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दूसरी माॅं

गुॅंजन कमल

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मैंने सुना था कि माॅं का दूसरा नाम स्वर्ग होता है लेकिन माॅं जब से आप हमारे घर आई आपने हमारे घर को नर्क से भी बदतर बना दिया । माॅं से बढ़कर कोई गुरु नहीं होता । क्या ऐसा ही होता है ?? आप गुरु का मतलब भी जानती है माॅं । सब जानते है कि हमारी संस्कृति में गुरू का क्या स्थान है। गुरु हमारे आदर्श होते हैं । हम उनसे बहुत सी अच्छी बातें सीखते हैं लेकिन आपसे कोई सिवाय झगड़ा करने के सीख ही क्या सकता है ? माॅं तों बच्चो को बाहर की दुनिया के लिए तैयार करती है। माॅं सिखाती है कि बाहर की दुनिया में हमें भिन्न-भिन्न तरह के लोग मिलेंगे जिनमें कुछ हमारी सहायता भी करेंगे लेकिन कुछ हमारी राह में मुश्किलें खड़ी करने में भी पीछे नहीं रहेंगे इस परिस्थिति में हमें अपने अपने आप पर विश्वास रखना है और आगे बढ़ते हुए आत्मनिर्भर बनना है । आपने मुझे बाहर की दुनिया से तों मिलाया लेकिन मेरे पापा के घर से  नहीं ... नहीं ... आपके अपने घर से बाहर निकाल दिया । मेरा कल सीमा सुरक्षा बल प्रशिक्षण केन्द्र में आखिरी दिन है और कल पासिंग परेड जिसे कसम परेड भी कहते है के बाद मैं सीमा सुरक्षा बल में असिस्टेंट कमांडेंट के पद पर आसीन हो जाऊंगी और इस तरह मैं आत्मनिर्भर भी बन जाऊंगी लेकिन मेरी इस उपलब्धि का श्रेय मैं सिर्फ और सिर्फ आपकों ही देना चाहती हूॅं क्योंकि यदि आपने मुझ पर इतना अत्याचार नहीं किया होता , मुझे घर से निकाला नहीं होता तों आज मैं यहाॅं नहीं होती । माॅं तों वह होती है जों अपने बच्चों की अनकही बातें भी समझ जाती है, उसे तों कहने की भी जरूरत नहीं पड़ती हैं वह तों मुस्कुराहट के पीछे छुपे दर्द को पहचान लेती है लेकिन आपको तों मैंने कहा था कि मुझे बोर्डिंग स्कूल नहीं जाना , मुझे अकेले डर लगता है लेकिन आपको अपने स्वार्थ में मेरा डर कैसे दिखता । आपने मुझे बोर्डिंग स्कूल भेजने के लिए भूख हड़ताल तक कर दी थी आखिरकार मुझे और पापा को आपकी जिद के आगे झुकना पड़ा और मैं बोर्डिंग स्कूल चली आई । बोर्डिंग स्कूल के बाद काॅलेज का हाॅस्टल और फिर यह प्रशिक्षण केन्द्र , समय के चक्र की तरह आगे ही बढ़ती जा रही हूॅं कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और ना कभी देखना भी चाहती हूॅं लेकिन क्या करूॅं आज दिल बहुत बेचैन हो रहा है , अंदर से घबराहट हो रही है, दिल कह रहा है कि कोई अपना जों अब तो सिर्फ तुम्हारी कामयाबी देखने और सुनने के लिए जिंदा था वह तुम्हें छोड़कर जा रहा है । मन के झरोखे में बीते दिनों की कड़वी यादें रह - रहकर हुकार मार रही है और उन कड़वी यादों की रचयिता आप ही तो हों । जब आप हमारे घर पहली बार दुल्हन के लिबास में आई थी आपको उस कमरे में ले जाया गया जहाॅं मेरी माॅं और पापा का बेडरूम था । किसी को भी बुरा लगता कि जिस रूम में मेरी माॅं रहती थी , हमारी खट्टी-मीठी यादें उस रूम से जुड़ी थी उस रूम में कोई गैर