और अच्छे तरीके से चला रहे थे।


    दादाजी मुस्कुरा कर बोले बेटा इस कमरे में अटैच लेट्रिन बाथरूम सब कुछ है। बिजली, पानी की भी अच्छी व्यवस्था है। मैं गरीब आदमी जरूर हूं। लेकिन मेरी झोपड़ी में तुम्हें सभी आधुनिक चीजें दिखाई देंगी। वास्तव में दादाजी की झोपड़ी बहुत ही खूबसूरत थी। दादा जी फिर बोले तुम्हारे कमरे में अटैच लैट्रिंग बाथरुम तो है ही। साथ ही एक छोटा सा स्टोर, मेहमानों के लिए बैठने के लिए अलग से स्थान और एक अच्छी सा रसोई घर भी है। तुम चाहो तो अपने इस रसोई घर में खाना बना सकते हो और चाहो तो मेरे साथ भी कभी कभी मिलकर मेरे वाले रसोई घर में खाना बना सकते हो।


   मैं बहुत खुश हुआ। मैंने बोला दादा जी इस सेवा के लिए मैं आपको क्या दे सकता हूं। दादा जी बोले बेटा सेवा तो परमात्मा की की जाती है। मैं तुमसे क्या लूंगा। मैं तुमसे ₹1 भी नहीं चाहता। लेकिन मैंने जबरदस्ती दादाजी के हाथ में लगभग ₹20000 पकड़ा दिए। दादा ना - ना करते रहे। लेकिन मैंने जबरदस्ती उनकी जेब में ₹ डाल दिए। हालांकि गांव के हिसाब से यह रकम थोड़ी बड़ी जरूर थी। लेकिन मेरे पास अथाह पैसा था। इसलिए मैं पैसे के मामले किसी को नीचा नहीं दिखाना चाहता था। मैंने दादाजी को चुपके से हर महीने 20 हजार के करीब देने का फैसला किया।


    दादा जी भी शायद मन ही मन पैसे को पाकर खुश थे। लेकिन पैसे के मामले में आज भी भारत का आदमी खुलकर नहीं बोलता है। दादाजी ने इन पैसों में से कुछ पैसे अपने पास रखे और कुछ पैसों से बाजार से अच्छा राशन पानी मंगाया और घर की जरूरत की कुछ चीजें भी मंगवाई। कुछ पैसों से उन्होंने अपनी झोपड़ी की मरम्मत और रंगाई - पुताई भी करवाई और कुछ पैसों से झोपड़ी के बाहर के बगीचे आदि का सुंदरीकरण वगैरा भी करवाया।


    झोपड़ी में रहते - रहते मुझे काफी दिन बीत गये। सुबह शाम मैं गांव की सैर पर निकल जाता और कभी-कभी गांव के बगल के जंगलों में हम दादा - पोते घूमने निकल जाते। धीरे-धीरे गांव में मेरा स्वास्थ्य सुधरने लगा। दादाजी को जड़ी - बूटियों का भी अच्छा ज्ञान था। मैं दादा जी से जड़ी - बूटियों का ज्ञान सीखने लगा और चुपके से एक अच्छी सी नोटबुक में यह सब जानकारियां भी नोट करने लगा। दादा जी अपने समय के काफी पढ़े- लिखे व्यक्ति थे और उनके कमरे में काफी पुस्तकें करीने से रखी हुई थी। दादाजी का कमरा बिल्कुल सादा और साफ -सुथरा था। उनके कमरे में एक दीवान था और दीवान में उनके गिने-चुने अच्छे-अच्छे कपड़े रखे रहते थे। सब कपड़े बिल्कुल प्रेस रहते थे। हमेशा साफ-सुथरे और प्रेस किए हुए कपड़े ही वे पहनते थे। अपनी बकरियां चुगाने के लिए उन्होंने गांव के एक 25 वर्ष के लड़के को रखा हुआ था। यह लड़का भी कभी-कभी दादा जी के साथ ही भोजन करता। दादाजी उसे थोड़ा सा वेतन भी देते थे और उसे कभी -कभार अच्छे कपड़े ले कर देते थे। वे उसका काफी ध्यान रखते थे।


   तो भाई लोगों आपको यह स्टोरी कैसी लगी। क्या इसका दूसरा भाग भी निकालूं।
Shakti

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