shabd-logo

दोस्ती

6 अगस्त 2022

24 बार देखा गया 24

कहते है “एक पुस्तकालय सौ दोस्तो के बराबर होता है लेकिन एक सच्चा दोस्त सौ पुस्तकालयों के बराबर होता है।"

मैं आदर्श मल्होत्रा, कक्षा– 10, स्कूल– डी. ए. वी. का एक मामूली सा छात्र। मेरा अब तक का सबसे अच्छा दोस्त– प्रियांशु, और पूरी क्लास। मेरा स्कूल एक आम सा सरकारी स्कूल लेकिन वो आम सा सरकारी स्कूल हमारी अनगिनत यादें लिए बैठा है और इस आम से स्कूल में हमारी दसवीं की कक्षाएं शुरू हो जाती हैं।

मेरा स्कूल एक संस्था के द्वारा चलता था और उस संस्था ने मेरे शहर में तीन स्कूल खोले थे। दो लड़कों के लिए और एक लड़कियों के लिए और मेरा स्कूल तीनों में से सबसे नया और अच्छा था इसीलिए साल में एक बार होने वाला प्रदर्शनी का कार्यक्रम मेरे स्कूल में ही होता था। तीनों स्कूलों की प्रतियोगिताएं अलग– अलग दिन होती थी जिसमे प्रदर्शनी के साथ प्रश्नोत्तरी, नृत्य, संगीत और नाटक जैसे कार्यक्रम शामिल होते थे। ये सब एक सप्ताह चलता था और मेरा स्कूल एक सप्ताह लड़कियों से भरा होता था। वो रूखा सूखा स्कूल भी उस समय हरा– भरा लगता था और ये लड़कों के लिए आम बात नहीं थी ये किसी सुंदर सपने से कम नहीं था सब सज– धज के तैयार होते थे लड़कियों पे अपना प्रभाव जमाने के लिए।

हमारा आखिरी साल था उस स्कूल में क्योंकि अगले साल कौन कहां जाएगा किसी को पता नहीं इसीलिए हम हमारे आखिरी साल को यादगार बनाना चाहते थे। पहले मैं सिर्फ अपने स्कूल की बारी वाले दिन जाता था पर इस साल मैं हर दिन अपने दोस्तो के साथ गया। जिस दिन लड़कियों के स्कूल की बारी थी उस दिन उस स्कूल की हर एक लड़की मेरे स्कूल में थी, कुछ ज्यादा ही भीड़ थी लड़कियों की उस दिन। मैं अपने दोस्तो के साथ था जिन्होंने प्रदर्शनी में अपनी परियोजनाएं लगाई थी, एक लड़की आई और उस प्रोजैक्ट की बुराई करके चली गई। मुझे बुरा लगा पर मेरे कुछ बोलने से पहले मेरा दोस्त आयुष मुझे बोलता है, यार कितनी अच्छी लड़की है चल पता करते है उसके बारे में। मुझे और गुस्सा आया मैने मना कर दिया पर वो नहीं माना तो मैं मान गया क्योंकि फिर बेचारे को फिर लड़की कहां मिलती । हम उसे भीड़ में खोजने हॉल से निकले तो आयुष ने देखा वो प्रियंका और काजल से बात कर रहीं थी जो बाहर स्कूल परिसर में खड़ी थी। जिन दोनो का नाम लिया उन्हें मैं जानता हूं, वो हमारे ट्यूशन में ही पढ़ती थी आयुष उनसे बात करता था पर मैंने कभी उनसे बात नहीं की थीं। आयुष के ज़िद करने पर मैं और वो उन दोनो के पास गए, आयुष ने उस लड़की के बारे में पूछा और उन्होंने बड़े आराम से उसके बारे में बता भी दिया, उसका नाम था– साक्षी।उसके बाद आयुष ने उसे खोजा पर वो मिली नही, शायद चली गई हो और वो उदास मेरे पास आया और फिर हम भी घर के लिए निकल गए।