जों मेरी माॅं नहीं थी और ना हीं माॅं जैसी दिखती थी , वह मेरे पापा के साथ रहें बुरा तों लगता ही है ना ! मुझे भी लगा था और इसी गुस्से में मैंने अपनी दादी से कहा था कि यह कौन है जों मेरी माॅं के कमरे में रहने आई है ?? दादी ने कहा कि यह तुम्हारी नई माॅं है । नई माॅं सुनते ही दस साल की बच्ची का पारा इस कदर चढ़ा कि वह अपनी माॅं द्वारा दिए गए संस्कार ही भूल गई और बिफर पड़ी । यह नई माॅं और पुरानी माॅं क्या होता है दादी ?? माॅं तों माॅं होती हैं और मेरी माॅं नहीं है बल्कि कोई दूसरी है जों मेरी माॅं के कमरे पर कब्जा कर बैठ गई हैं । दादी ! निकालो इन्हें मेरे घर से । यह कहते हुए मैं पापा से लिपट गई थी । पापा के प्यार से समझाने का मुझपर असर हुआ और मैंने आपको नई माॅं नहीं बल्कि दूसरी माॅं के रूप में स्वीकार कर लिया और आप दूसरी माॅं से माॅं भी बन जाती ऐसा मेरा विश्वास था । धीरे-धीरे आपको अपने घर में देखने की आदत भी हो गई और जों पहले  अजीब लगता था वह लगना भी बंद हो गया। हमने और हमारे घर ने आपको अपना लिया । आप मेरी दूसरी माॅं बन गई थी । दिल भी आपको माॅं के रूप में स्वीकारने को बेकरार था , चाहता था कि आप उसे मेरी माॅं के कमरे में बुलाएं , कहानियां सुनाएं , प्यार करें , लोरी गाकर सुलाएं लेकिन आपने मुझे कभी भी अपनी बेटी के रूप में स्वीकार नहीं किया, जहां मेरे दिल में आपके लिए प्यार पनपने लगा था वहीं आपने अपने दिल में मेरे लिए नफ़रत पाल रखी थी, एक दस साल की लड़की से इतनी नफ़रत कि आप मेरी तरफ देखती तक नहीं थी तों प्यार से देखने की बात भी मेरे ज़हन में कैसे आ सकती थी और शायद यही सब वजह थी कि भगवान ने आपको खुद की एक बेटी तक नसीब में नहीं दी । आप मेरे लिए हमेशा दूसरी माॅं ही रही । मुझे अपने घर और परिवार से दूर करके भी आपको सुकून नहीं मिला तभी तो आप पापा से कहती थी कि आपको जितने भी पैसे अपनी बेटी पर खर्च करने हैं आप कीजिए , जों कुछ उसे जिंदगी में बनना है उसे बनाइए लेकिन आपकी बेटी मेरे घर में, मेरे जीते-जी नहीं आनी चाहिए । स्कूल और कॉलेज की छुट्टियों के अधिकांश दिन मैंने अपने बोर्डिंग स्कूल के कमरे में और हाॅस्टल के कमरे में ही बिताएं । किसी - किसी साल पापा मुझे नानी के घर छोड़ जाते थे। नानी की मौत के बाद से जो एक - दो बार सिलसिला बनना शुरू हुआ था वह भी टूट गया मैं भी टूट कर बिखरने की कगार पर पहुॅंच ही चुकी थी कि एक दिन आपका लिखा ख़त मिला । ख़त खोलते वक्त मेरे हाथ काॅंप रहें थे । माॅं के लिए तड़पता दिल कह रहा था कि इस ख़त को माॅं का की ममता और प्यार समझ खोल और जल्दी से पढ़ । तेरी माॅं को इतने साल बाद तुझ पर प्यार आ ही गया और वह तुम्हें अपने पास ख़त के जरिए बुला रही है । यह खत उनका बुलावा हैं लेकिन अगले ही पल दुसरी माॅं की निर्ममता से परिपूर्ण  मेरा दिल मुझसे कह रहा था कि इस ख़त को फ़ाड़ कर फेंक दें क्योंकि इस ख़त में तुम्हारे लिए ममतामई बातें नहीं लिखी होंगी बल्कि ऐसी कटु बातों से तुम्हारा साक्षात्कार होगा कि तुम्हारा दिल उस