अपूर्णता का विचार ही भय का जन्मदाता है। अविवेकी मन उस विचार पर विश्वास कर भयभीत हो उठता है और अपूर्णता के उपचारस्वरूप पाशविक वृत्तियों का अवलम्बन कर लेता है। जिसके कारण उसे सहस्त्र दुःखों से गुज़रना पड़ता है। आचार्य प्रशांत इन संवादों के माध्यम से अपूर्णता के विचार को अकिंचित्कर बता कर उसका तिरस्कार कर एक विवेकपूर्ण जीवन जीने का सन्मार्ग बताते हैं।
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