दूसरे दिन ट्यूशन था जो सप्ताह में तीन दिन सुबह– सुबह होता था। हम दोनो ट्यूशन पहुंचे और वहां जो हमने देखा, उसे देख कर आयुष पागलों की तरह हसने लगा, उस बेचारे को हद से ज्यादा खुशी मिल गई जब उसने सामने साक्षी को बैठा हुआ देखा। आयुष ने प्रियंका से पूछा “ये कब से यहां आने लगी”? प्रियंका ने कहा कि साक्षी पहले से हमारे ट्यूशन में ही पढ़ती थी बस उसका समय अलग था लेकिन उसे दिक्कत आ रही थी इसीलिए उसने अपना समय बदलवा लिया। इतना सुनने के बाद बेचारे की खुशी थोड़ी कम हो गई। ट्यूशन खत्म हुआ और उसने साक्षी का पीछा करने का प्लान बनाया, मैने साफ मना कर दिया पर वो नहीं माना और अकेले जाने लगा, तब फिर मैं मजबूरी में उसके साथ गया। हम उसका पीछा करते हुए उसके घर तक पहुंच गए और ये चीज उसे बुरी लग गई, उसने अपने सारे दोस्तो को ये बात बता दी और हम बदनाम हो गए। अगले दिन जब मैं ट्यूशन गया सब मुझे अजीब नजरो से देख रहे थे, मुझे उस समय कुछ भी पता नहीं था। जब मैं ट्यूशन से निकला तो प्रियंका ने मुझे रोका और बोलने लगी “ मैं तो तुम्हे बहुत अच्छा लड़का समझती थी पर तुम ऐसी हरकत करोगे मुझे पता नहीं था।”

मुझे कुछ समझ नहीं आया, मैने उससे पूछा की मैने क्या किया है? वो कहने लगी “ तुमने जो किया है उसपर मैं तो क्या किसी को विश्वास नहीं है की तुम ऐसा कर सकते हो।”

अब मुझे एक दिन पहले का कारनामा याद आया, प्रियंका और काजल दोनो मुझपर बहुत गुस्सा थी फिर मैने उन्हे सारी बाते बताई और फिर दोनो का गुस्सा शांत हुआ। उस दिन हमने रास्ते में काफी बाते की, हम रोज उसी रास्ते से गुजरते थे लेकिन अंजान की तरह पर आज से हम दोस्त बन गए। मैं स्कूल गया, स्कूल में भी सब पूछने लगे तो उनको समझाया क्योंकि आज तक मैने किसी लड़की को भाव नहीं दिया था तो सब इस बात से हैरान थे।

कुछ दिनों बाद सरस्वती पूजा थी, मैं ट्यूशन गया तो देखा कि साक्षी भी आई थी। मैं उसके पास गया, उससे माफी मांगी उसने मुझे माफ भी कर दिया। हमने कुछ देर बाते की फिर उसने दोस्ती का हाथ बढ़ाया और हम अच्छे दोस्त बन गए। अगली सुबह मैं ट्यूशन गया, उस दिन एक नई लड़की आई– आइशा। आयुष को वो भी पसंद आ गई और फिर हमने साइकिल ली और हम एक बार फिर निकल लिए। लेकिन इसमें एक और ट्विस्ट था, किसी और को भी आईशा बहुत पसंद आ गई थी।

3
रचनाएँ
माध्यमिक
0.0
उम्र का एक ऐसा दौर जहां जिंदगी हर रोज बदलती है।
1

परीक्षा

31 जुलाई 2022
0
0
0

आज 22 फरवरी, 2017 , आज से हमारी माध्यमिक की परीक्षा शुरू होने वाली है। मैं परीक्षा हॉल में बैठा हुआ हूं और अजीब सी शांति है क्लास में, हर कोई शांत होकर भी लगता है की कोई शांत नहीं है। धड़कने तेज है, स

2

दोस्ती

6 अगस्त 2022
0
0
0

कहते है “एक पुस्तकालय सौ दोस्तो के बराबर होता है लेकिन एक सच्चा दोस्त सौ पुस्तकालयों के बराबर होता है।" मैं आदर्श मल्होत्रा, कक्षा– 10, स्कूल– डी. ए. वी. का एक मामूली सा छात्र। मेरा अब तक का सबसे अच्छ

3

प्यार

20 अगस्त 2022
0
0
0

कहते है प्यार की कोई उम्र नहीं होती है। लेकिन मेरे मुताबिक अगर “सच्चे प्यार” जैसी कोई चीज है तो वो इसी उम्र में होती है– “सोलह की उम्र।”आपने वो गाना तो जरूर सुना होगा– “सोलह बरस की, बाली उमर को स

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए