कैफे जो दिशा की ज़िन्दगी बन चूका है उसकी शुरुआत भी इतनी आसान नहीं थी | दिशा किसी ज़माने में पत्रकार यानि जर्नलिस्ट हुआ करती थी पर उसे अपना जॉब बहुत बोरिंग लगता था | एक दिन हिम्मत जुटा कर दिशा ने अपने पापा से बात की |
दिशा - पापा ये जॉब बहुत बोरिंग है | आप तो जानते हैं मुझे लिखने का कितना शौक है पर इस जॉब के साथ मुझे दो लाइन तक लिखने की फुरसत ही नहीं मिलती |
अशोक ( दिशा के पापा ) - ( नाराज़ होकर) क्या करोगी कुछ सोचा है?
दिशा - रेस्टोरेंट खोलने का सोच रही हूँ |
अशोक ( दिशा के पापा ) - तुम्हारे पास दो साल हैं | जब तक अतुल इंडिया नहीं आता तब तक जो स्टार्ट करना है कर लो |
अतुल अशोक (दिशा के पापा) के जिग्री दोस्त का बेटा है और कोई 4 साल पहले दिशा और अतुल की शादी तय हुई थी। मेडिकल की पढ़ाई के बाद अतुल अमेरिका में ही प्रैक्टिस करने लगा और दो सालों बाद इंडिया आने का प्लान था इसलिए अशोक (दिशा के पापा) ने दिशा को रेस्टॉरेंट शुरू करने के लिए दो साल का समय देते हैं ।
दो-तीन महीने दिशा ने रिसर्च और प्लानिंग की फिर अपने रेस्टॉरेंट "द कैफे" की शुरुआत की, कोई 5-6 महीने लाइफ स्ट्रगलिंग रही फिर जल्द ही दिशा और कैफे दोनों की लाइफ ट्रैक पर आ गई। अतुल कभी अमेरिका से लौटा ही नहीं, वहीं उसने किसी से शादी कर ली और अमेरिका सिटीजन बन वहीं सेटल हो गया। जिस दिन अतुल की शादी की ख़बर आई उस दिन अतुल और दिशा के घर में दुःख माहौल था | पर आप ये न सोच लीजियेगा कि दिशा किसी गम में थी, बिलकुल नहीं | पर दिशा इस ख़बर से दुःखी नहीं थी इस बात को समझाने के लिए 5 साल पुराण नज़ारा दिखाना होगा जब अतुल और दिशा मिले थे |
कोई 5 साल पुरानी बात है,दिशा के घर में सुबह-सुबह अशोक जी यानि दिशा के पापा का फ़ोन रिंग होता है, बगान में जाकर बड़ी देर तक खुश हो-होकर फ़ोन पे बात करते हैं और फ़ोन रखने के बाद मंजू जी यानि दिशा की माँ को बताते हैं कि अजीत इंडिया आया हुआ है और आज शाम घर पे आ रहा है |
मेहमान के आने की जोर-शोर से तैयारी चल रही थी, मंजू जी ने ढ़ेरों पकवान बनाए थे ये देख दिशा थोड़ी हैरान थी, इतनी तैयारियां देखकर दिशा से रहा न गया और आखिर उसने अपने पापा से पूछा |
दिशा ( पापा से) - आपके फ्रेंड की फॅमिली के आने पर माँ इतनी ज्यादा तैयारियां क्यों कर रही हैं ?
अशोक (दिशा के पापा ) - अरे बेटा मेरा फ्रेंड सालों बाद आ रहा है तैयारी तो होगी ना |
मंजू (दिशा की माँ ) - दिशा तुम फालतू के सवाल ना करो, जाओ ड्रेस चेंज करो | तुम्हारी लिए मैंने ब्लू कुर्ती निकाली थी, तुमने ये क्यों पहनी ?
दिशा (माँ से ) - अरे माँ दिवाली थोड़ी ना है कि ज़रीवाली कुर्ती पहनूँ | |
मंजू (दिशा की माँ ) - चुप से जो कह रही हूँ वो करो |
दिशा (माँ से ) - ओके |
शाम होती है और अशोक जी के फ्रेंड अजीत अपनी बीवी लीना और बेटे अतुल के साथ पहुंचते हैं | मंजू जी दिशा को बुलाती हैं,सब से मिलवाती है और कहती हैं |
मंजू (दिशा की माँ) - दिशा बेटा, हम बड़ों के बीच कहाँ बैठी है ? अतुल को घर दिखाओ |
दिशा ( अतुल से ) - आओ अतुल |
अतुल (दिशा से ) - बिलकुल |
दिशा ( अतुल से ) - घर में दिखाने जैसा कुछ इंटरेस्टिंग है नहीं | तुम्हें अपना प्यारा सा बागान दिखती हूँ |
अतुल (दिशा से )- शायद तुम्हें मालूम नहीं के हमें क्यों मिलवाया गया है |
दिशा ( अतुल से ) - (आश्चर्य से) क्यों मिलवाया गया है ?
अतुल (दिशा से ) - हमारे पेरेंट्स दोस्ती को रिश्तेदारी में बदलना चाहते हैं |
दिशा ( अतुल से ) - तभी घर पर ऐसी तैयारी हो रही थी मानों दिवाली हो | देखो अतुल मैं शादी नहीं करने वाली हूँ |
अतुल (दिशा से )- मैं करने वाला हूँ पर किसी और से |
दिशा - ( खुश होकर ) ये तो बहुत अच्छी बात है |
अतुल और दिशा मिलकर तय किया कि कि किसी को कुछ नहीं बताएँगे और जब अतुल खुद की मर्ज़ी से शादी कर लेगा तो पेरेंट्स नाराज़ ज़रूर होंगे उनकी की दोस्ती भी बनी रहेगी और होता भी ऐसा ही है अतुल की शादी ख़बर से दोनों के पेरेंट्स बहुत नाराज़ होते हैं पर उनकी दोस्ती बनी रहती है |
दिशा कुछ दिनों दुखी होने की एक्टिंग किया फिर पूरा ध्यान अपने बिज़नेस पर लगा दिया, सिर्फ दो सालों में ही दिशा का बिज़नेस अच्छा-खासा चलने लगा और कॉरिडोर उसकी ज़िन्दगी का अहम् हिस्सा बन गया और तो और लिखने के लिए भी दिशा को भरपुर समय मिलने लगा। अब कैफे को खुले कोई 4-5 साल हो चुके हैं, ये कैफे ही उसकी ज़िन्दगी बन चूका है और अब दिशा एक जाने-माने मैगज़ीन से जुड़ी है-जिसमें उसकी कहानियाँ और आर्टिकल पब्लिश होती हैं। दिशा ने जर्नलिस्ट की नौकरी को छोड़ तो दिया पर जर्नलिज्म का कीड़ा उसमें अब भी है, दिशा का न्युज ब्लौग है - "नई दिशा" | वक्त के साथ दिशा की "नई दिशा" ने भी अपनी पहचान बना ली है |