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धार्मिक

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धरती दी अक्ख जद रोयी सी तूं सच्च दा दीवा बाल दित्ता पायआ 'नेर पाखंडियां सी एथे तूं तरक दा राह सी भाल दित्ता तेरी बेगमपुरा ही मंज़िल सी ताहीउं उसतत करे जहान सारा तेरी बानी नूं जिस लड़ बन्न्हआं 'न्

अब कैसे छूटे राम, नाम रट लागी | प्रभुजी तुम चन्दन हम पानी, जाकी अंग अंग बास समानि | प्रभुजी तुम घन बन हम मोरा, जैसे चितवत चन्द चकोरा | प्रभुजी तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति बरै दिन राती | प्

नहाते त्रिकाल रोज पंडित अचारी बड़े  सदा पट बसतर खूब अंगन लगाई है । पूजा नैवेद आरती करते हम विधि-विधान  चंदन औ तुलसी भली-भाँति से चढ़ाई है ।  हारे हम कुलीन सब कोटि-कोटि कै उपाय  कैसे तुम ठाकुर हम अप

तुझहि चरन अरबिंद भँवर मनु। पान करत पाइओ, पाइओ रामईआ धनु।। टेक।। कहा भइओ जउ तनु भइओ छिनु छिनु। प्रेम जाइ तउ डरपै तेरो जनु।।१।। संपति बिपति पटल माइआ धनु। ता महि भगत होत न तेरो जनु।।२।। प्रेम की जे

ताथैं पतित नहीं को अपांवन। हरि तजि आंनहि ध्यावै रे। हम अपूजि पूजि भये हरि थैं, नांउं अनूपम गावै रे।। टेक।। अष्टादस ब्याकरन बखांनै, तीनि काल षट जीता रे। प्रेम भगति अंतरगति नांहीं, ताथैं धानुक नीका र

तब रांम रांम कहि गावैगा। ररंकार रहित सबहिन थैं, अंतरि मेल मिलावैगा।। टेक।। लोहा सम करि कंचन समि करि, भेद अभेद समावैगा। जो सुख कै पारस के परसें, तो सुख का कहि गावैगा।।१।। गुर प्रसादि भई अनभै मति, व

हरि जपत तेऊ जना पदम कवलास पति तास सम तुलि नही आन कोऊ॥ एक ही एक अनेक होइ बिसथरिओ आन रे आन भरपूरि सोऊ ॥ रहाउ ॥ जा कै भागवतु लेखीऐ अवरु नही पेखीऐ तास की जाति आछोप छीपा ॥ बिआस महि लेखीऐ सनक महि पेखीऐ न

मिलत पिआरो प्रान नाथु कवन भगति ते ॥ साधसंगति पाई परम गते ॥ रहाउ ॥ मैले कपरे कहा लउ धोवउ ॥ आवैगी नीद कहा लगु सोवउ ॥1॥ जोई जोई जोरिओ सोई सोई फाटिओ ॥ झूठै बनजि उठि ही गई हाटिओ ॥2॥ कहु रविदास भइओ जब

तुझहि सुझंता कछू नाहि ॥ पहिरावा देखे ऊभि जाहि ॥ गरबवती का नाही ठाउ ॥ तेरी गरदनि ऊपरि लवै काउ ॥1॥ तू कांइ गरबहि बावली ॥ जैसे भादउ खूमबराजु तू तिस ते खरी उतावली ॥1॥ रहाउ ॥ जैसे कुरंक नही पाइओ भेदु

बिनु देखे उपजै नही आसा ॥ जो दीसै सो होइ बिनासा ॥ बरन सहित जो जापै नामु ॥ सो जोगी केवल निहकामु ॥1॥ परचै रामु रवै जउ कोई ॥ पारसु परसै दुबिधा न होई ॥1॥ रहाउ ॥ सो मुनि मन की दुबिधा खाइ ॥ बिनु दुआरे

