जिस थाली में खा रहा, उसमें करता छेद, ऐसे जन पहचानकर, कभी न कहियो भेद। (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
घड़ी- घड़ी क्यों कर रहा, मरने का अपराध, जीवन ही अनमोल है, मलते रह जइयो हाथ। (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
सूरज की एक रौशनी, देती अंकुर फोड़, अपने मतलब की सीख को, लेवो सदा निचोड़ । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
चलती चक्की साँस की, जाने कब रुक जाय, जोड़-घटा और गुना-भाग में, काहे समय गँवाय । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
सोना उतना ही भला, जितने से काम चल जाये, ज्यादा सोया, ज्यादा पाया, तन या मन ढाल जाये । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
जहर भर गया जेहन में, कैसा जादू होय, जैसे कूकुर बावरा, बिना बात के रोय । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
सत्य होता सामने तो, क्यों मगर दिखता नहीं, क्यों सबूतों की ज़रूरत पड़ती सदा ही सत्य को। झूठी दलीलें झूठ की क्यों प्रभावी हैं अधिक, डगमगाता सत्य पर, न झूठ शरमाता तनिक। सत्य क्यों होता प्
आँखों में अश्रु बसें, और बसे हृदय में पीर, नग्न पीर हो जात है, बहें अश्रु फटे ज्यों चीर। (c)@ दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
दो अश्रु नैनन ढले, किया समन्दर खार, मन कितना हल्का किया, ये मन पर उपकार। (c)@ दीपक कुमार श्रीवास्तव " नील पदम् "
पिय की सखी ने द्वार, खोला जाये खेलें होली, खेलें होली सर्वप्रथम, पिय संग जाय के। द्वार खुलत ही भई प्रगट, सखियाँ सखी की, बोली सखियाँ होली, खेलो चलो आय के, सखी दुविधा में पड़ी, भई पीत-वर्ण की