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धार्मिक

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नाथ कछूअ न जानउ ॥ मनु माइआ कै हाथि बिकानउ ॥1॥ रहाउ ॥ तुम कहीअत हौ जगत गुर सुआमी ॥ हम कहीअत कलिजुग के कामी ॥1॥ इन पंचन मेरो मनु जु बिगारिओ ॥ पलु पलु हरि जी ते अंतरु पारिओ ॥2॥ जत देखउ तत दुख की रा

चित सिमरनु करउ नैन अविलोकनो स्रवन बानी सुजसु पूरि राखउ ॥ मनु सु मधुकरु करउ चरन हिरदे धरउ रसन अमृत राम नाम भाखउ ॥1॥ मेरी प्रीति गोबिंद सिउ जिनि घटै ॥ मै तउ मोलि महगी लई जीअ सटै ॥1॥ रहाउ ॥ साधसंगति

हम सरि दीनु दइआलु न तुम सरि अब पतीआरु किआ कीजै ॥ बचनी तोर मोर मनु मानै जन कउ पूरनु दीजै ॥1॥ हउ बलि बलि जाउ रमईआ कारने ॥ कारन कवन अबोल ॥ रहाउ ॥ बहुत जनम बिछुरे थे माधउ इहु जनमु तुम्हारे लेखे ॥ कहि

चमरटा गांठि न जनई ॥ लोगु गठावै पनही ॥1॥ रहाउ ॥ आर नही जिह तोपउ ॥ नही रांबी ठाउ रोपउ ॥1॥ लोगु गंठि गंठि खरा बिगूचा ॥ हउ बिनु गांठे जाइ पहूचा ॥2॥ रविदासु जपै राम नामा ॥ मोहि जम सिउ नाही कामा ॥3॥7

जल की भीति पवन का थ्मभा रक्त बुंद का गारा ॥ हाड मास नाड़ीं को पिंजरु पंखी बसै बिचारा ॥1॥ प्रानी किआ मेरा किआ तेरा ॥ जैसे तरवर पंखि बसेरा ॥1॥ रहाउ ॥ राखहु कंध उसारहु नीवां ॥ साढे तीनि हाथ तेरी सीवा

जउ तुम गिरिवर तउ हम मोरा ॥ जउ तुम चंद तउ हम भए है चकोरा ॥1॥ माधवे तुम न तोरहु तउ हम नही तोरहि ॥ तुम सिउ तोरि कवन सिउ जोरहि ॥1॥ रहाउ ॥ जउ तुम दीवरा तउ हम बाती ॥ जउ तुम तीर्थ तउ हम जाती ॥2॥ साची प

सुख सागरु सुरतर चिंतामनि कामधेनु बसि जा के ॥ चारि पदार्थ असट दसा सिधि नव निधि कर तल ता के ॥1॥ हरि हरि हरि न जपहि रसना ॥ अवर सभ तिआगि बचन रचना ॥1॥ रहाउ ॥ नाना खिआन पुरान बेद बिधि चउतीस अखर मांही ॥

दुलभ जनमु पुंन फल पाइओ बिरथा जात अबिबेकै ॥ राजे इंद्र समसरि ग्रिह आसन बिनु हरि भगति कहहु किह लेखै ॥1॥ न बीचारिओ राजा राम को रसु ॥ जिह रस अन रस बीसरि जाही ॥1॥ रहाउ ॥ जानि अजान भए हम बावर सोच असोच द

जउ हम बांधे मोह फास हम प्रेम बधनि तुम बाधे ॥ अपने छूटन को जतनु करहु हम छूटे तुम आराधे ॥1॥ माधवे जानत हहु जैसी तैसी ॥ अब कहा करहुगे ऐसी ॥1॥ रहाउ ॥ मीनु पकरि फांकिओ अरु काटिओ रांधि कीओ बहु बानी ॥ ख

जब हम होते तब तू नाही अब तूही मै नाही ॥ अनल अगम जैसे लहरि मइ ओदधि जल केवल जल मांही ॥1॥ माधवे किआ कहीऐ भ्रमु ऐसा ॥ जैसा मानीऐ होइ न तैसा ॥1॥ रहाउ ॥ नरपति एकु सिंघासनि सोइआ सुपने भइआ भिखारी ॥ अछत र

