आज अगर आदमी प्रकृति के प्रति इतना हिंसक है, पेड़-पौधों के प्रति इतना हिंसक है, जानवरों के प्रति इतना हिंसक है, तो उसकी वजह ये है कि वो अपने शरीर के प्रति भी बहुत हिंसक है। शरीर से मुक्ति चाहते हो, तो शरीर को ‘शरीर’ रहने दो। जिन्हें शरीर से मुक्ति चाहिये हो, वो शरीर के दमन का प्रयास बिल्कुल न करें। जिन्हें शरीर से ऊपर उठना हो, वो शरीर से दोस्ती करें, शरीर से डरें नहीं, घबरायें नहीं। आचार्य प्रशांत ने इस किताब के माध्यम से शरीर के प्रति शर्म, डर, अज्ञान को हमारे समक्ष रखा है।
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