अब तक हमने पढ़ा कि किस तरह दिशा जर्नलिस्ट से रेस्टॉरेंट की ओनर होने का सफर तय करती है | दिशा का रेस्टॉरेंट द कैफे ही दिशा की ज़िन्दगी बन जाता है |
आपको अनोखी याद है ? वो प्यारी सी लड़की जो कहानी की शुरुआत में ऑरेंज कलर की बूटीदार कुर्ती पर दुपट्टा सम्हालते हुए आइडियल होम्स से बाहर आती है और कैफे के मेन गेट का ताला खोलती है | कोई 2-3 साल से अनोखी ही दिशा के कैफे का छोटा-बड़ा काम सम्हालती है और अब तो दिशा के लिए कैफे की ही तरह अनोखी भी काफी इम्पोर्टेन्ट हो गई है | अनोखी अपने नाम की तरह सचमुच अनोखी है। अनोखी आइडियल होम्स के हेड सिक्योरिटी गार्ड रामानुज की बेटी है । अनोखी की पापा सालों पहले बिहार से पैसे कमाने दिल्ली आए थे और अपने मेहनत का पैसा-पैसा जोड़कर घर भेजा करते थे | अनोखी बिहार के गांव में अपनी मां के साथ अपने ननिहाल में रहा करती थी । क्योंकि अनोखी के पापा गांव से बहुत दूर दिल्ली में रहा करते थे इसलिए अनोखी से जुड़े सारे बड़े फैसले उसके मामा ही लिया करते थे । 12वीं पास होते ही उसके मामा ने उसकी पढ़ाई छुड़वा दी यह कह कर कि अगर ज्यादा पढ़-लीख ली तो अनोखी की शादी में बड़ी परेशानी होगी ।अनोखी के दिल्ली आने के कोई 5-6 महीने पहले उसके के मामा ने अनोखी की शादी तय की और अपनी बहन को बताया ।
मनीष( अनोखी के मामा) - दिदिया मैंने अनोखी के लिए रिश्ता देखा है, लड़का बड़ा अच्छा है, कहो कब मिलवा दूं?
अनीता (अनोखी की माँ ) - भैया आपने देखा है तो ठीक ही देखा होगा मैं क्या देखूंगी ?पंडित से तारीख पूछ कर शादी करवा देते हैं |
मनीष( अनोखी के मामा)- नहीं नहीं मैं उसे बुलाता हूं एक बार मिल तो लो । देख दीदीया तेरा देखना तो जरूरी है तू एक बार देख ले और जीजाजी को बता दे, अगर पसंद आता है तो । मैंने तो सोचा है कि लड़के को अनोखी से भी मिलवा ही दूँ ताकि कल हो के अनोखी यह न कहे कि मेरे मामा बड़े दकियानूसी थे और कोई भी लड़का पकड़ कर मेरा ब्याह कर दिया ।
अनीता (अनोखी की माँ ) - अरे नहीं भैया अनोखी से मिलवाने की क्या जरूरत है ?
मनीष( अनोखी के मामा)- दीदी आज ही शाम को चाय-नाश्ते पर बुलाया है अनोखी को अच्छे से तैयार कर देना ।
नीला (अनोखी की मामी ) - (हंसकर) दीदी आजकल गांव के लोग भी लोग मॉडर्न हो गए हैं |
नीला और अनीता दोनों एक-दूसरे को देख कर हंसने लगते हैं |
और जब शाम होती है तो अनोखी की मामी नीला अनोखी को बड़े अच्छे से तैयार कर देती है और शाम में जब लड़का आता है तो अनोखी को लड़के से मिलवाया जाता है ।
अनोखी घुंघट कर लड़के से मिलने जाती है और अनोखी जब नजरें उठाकर लड़के को देखती है तो उसके चेहरे का रंग उड़ जाता है ।
अनोखी (मन ) - यह लड़का है या लड़के के पापा हैं ?