खटु करम कुल संजुगतु है हरि भगति हिरदै नाहि ॥ चरनारबिंद न कथा भावै सुपच तुलि समानि ॥1॥ रे चित चेति चेत अचेत ॥काहे न बालमीकहि देख ॥ किसु जाति ते किह पदहि अमरिओ राम भगति बिसेख ॥1॥ रहाउ ॥ सुआन सत्रु अ

सुख सागर सुरितरु चिंतामनि कामधेन बसि जा के रे ॥ चारि पदार्थ असट महा सिधि नव निधि कर तल ता कै ॥1॥ हरि हरि हरि न जपसि रसना ॥ अवर सभ छाडि बचन रचना ॥1॥ रहाउ ॥ नाना खिआन पुरान बेद बिधि चउतीस अछर माही ॥

ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै ॥ गरीब निवाजु गुसईआ मेरा माथै छत्रु धरै ॥1॥ रहाउ ॥ जा की छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै ॥ नीचह ऊच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै ॥1॥ नामदेव कबीरु तिलोचनु सधना सैनु तरै

जे ओहु अठसठि तीर्थ न्हावै ॥ जे ओहु दुआदस सिला पूजावै ॥ जे ओहु कूप तटा देवावै ॥ करै निंद सभ बिरथा जावै ॥1॥ साध का निंदकु कैसे तरै ॥ सरपर जानहु नरक ही परै ॥1॥ रहाउ ॥ जे ओहु ग्रहन करै कुलखेति ॥ अर

मुकंद मुकंद जपहु संसार ॥ बिनु मुकंद तनु होइ अउहार ॥ सोई मुकंदु मुकति का दाता ॥ सोई मुकंदु हमरा पित माता ॥1॥ जीवत मुकंदे मरत मुकंदे ॥ ता के सेवक कउ सदा अनंदे ॥1॥ रहाउ ॥ मुकंद मुकंद हमारे प्रानं ॥

जिह कुल साधु बैसनौ होइ ॥ बरन अबरन रंकु नही ईसुरु बिमल बासु जानीऐ जगि सोइ ॥1॥ रहाउ ॥ ब्रह्मन बैस सूद अरु ख्यत्री डोम चंडार मलेछ मन सोइ ॥ होइ पुनीत भगवंत भजन ते आपु तारि तारे कुल दोइ ॥1॥ धंनि सु गाउ

दारिदु देखि सभ को हसै ऐसी दसा हमारी ॥ असट दसा सिधि कर तलै सभ क्रिपा तुमारी ॥1॥ तू जानत मै किछु नही भव खंडन राम ॥ सगल जीअ सरनागती प्रभ पूरन काम ॥1॥ रहाउ ॥ जो तेरी सरनागता तिन नाही भारु ॥ ऊच नीच तु

ऊचे मंदर साल रसोई ॥ एक घरी फुनि रहनु न होई ॥1॥ इहु तनु ऐसा जैसे घास की टाटी ॥ जलि गइओ घासु रलि गइओ माटी ॥1॥ रहाउ ॥ भाई बंध कुट्मब सहेरा ॥ ओइ भी लागे काढु सवेरा ॥2॥ घर की नारि उरहि तन लागी ॥ उह

जो दिन आवहि सो दिन जाही ॥ करना कूचु रहनु थिरु नाही ॥ संगु चलत है हम भी चलना ॥ दूरि गवनु सिर ऊपरि मरना ॥1॥ किआ तू सोइआ जागु इआना ॥ तै जीवनु जगि सचु करि जाना ॥1॥ रहाउ ॥ जिनि जीउ दीआ सु रिजकु अम्मब

सह की सार सुहागनि जानै ॥ तजि अभिमानु सुख रलीआ मानै ॥ तनु मनु देइ न अंतरु राखै ॥ अवरा देखि न सुनै अभाखै ॥1॥ सो कत जानै पीर पराई ॥ जा कै अंतरि दरदु न पाई ॥1॥ रहाउ ॥ दुखी दुहागनि दुइ पख हीनी ॥ जिन

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