स्वामी विवेकानंद के पूर्ववर्ती ज़्यादातर अद्वैतवादी दार्शनिकों ने अपने वेदांत दर्शन में ज्ञान पक्ष को अधिक महत्व दिया है। और यह अति आवश्यक भी है। पर अपने ही ढर्रों को बचाए रखने के लिए सामान्य लोगों में यह धारणा विकसित हो गयी कि अद्वैत वेदांत केवल गूढ़ एवं तात्विक सिद्धांतों का पुंज है, जो साधारण मानवीय बुद्धि के लिए अत्यंत दुरूह है और जिसका प्रत्यक्ष जीवन से कोई सम्बन्ध नहीं है। यह केवल सन्यासियों तथा चिंतनशील दार्शनिकों के लिए उपयोगी है। गृहस्थ लोगों से इसका कोई सम्बन्ध नहीं है। यह जगत से पलायन अथवा सन्यास को बढ़ावा देता है, अतः यह निषेधात्मक एवं निराशावादी दर्शन है। जनसामान्य में व्याप्त इस आत्मघाती धारणा के निवारण हेतु स्वामी विवेकानंद जी ने वेदांत की नवीन, परिष्कृत तथा आशावादी व्याख्या प्रस्तुत करने की आवश्यकता को महसूस किया। इसीलिए उन्होंने वेदांत के आदर्शवादी पक्ष को व्यावहारिक रूप दिया तथा वेदांत दर्शन को व्यावहारिक वेदांत के रूप में प्रस्तुत किया।
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