कहा भइओ जउ तनु भइओ छिनु छिनु ॥ प्रेमु जाइ तउ डरपै तेरो जनु ॥1॥ तुझहि चरन अरबिंद भवन मनु ॥ पान करत पाइओ पाइओ रामईआ धनु ॥1॥ रहाउ ॥ स्मपति बिपति पटल माइआ धनु ॥ ता महि मगन होत न तेरो जनु ॥2॥ प्रेम क

संत तुझी तनु संगति प्रान ॥ सतिगुर गिआन जानै संत देवा देव ॥1॥ संत ची संगति संत कथा रसु ॥ संत प्रेम माझै दीजै देवा देव ॥1॥ रहाउ ॥ संत आचरण संत चो मारगु संत च ओल्हग ओल्हगणी ॥2॥ अउर इक मागउ भगति चिंत

म्रिग मीन भ्रिंग पतंग कुंचर एक दोख बिनास ॥ पंच दोख असाध जा महि ता की केतक आस ॥1॥ माधो अबिदिआ हित कीन ॥ बिबेक दीप मलीन ॥1॥ रहाउ ॥ त्रिगद जोनि अचेत स्मभव पुंन पाप असोच ॥ मानुखा अवतार दुलभ तिही संगत

सतजुगि सतु तेता जगी दुआपरि पूजाचार ॥ तीनौ जुग तीनौ दिड़े कलि केवल नाम अधार ॥1॥ पारु कैसे पाइबो रे ॥ मो सउ कोऊ न कहै समझाइ ॥ जा ते आवा गवनु बिलाइ ॥1॥ रहाउ ॥ बहु बिधि धरम निरूपीऐ करता दीसै सभ लोइ ॥

कूपु भरिओ जैसे दादिरा कछु देसु बिदेसु न बूझ ॥ ऐसे मेरा मनु बिखिआ बिमोहिआ कछु आरा पारु न सूझ ॥1॥ सगल भवन के नाइका इकु छिनु दरसु दिखाइ जी ॥1॥ रहाउ ॥ मलिन भई मति माधवा तेरी गति लखी न जाइ ॥ करहु क्रिप

घट अवघट डूगर घणा इकु निरगुणु बैलु हमार ॥ रमईए सिउ इक बेनती मेरी पूंजी राखु मुरारि ॥1॥ को बनजारो राम को मेरा टांडा लादिआ जाइ रे ॥1॥ रहाउ ॥ हउ बनजारो राम को सहज करउ ब्यापारु ॥ मै राम नाम धनु लादिआ ब

तुम चंदन हम इरंड बापुरे संगि तुमारे बासा ॥ नीच रूख ते ऊच भए है गंध सुगंध निवासा ॥1॥ माधउ सतसंगति सरनि तुम्हारी ॥ हम अउगन तुम्ह उपकारी ॥1॥ रहाउ ॥ तुम मखतूल सुपेद सपीअल हम बपुरे जस कीरा ॥ सतसंगति म

तोही मोही मोही तोही अंतरु कैसा ॥ कनक कटिक जल तरंग जैसा ॥1॥ जउ पै हम न पाप करंता अहे अनंता ॥ पतित पावन नामु कैसे हुंता ॥1॥ रहाउ ॥ तुम्ह जु नाइक आछहु अंतरजामी ॥ प्रभ ते जनु जानीजै जन ते सुआमी ॥2॥

नामु तेरो आरती मजनु मुरारे ॥ हरि के नाम बिनु झूठे सगल पासारे ॥1॥ रहाउ ॥ नामु तेरो आसनो नामु तेरो उरसा नामु तेरा केसरो ले छिटकारे ॥ नामु तेरा अम्मभुला नामु तेरो चंदनो घसि जपे नामु ले तुझहि कउ चारे ॥

मेरी संगति पोच सोच दिनु राती ॥ मेरा करमु कुटिलता जनमु कुभांती ॥1॥ राम गुसईआ जीअ के जीवना ॥ मोहि न बिसारहु मै जनु तेरा ॥1॥ रहाउ ॥ मेरी हरहु बिपति जन करहु सुभाई ॥ चरण न छाडउ सरीर कल जाई ॥2॥ कहु रव

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