स्वायम्भुव मनु की तीन पुत्रियाँ थीं – अकुति, देवहूति और प्रसूति। इनमें से प्रसूति का विवाह दक्ष नाम के प्रजापति से हुआ। दक्ष को 16 कन्याओं की प्राप्ति हुई। इनमें से एक थी ‘सती’ जिनका विवाह भगवान शिव क
1. वाक् सिद्धि : - जो भी वचन बोले जाए वे व्यवहार में पूर्ण हो, वह वचन कभी व्यर्थ न जाये, प्रत्येक शब्द का महत्वपूर्ण अर्थ हो, वाक् सिद्धि युक्त व्यक्ति में श्राप अरु वरदान देने की क्षमता होती हैं
चींटी को श्रीहरि विष्णु का प्रतीक माना जाता है। प्रहलाद को मारने हेतु विभिन्न प्रकारों से सताया गया था। हिरण्यकश्यपु ने कहा कि यदि हरि पर इतना विश्वास है तो इस दहकते लोहे के खंबे से लिपटकर दिखाओ। तभी
मानस कहता कि जब जीव भगवान के सम्मुख होता है तो कोटि जन्म के पाप माफ कर दिए जाते हैं। यह कर्म फल समाप्त करना ही है।प्रारब्ध कर्म और भगवत्कृपाआसक्ति पूर्वक और फल की इच्छा से करे हुए कर्मों का फल आवश्यक
पुराने समय से ही परंपरा चली आ रही है कि जब भी हम किसी विद्वान व्यक्ति या उम्र में बड़े व्यक्ति से मिलते हैं तो उनके पैर छूते हैं। इस परंपरा को मान-सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। इस परंपरा का पालन आ
भए कुमार जबहिं सब भ्राता। दीन्ह जनेऊ गुरु पितु माता॥गुरगृहँ गए पढ़न रघुराई। अलप काल बिद्या सब आई॥भावार्थ:-ज्यों ही सब भाई कुमारावस्था के हुए, त्यों ही गुरु, पिता और माता ने उनका यज्ञोपवीत संस
एक बार भगवान शिव के मन में एक बड़े यज्ञ के अनुष्ठान का विचार आया। विचार आते ही वे शीघ्र यज्ञ प्रारंभ करने की तैयारियों में जुट गए। सारे गणों को यज्ञ अनुष्ठान की अलग-अलग जिम्मेदारियां सौंप दी गई। सबसे
जब भी सत्संग की चर्चा चलती है तो चारवेद छः शास्त्र और अठारह पुराण की चर्चा होती है। वेद और पुराणों के नाम सभी जानते है। लेकिन ये छः शास्त्र कोन से हैं। इस प्रस्तुति में हम आपको संक्षेप में बतायेगे।छह
आचार्य चरकचरक एक महर्षि एवं आयुर्वेद विशारद के रूप में विख्यात हैं। वे कुषाण राज्य के राजवैद्य थे। इनके द्वारा रचित चरक संहिता एक प्रसिद्ध आयुर्वेद ग्रन्थ है। इसमें रोगनाशक एवं रोगनिरोधक दवाओं का उल्ल
बहुत बहुत ज्ञानवर्धक प्रस्तुति है।भागवत कथा से मन का शुद्धिकरण होता है। इससे संशय दूर होता है और शान्ति एवं मुक्ति मिलती है। कथा की सार्थकता जब ही सिद्ध होती है जब इसे हम जीवन में व्यवहार में धा
शनिदेव दक्ष प्रजापति की पुत्री संज्ञा देवी और सूर्यदेव के पुत्र हैं। यह नवग्रहों में सबसे अधिक भयभीत करने वाला ग्रह है। इसका प्रभाव एक राशि पर ढाई वर्ष और साढ़े साती के रूप में लंबी अवधि तक भोगना पड़त
सावन मास को सर्वोत्तम मास कहा जाता है। यह 5 पौराणिक तथ्य बताते हैं कि क्यों सावन है सबसे खास... 1. मरकंडू ऋषि के पुत्र मारकण्डेय ने लंबी आयु के लिए सावन माह में ही घोर तप कर शिव की कृपा प्र
हजार फणों वाले शेषनाग भगवान श्रीहरि के परम भक्त हैं । वे अपने एक हजार मुखों और दो हजार जिह्वाओं (सांप के मुख में दो जीभ होती हैं) से सदा भगवान श्रीहरि का नाम जप करते रहते हैं। भगवान शेष सेवा-भक्ति के
पूजा-पाठ, उत्सव, हवन, विजयोत्सव, आगमन, विवाह, राज्याभिषेक आदि शुभ कार्यों में शंख बजाना शुभ और अनिवार्य माना जाता है क्योंकि इसे विजय, समृद्धि, यश और शुभता का प्रतीक माना गया है। मंदिरों में सुबह और श
गुरु रविदास की महिमा सुनकर और पवित्र जीवन को देखकर बहुत से राजा-रानी उनके शिष्य बन गए थे। एक बार झाली नाम की रानी चित्तौड़ से गंगा स्नान के लिए काशी आई। उसने गुरु रविदास का नाम सुना तो दर्शन के लिए उन
कर्माबाई की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली हुई थी। दूर-दूर से संत उनसे मिलने के लिए आते थे। ऐसे ही एक रोज एक महापुरुष आए और कहने लगे कि कर्माबाई, हर रोज भगवान् तुम्हारे घर भोजन करने के लिए आते हैं। तुम कै
करमावती नाम की 60-65 वर्ष की महिला सीर गोवर्धनपुर में रहती थी। उसका बालक रविदास की दादी लखपती के साथ बहुत प्रेम था। दादी लखपती प्राय: अपने प्रिय पौत्र को लेकर उससे मिलने जाया करती थीं। करमावती स्वयं ल
गुरु रविदास सबका भला चाहनेवाले महापुरुष थे। उनके हृदय में सबके लिए प्यार था। व्यक्ति चाहे किसी भी जाति का क्यों न हो, वे सबको सत्य का उपदेश देते थे। बुराइयों से हटाकर सत्य मार्ग पर जीवों को लगाना ही
एक बार रविदास ज्ञानी, कहन लगे सुनो अटल कहानी। कलयुग बात साँच अस होई, बीते सहस्र पाँच दस होई। भरमावे सब स्वार्थ के काजा, बेटी बेंच तजे कुल लाजा। नशा दिखावे घर में पूरा, माता-बहन का पकड़ें जूड़
धुर की बाणीएं ! दिलां दीए राणीए नीं ! तेरे मूंह लगाम ना रहन देना । जिन्नी बानी है किरत दे फलसफ़े दी, नाले उहनूं बेनाम ना रहन देना । इक्को बाप ते इक्को दे पुत्त सारे, हे रविदास मैं फिर दुहरा रेहा