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सुकन्या काकी की लत 

10 अक्टूबर 2022

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पिछले अध्यायों में हमने जाना कि दिशा ने अपने रेस्टॉरेंट - कैफे की शुरुआत कैसे की और साथ ही हमने दिशा की ज़िन्दगी के पिछले पन्नों के बारे में जाना। फिर हमने दिशा के ही रेस्टॉरेंट में ही काम करने वाली अनोखी की ज़िन्दगी के किस्से भी सुने।

एक और दिन की शुरुआत होती है, सुबह के 6: 30 बजे हैं रोज की तरह मिल्क डिलीवरी के लिए आइडियल होम्स के गेट पर छोटी ट्रक आती है।

डिलीवरी बॉय-सिक्योरिटी भैया (नाम याद करते हुए) अअअ उदित भैया निशा दीदी को फोन कर दो, बोलो मिल्क डिलीवरी के लिए आ गया है।

सिक्योरिटी गार्ड-यह लो अनोखी बिटिया आ गई।

अनोखी (सिक्योरिटी गार्ड से) - (मुस्कुराकर) गुड मॉर्निंग चाचा!

अनोखी कैफे की चाभी लेकर पहुँचती है, कॉरिडोर का ताला खोलती है। डिलीवरी बॉय की 4 कंटेनर की डिलीवरी कर चला जाता है। तभी सुकन्या काकी पहुँचती है और अपनी चप्पलें रखती हैं और साड़ी का पल्लू कमर में कसती हुई अंदर जाती है और साफ-सफाई में लग जाती है। अनोखी चेहरे पर प्यारी मुस्कान लिए खिड़की के परदे ठीक कर रही है सारे शो पीस की डस्टिंग कर रही है तभी दिशा नहाकर गीले बालों में कॉरिडोर पहुँचती है। शिव पार्वती की पूजा करती है।

दिशा का अपना ही स्टाइल है ज्यादातर एंकल लेंथ की जींस  पहनना, कॉटन की लॉन्ग कुर्ती  डालना है और उसके  उलझे से घुंघराले लंबे बाल बहुत जंचते हैं दिशा पर।

दिशा (अनोखी से) - गुड मॉर्निंग अनोखी |

अनोखी (दिशा से) - गुड मॉर्निंग दीदी |

दिशा (सुकन्या काकी से) - गुड मॉर्निंग काकी |

सुकन्या काकी (दिशा से) - गुड मॉर्निंग दिशा बेटा।

तभी सूरज भी सब्जियां लेकर कैफे पहुंचता है उसके ठीक पीछे दोनों कुकिंग स्टाफ़ भी पहुंचते हैं। कॉरीडोर में आने वालों का सिलसिला शुरू हो जाता है। किसी टेबल पर चाय चल रही है तो किसी टेबल पर ब्रेकफास्ट,एक घंटे तक कॉरिडोर में बहुत से लोग चाय नाश्ता कर रहे होते हैं | अनोखी हर टेबल का ध्यान रखती है,फिर धीरे-धीरे कैफे में लोग कम होने लगते हैं।

अनोखी (दिशा से) - दीदी में कॉलेज के लिए निकलूं ?

दिशा (अनोखी से) - हां हां बिल्कुल |

अनोखी (सूरज से) - सूरज भैया गेस्ट का ध्यान रखना मैं जल्दी ही आती हूं।

सूरज (अनोखी से) - ओके अनोखी।

अनोखी कैफे से बाहर चली जाती है, कॉरीडोर में आने जाने वालों का सिलसिला जारी रहता है। अब दोपहर के 3:00 बजे है दिशा काउंटर पर बैठ लैपटॉप में व्यस्त है सभी अनोखी कॉलेज से वापस आती है। सूरज दिशा से अनोखी आ गई, निशा दीदी मैं चाय बनाने जा रहा हूं सुकन्या काकी चाय पियोगे ना, अनोखी फ्रेश हो जा,चाय ला रहा हूं।

दिशा अपना लैपटॉप को लेकर टेबल पर पहुंचती है, सुकन्या काकी बगल की टेबल पर, अनोखी भी फ्रेश होकर  बैठती है और सूरज चाय लेकर आता है और सब लोग चाय पीते हुए बातें करने लगते हैं | तभी सुकन्या काकी  के पति कबीर और लाल साड़ी में एक सुंदर सी औरत चार-पांच साल के बच्चे के साथ कैफे के गेट पर नजर आते हैं।

कबीर (सुकन्या काकी का पति) ( दिशा से) -  मैडम जी सुकन्या से बात करनी है |

दिशा (सुकन्या काफी के पति से) - हां हां आइए |

कबीर (सुकन्या काकी के पति)( सुकन्या काकी से) - खुश हो कर देखो सुकन्या तुमसे मिलने कौन आया है |

