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दिनू की कहानी

12 जनवरी 2024

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दिनू की कहानी

एक समय की बात है । खेड़ा नामक एक गांँव में एक अमीर साहूकार हेमा रहता था । वह बहुत ही धनवान था । गाँव के लोग उसका बहुत सम्मान करते थे । इस वजह से साहूकार घमण्डी और अहंकारी हो गया था । 
खेड़ा गाँव मुख्य सड़क से हटकर कुछ दूरी पर बसा हुआ था और शहर जाने के लिए कोई भी साधन उस गाँव से नहीं था । लोग या तो अपने व्यक्तिगत वाहन से या फिर पैदल ही मुख्य सड़क तक जाया करते थे ।
एक दिन हेमा साहूकार अपनी बड़ी सी गाड़ी में सवार होकर कहीं जा रहा था । रास्ते में उसी के गांँव का गरीब किसान दिनू पैदल अपने बीमार बेटे को गोद में उठाये हुए जाता दिखा । बेटे को गोद में लेकर चलते - चलते दिनू बहुत थक गया था । साहूकार की गाड़ी देखकर दिनू के मन में थोड़ी उम्मीद जगी कि काश ! साहूकार उसके बीमार बेटे को सड़क तक छोड़ दे, तो जल्दी चिकित्सालय पहुंँच जायें । हेमा ने गाड़ी से झाँककर तो देखा, लेकिन गाड़ी नहीं रोकी । दिनू बेचारा दु:खी मन से चुपचाप चलता गया । 
बात बीत गयी । दिनू के बेटे के स्वास्थ्य मे धीरे - धीरे से सुधर आया । खेड़ा गाँव के सारे किसान इस समय सरसों की फसल की कटाई में लगे थे । दिनू अपने परिवार के साथ खेतों में काम कर रहा था, तब - तक उसका पड़ोसी राजू दौड़ता हुआ आया और उससे बोला, "दिनू ! जल्दी चलो, हेमा साहूकार की बेटी को बिच्छू ने काट लिया है । तुम शायद उसे जड़ी - बूटियों के ज्ञान से बचा सको ।" दिनू की आंँखों के सामने अपने बीमार बेटे को पैदल चलते हुए वह दिन याद आया, लेकिन अगले ही क्षण वह तुरन्त अपना काम वहीं छोड़कर राजू के पीछे चल दिया । हेमा साहूकार के घर पर रोना - पीटना मचा था और हेमा साहूकार भी आज घर पर नहीं था । दिनू ने तीन - चार जड़ी - बूटियां का मिश्रण तैयार कर घाव पर लेपित किया व कुछ दवा खिलाई और उसके सिर को सहलाया । बिच्छू के जहर का असर कम हुआ और कुछ ही क्षणों में हेमा साहूकार की बेटी आँखें मलती हुई उठ बैठी । 
खेड़ा गाँव भर के लोग दिनू की खूब प्रशंसा कर रहे थे । तब - तक हेमा साहूकार भी घर आ गया । पूरी बात जानकर साहूकार हेमा का मन दिनू के प्रति कृतज्ञता के भाव से भर गया । वह दिनू के सामने हाथ जोड़कर बैठ गया और बोला, " दिनू ! मुझे क्षमा कर दो । उस दिन तुम अपने बीमार बेटे को गोद में‌ लेकर पैदल जा रहे थे, तब मुझे तनिक भी दया नहीं आयी, लेकिन आज तुमने साबित कर दिया कि वास्तव में तुम बहुत बड़े हो । धन - वैभव से नहीं बल्कि मनुष्य दया और करुणा जैसे गुणों से महान और बड़ा बनता है ।

सीख: - हमें अपनी धन - सम्पत्ति पर कभी अहंकार नहीं करना चाहिए और अपने आस - पास के लोगों की यथा - सम्भव सहायता करनी चाहिए।
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