लड़के के जाने के बाद अनोखी जब गहने उतार रही होती है तो अपनी मां और मामा की बातें सुनती है
अनीता (अनोखी की माँ ) - लड़का तो बहुत अच्छा है भैया |
मनीष (अनोखी का मामा ) - तो मैं बात पक्की करता हूँ और पंडित से शादी की तिथि भी निकलवाता हूँ |
अनोखी ने अपने पापा के लिए स्वेटर बना था, उसकी स्टिचिंग कर रही थी | तभी अनोखी अपने मामा और मां की बातें सुन अनोखी परेशान हो जाती है क्योंकि उसकी माँ और मामा ने उसकी शादी का मन बना लिया था | पर शायद जल्दी ही अनोखी ने अपनी परेशानी का हल ढूंढ लिया इसलिए अपने मां से मुस्कुराकर कहती है ।
अनोखी - मामा थोड़ा फोन दो पापा से बात करनी है |
अनोखी फ़ोन लेकर बहार जाती और पापा को फ़ोन करती है |
अनोखी ( फ़ोन पर ) - हेलो ! पापा मैंने आपके लिए स्वेटर बनाई है है अपने घर का पता भेज दो मामा के फोन पर ताकि में स्वेटर भिजवा सकूं ।
रामानुज (खुश होकर ) - क्या बात है? हमारी बिटिया ने हमारे लिए स्वेटर बनाया है | अभी पता भेजते हैं बिटुआ |
अनोखी (मुस्कुराकर) - जी पापा |
थोड़ी देर में अनोखी के मामा के फोन पर मैसेज टोन बजता है और अनोखी भाग कर पेज और पेन लेकर आती है और पता नोट करती है ।
अनीता (अनोखी की माँ ) - अनोखी स्वेटर दे मैं साइड की सिलाई पक्की कर दूँ |
अनोखी - नहीं माँ मैंने बहुत अच्छे से किया है |
अगले दो दिनों में चुपचाप दिल्ली की टिकट करवाती है और दिल्ली की ट्रैन में बैठ अपने पापा के पते पर पहुंच जाती है |
कोई शाम के चार बजे होंगे दिशा कॉरिडोर के काउंटर पर से बाहर एक लड़की को परेशान होकर इधर-उधर होता देख रही थी | उस लड़की को परेशान देख अब दिशा से रहा नहीं जा रहा था तो वो बाहर जाती है |
दिशा (अनोखी से ) - आप किसी का वेट कर रहे हो ?
अनोखी (दिशा से) - मैं अनोखी हूँ और अपने पापा का, वो यहीं काम करते हैं ?
दिशा - कॉरिडोर में आई मैं इस रेस्टोरेंट में ?
अनोखी - नहीं आइडियल होम्स में | पर उन्हें पता नहीं है कि मैं आई हूँ दिल्ली | और मेरे पास फ़ोन नहीं है इसलिए बाहर खड़ी हूँ, मेरे पापा गार्ड हैं यहाँ पे बाहर तो आएंगे ही ना |
दिशा - मैं भी इसी अपार्टमेंट में रहती हूँ | परेशान ना हो, नंबर बताओ मैं डायल करती हूँ |
अनोखी बैग से एक पेपर निकाल कर देती है जिसपे उसके मोबाइल नंबर होता है | दिशा नंबर मोबाइल में टाइप करती है और कहती है |
दिशा ( अनोखी से) - ( मुस्कुराकर )तुम रामानुज भैया की बेटी हो ?
अनोखी - हाँ |
दिशा (फ़ोन पर ) - हेलो ! भैया थोड़ा कैफे में आइए, अर्जेंट है |
रामानुज (अनोखी के पापा) भागकर कॉरिडोर पहुँचते हैं | और अनोखी को देख अचंभित हो जाते हैं |
रामानुज (अनोखी के पापा) - (अनोखी से ) बिटिया तू यहाँ कैसे ?
अनोखी (अपने पापा से ) - (रोते हुए ) मैं घर से भागकर आई हूँ, मामा मेरी शादी बुढ़े चाचा से करवा रहे हैं और माँ भी कुछ नहीं कह रही, सब मेरी शादी की तैयारी कर रहे हैं, मुझे ये शादी नहीं करनी है, इसलिए मैं भागकर यहाँ आ गई |
और अनोखी फुट-फुट कर रोने लगती है |
रामानुज (अनोखी के पापा) - अरे बिटिया तू रो मत | तुझे शादी नहीं करनी तो शादी बिलकुल नहीं होगी | अभी खबर लेता हूँ सबकी |
रामानुज (अनोखी के पापा) ( फ़ोन पर ) - हेलो !
अनीता ( फ़ोन की दूसरी ओर से ) - ( परेशान होकर) अनोखी ना मिल रही है जी | कल शाम से हम ढूंढ़ रहे हैं, कहीं मिल रही है जी | कहीं शेर-चीता तो न ले गया हमर बेटी को |
रामानुज (फ़ोन पर ) - ( अपनी बीवी से सख्ती से ) परेशान न हो | अनोखी हमारे पास है और हाँ अनोखी को अभी शादी नहीं करनी |
अनीता ( फ़ोन की दूसरी ओर से ) - ये आप क्या कह रहे हैं |
रामानुज (फ़ोन पर ) - (सख्ती से) जो सुना है सही सुना है तुमने और हाँ अभी अनोखी कुछ दिन यहीं रहेगी |
रामानुज (अनोखी के पापा) मुस्कुराके अनोखी के सर पर हाथ रखते हैं और अनोखी अपने आँसू पोंछती है और ख़ुशी से मुस्कुराने लगती है |
दिशा दूर से मुस्कुराकर सब कुछ देख और सुन रही थी और पूरी कहानी दिशा के समझ आ जाती है | कुछ दिनों बाद अनोखी दिशा के कैफ में काम करने लगती है और साथ ही ग्रेजुएशन भी और अब तो ग्रेजुएशन के फाइनल ईयर में है अनोखी |