राधा (सुकन्या काफी की बेटी)( सुकन्या काफी से)  - बिना मुस्कुराए मेरे देवर की शादी है तुम्हें आना है मां |

दिशा (सुकन्या काकी से ) - (खुश होकर) अच्छा तुम्हारी बेटी राधा है |

सुकन्या काकी (दिशा से) - (मुस्कुराकर) हां मेरी बेटी राधा है और नाती मोनू ।

सुकन्या काकी (अपनी बेटी राधा से) - हां हां जरूर आऊंगी |

राधा (सुकन्या काकी की बेटी)( सुकन्या काकी से) - ( नाराजगी दिखाते हुए) तुम्हारे दामाद ने ज़िद की थी इसलिए                                      मैं आई बुलाने वरना नहीं आती, आओगी तो ठीक से रहना पहले बता दे रही हूं और अब मैं जा रही हूं |

इतना कहकर सुकन्या साथी की बेटी राधा  अपने बेटे मोनू का हाथ पकड़ कर बाहर निकल जाती है और उसके पीछे-पीछे सुकन्या काकी के पति भी बाहर निकल कर कहते हैं |

सुकन्या काकी के पति( सुकन्या काकी से) -  मैं राधा को छोड़ कर आता हूं |

राधा का बर्ताव देखकर दिशा, अनोखी, सूरत सभी अचंभित थे और सुकन्या काकी सर झुकाए बैठी थी | दिशा से रहा ना गया और  सुकन्या काकी से पूछ बैठी |

दिशा (सुकन्या काकी से) -  (आश्चर्यचकित होते हुए) काकी यह  क्या था ?  राधा तुमसे ऐसे बात क्यों कर रही थी, तुम तो उसकी बड़ी तारीफ किया करती थी ?

सुकन्या काकी (दिशा से) - राधा सचमुच बड़ी होशियार है अभी मुझ से थोड़ी नाराज हैं |

दिशा (सुकन्या काकी से) - पर क्यों ?

अनोखी सुकन्या काकी से क्या बात है काकी बताओ ना |  तुम परेशान लग रही हो |

सूरज (सुकन्या काकी से) -  मुझे तो तुम्हारी बेटी का बर्ताव ठीक ना लगा |

सुकन्या काकी - आप सब  नहीं जानते उसकी नाराजगी सही है, सारी गलती मेरी है |

दिशा (सुकन्या काफी से) - काकी बताओगी ? बात क्या है |

सुकन्या काफी  - मैं बता तो  दूं पर तुम लोग मुझे गलत समझोगे।

अनोखी  - काकी कोई तुम्हें गलत नहीं समझेगा |

दिशा, अनोखी और सूरज तीनों चुपचाप बैठे रहते हैं और सुकन्या काकी सर झुका कर अपनी बात बताना शुरू करती है।

सुकन्या काकी -  राधा की नाराज़गी की कहानी मेरे बचपन से शुरू होती है,  बचपन में मैं अपनी माँ और बाबा के साथ अपने गांव में रहा करती थी मेरे बाबा गांव के जमींदार के जमींदार के मुंशी थे, गांव में गिने-चुने ही पढ़े-लिखे लोग थे उनमें से एक थे - मेरे बाबा |  बाबा जमींदार की सुदी-किश्ती  का काम देखा करते थे, यानी कि गांव में अगर किसी को उधार चाहिए होता था  तो जमींदार दिया करता था उसके बदले में वह सूद लिया करता था, मेरे बाबा ही उस काम को संभालते थे |

सुकन्या काकी - मेरे बाबा बड़े ईमानदार इंसान थे उन्होंने जमींदारों की लाखों की संपत्ति पर कभी एक पैसे तक की  बेईमानी नहीं की | मेरी माँ  का कहना था कि जमींदार के लड़के अनपढ़ थोड़े पैसे इधर-उधर करके घर लाया करें |  पर बाबा मां के इस विचार के खिलाफ थे, वह मुझे हमेशा इमानदारी का पाठ पढ़ाया करते थे |  मैं कोई 7-8 साल की थी, मुझे समझ नहीं आता था कि माँ और बाबा में से किसके के उसूल  सही है और किसके गलत | ज़मींदार की पोती मेरी ही पाठशाला में पढ़ती थी इसलिए ज़मींदार बाबा से कहते  कि - अपनी बेटी सुकन्या को लाया करो ताकि वो मेरी पोती के साथ खेला करे | इसलिए बाबा ज़मींदार के यहाँ मुझे लेकर  जाते थे और मैं वहां खेला करती थी | ज़मींदार की पोती के खिलौने और कपड़े मुझे बड़े लुभावने लगते | और एक दिन मैं लालच में पड़ कर ज़मींदार की पोती के दो खिलौने उठा  आई | माँ ने जब देखा कि मैं खिलौने लाई हूँ, तो मेरी बहुत प्रशंसा की, मुझे बहुत प्यार किया | फिर माँ  मुझे रोज जमींदार के घर से उठा लाने को कहती, और मैं अगर कुछ लेकर आती तो मां मुझे बहुत प्यार करती | पता नहीं कब मेरी आदत मेरी लत  बन गई | पहले तो मैं जमींदार के यहां से सामान उठाकर लाया करती थी, फिर  पड़ोसियों और रिश्तेदारों के यहाँ से सामान उठा कर लाने लगी,और ये लत मेरी कमजोरी बन गया |

सुकन्या काकी - मैं कोई 17 साल की थी मेरी ही सहेली की शादी थी, दूल्हे की बहन का दुपट्टा बड़ा सुंदर लगा, और मौका पाते ही मैंने दूल्हे की बहन का दुपट्टा चुरा लिया। पर मुझे दुपट्टा चुराते हुए किसी ने देख लिया था और उसने पूरे गांव में इस बात का बवाल मचा दिया |  मेरी इस हरकत के बाद बाबा को गांव में बहुत शर्मिंदगी उठानी पड़ी, इस घटना के दो ही महीने के बाद बाबा ने मेरी शादी करवा दी और मैं ससुराल आ गई | शादी के बाद जब ससुराल में मेरी ननदें आती और उनका कोई सामान मुझे अच्छा लगता तो मैं खुद को रोक नहीं पाती। मेरी ननद ने एक दो बार अपने सामान खोने पर बड़ा हल्ला मचाया और चली गई, पर मैं बहुत खुश थी कि किसी को पता ही नहीं चला की करामात मेरी थी | ननद के जाने के बाद ही सासू मां ने बताया कि वह मेरी चोरी के बारे में जानती थी पर चुप रही ताकि  छोटी ननद के आगे मुझे शर्मिंदगी ना उठानी पड़े | फिर मेरी सासू मां और तुमलोगों के कबीर काका ने  बहुत सख्ती बरती तो मुझे लगने लगा कि मेरी चोरी की आदत चली गयी | पर ऐसा हो नहीं पाया कभी-कभी मैं खुद को रोक नहीं पाती और मुझसे गलती हो जाती थी | राधा की शादी में मुझसे फिर गलती हो गयी, मैंने राधा की सासु माँ की चप्पलें चुरा ली,और चप्पलें मेरी अलमारी में मिली और राधा को शर्मिंदगी उठानी पड़ी | तभी से राधा नाराज़ है  मुझसे |

दिशा सुकन्या काकी से -कोई बात नहीं कहा कि आज रात भर नाराज है कल मान जाएगी, अपने ज्यादा दिन तक नाराज नहीं रहते | और आपको अपनी कमजोरी पता है और अपनी कमजोरी स्वीकार करने की हिम्मत रखती है यह भी कोई कम बड़ी बात नहीं है |

अनोखी (सुकन्या काकी से) - कोई बात नहीं काकी सब में कोई न कोई होती है, हम आपके बारे में कुछ गलत नहीं सोचने वाले |  गेस्ट आ रहे हैं चलो काम पर लगा जाए |

फिर दिशा अपनी लैपटॉप लेकर वापस काउंटर पर चली जाती है, गेस्ट के स्वागत में लग जाती है, पर सूरज घोर चिंता में बैठा रहता है और कहता है |

सूरज - मैं तो सोच ही नहीं पा रहा हूं कि ऐसी भी कोई लत हो सकती है |

अनोखी (सूरज से) -  (मुस्कुराकर) सूरज भैया उठो इतनी  चिंता ना करो सब्जियां बुला रही है तुम्हें |

सूरज (अनोखी से) -  हाँ  सही कह रही हो मैं अपने काम पर लगता हूं |

इतना कहकर सूरज रसोई चला जाता है,  अब शाम हो चुकी थी गेस्ट का सिलसिला फिर से शुरू हो चुका था |

तभी कैफे के बाहर एक औरत अपने पति के साथ ठेले पर हाथी के दांत की चूड़ियां बेचने आती है,सुकन्या अनोखी और कुछ गेस्ट हाथी के दांत की चूड़ियां देख रहे होते हैं और दिशा अपने काउंटर पर होती है, चूड़ियां बहुत महंगी थी ऐसा बोलते हैं और कोई भी चूड़ी नहीं लेता | अब रात हो चुकी थी  सुकन्या काकी घर जा रही थी, जब सुकन्या काफी शु स्टैंड से अपनी चप्पलें निकाली दिशा की नजर सुकन्या काकी की चूड़ियों पर गई,  सुकन्या काफी में दाहिने हाथ में दो हाथी दाँत की चूड़ियां पहन रखी थी | दिशा  बहुत आसानी से सुकन्या काकी की लत की मजबुरी समझ जाती है और दिशा के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है पर कुछ पूछती नहीं है ।

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रचनाएँ
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