2024 के ओलिंपिक खेल पेरिस में होंगे । पेरिस ओलिंपिक का शुभंकर है फ्रीज। पेरिस 2024 का दृष्टिकोण दर्शाता है कि खेल जीवन बदल सकता है, शुभंकर खेल के माध्यम से एक क्रांति का नेतृत्व करके एक
दुष्ट तजे न दुष्टता, लो जितना पुचकार, सठे साठ्यम समाचरेत, तभी सही व्यवहार। (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नील पदम् "
पुस्तक इतना जानिये, सबसे बड़ी हैं मित्र, इनकी संगत यों यश बढ़े, जैसे महके इत्र । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नील पदम् "
देख पताका फहरती, कियो नहीं अभिमान, क्षणभंगुर सब होत है, त्वचा, साँस, सम्मान । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नील पदम् "
पति पथिक बन कर रहा, पत्नी सम्मुख रोज, सम्बन्धों से ऐसे में, खो जाते हैं ओज । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नील पदम् "
चालीस बरस की चाकरी, चूल्हा बच्चों के चांस, शनै: शनै: रिसते रहे, रिश्ते - जीवन - रोमांस । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नील पदम् "
एक गृहिणी को दे सकें, वो वेतन है अनमोल, कैसे भला लगाइये, सेवा, ममता का मोल । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नील पदम् "
मंदिर तब ही जाइये, जब मन मंदिर होय, तब मंदिर क्यों जाइये, जब मन मंदिर होय। (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नील पदम् "
महती बातें तब करो, जब मन होय न क्लेश, नहीं ते होवे सब गुड़गोबर, कुछ भी बचे न शेष । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नील पदम् "
आँखों की शोभा बढ़े, जब लें काजर डार, सुथरा मैले के सामने, और लगे उजियार । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नील पदम् "
तारे आँखों के बना, देख-भाल पहचान, तिनका छोटा आँख में, ले लेता है जान । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नील पदम् "
क्यों दूजे के काम में, सदा अड़ाय टांग, एक दिन ऐसा आयेगा, खुल जायेगा स्वाँग । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नील पदम् "
समय का मोती पास था, काहे दिया गँवाय, काहे का रोना-पीटना, अब काहे पछताए । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नील पदम् "
चलते चलते थक गए, ले लो थोड़ा विश्राम, एक अनवरत प्रक्रिया, ख़त्म न होते काम । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नील पदम् "
माता-पिता और बड़ों की बातें, समझो आशीर्वाद, बीते समय के साथ में, बहुत आयेंगे याद । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नीलपदम् "
पिता पुत्र को टोंकता, यह कीजो वह नाय, अपनी गलती के सबक, बेटे को समझाय। (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नीलपदम् "
सोया, खाया, करता रहा, अमूल्य समय बर्बाद, अस बालक सूखे तरु, चाहे जो डालो फिर खाद। (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नीलपदम् "
चैन दिवस का उड़ गया, उड़ी रात की नींद, ऐसे बालक से रखो, आगे बढ़ने की उम्मीद । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नीलपदम् "
कभी अघाया न थका, देते तुम्हें मन की पीर, छह गज राखो फ़ासला, जाओ न उसके तीर । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नीलपदम् "
जो विपत्ति में साथ दे, उसे नहीं बिसराओ, काँधे से काँधा दो मिला, जब भी मौका पाओ। (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नीलपदम् "