निर्ममता और बेरूखी से भरी बातों को सहन नहीं कर पाएंगा और तुम टूट कर बिखर जाओगी । उस दिन इतने सालों से जमा की हुई हिम्मत और साहस ने मेरा बखूबी साथ निभाया और मैंने अपने काॅंपते हाथों के साथ - साथ अपने तड़पते दिल पर साहस और हिम्मत का आधिपत्य स्थापित करते हुए अपनी दूसरी माॅं का ख़त खोला और अपनी जिंदगी के अक्षरशः सत्य को पढ़ने लगी । ख़त पढ़ कर मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि आप जैसी दूसरी माॅं से कोई भी ममता और प्यार की उम्मीद नहीं कर सकता था और मैंने तों एक साल तक आपकी निर्ममतापूर्ण कटु बातों को सुना और झेला था और रही - सही कसर उस दिन यह पढ़ कर पूरी हों गई कि " जब तक जिंदगी में कुछ बन ना जाओं मेरे घर में कदम मत रखना " । आपके लिखे " कुछ बन ना जाओं " शब्दों ने मेरे बेजान शरीर में उस दिन संजीवनी बूटी का काम किया और मुझमें जान आ गई । मुझे उसी दिन और उसी पल अपनी जिंदगी का लक्ष्य मिल गया और अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए मैं जी - जान से जुट गई । ट्रेनिंग के दौरान भी आपके लिखे शब्दों ने मेरे में कमाल का जोश भरा । जब भी मैं कमजोर पड़ती अपनी ऑंखों को बंद करती और एक ही पल में आप और आपकी कटु बातें मेरे दिमाग में एक रेस के घोड़े की तरह दौड़ने लगते और जब अगले पल मैं अपनी ऑंखें खोलती तों वहीं  शब्द  मेरे  कानों में गूॅंजने लगते । आपके ही शब्दों का असर था कि मैंने अपने 52 हफ्तों की ट्रेनिंग में कुछ भी ग़लत नहीं किया । इतना आसान नहीं था मेरे लिए इतने हफ्तों की ट्रेनिंग को पूरा कर पाना , बहुत मुश्किल भरे दिनों को मैंने झेला है । इन मुश्किलों ने मुझे इतनी तकलीफ़ नहीं पहुॅंचाई जितनी आपके शब्दों के बाणों से मुझे रोज पीड़ा होती थी । कल कसम परेड के बाद मैं छुट्टी लेकर आपके घर में कुछ बनकर नहीं बल्कि सीमा सुरक्षा बल की असिस्टेंट कमांडेंट बनकर जरूर आऊंगी मेरी दूसरी माॅं । मैं सोनल सिन्हा, भारत माता की शपथ लेकर प्रतिज्ञा करती हूॅं कि कानून द्वारा निश्चित किए हुए भारतीय संविधान की सच्चे मन से सेवा करूॅंगी और ‌मैं भारत के सीमा सुरक्षा बल में ईमानदारी और सच्चे मन से वफादार रहूॅंगी । मुझे जहाॅं कहीं भी जल, थल और नभ के रास्ते भेजा जाएगा मैं खुशी से जाऊंगी । मैं भारत के राष्ट्रपति और उच्च अधिकारी की जिन्हें मेरे ऊपर नियुक्त किया जाएगा उनके आदेशों को मानूंगी और उनका पालन करूॅंगी चाहें इसमें मुझे अपना जीवन ही बलिदान क्यों ना करना पड़े । कसम परेड में उपरोक्त शब्दों को बोलते हुए मुझे आंतरिक खुशी का आभास हो रहा था साथ ही अपने आप पर गर्व भी कर रही थी कि मैं आज सीमा सुरक्षा बल का एक हिस्सा बन चुकी हूॅं और देश के लिए मुझे अपने प्राणों की भी आहूति देनी पड़े तब भी मेरे कदम पीछे नहीं जाएंगे । कसम परेड के बाद मैं पापा को ढूॅंढती उनके पास गई। पापा ने मुझे पहली बार वर्दी में और वर्दी में लगे तीन पंचभुजाकार सितारों के साथ देखा । मुझे देखते ही उनके ऑंसूओं ने जो उनकी ऑंखों की पलको को  पहले से ही भिंगोकर रखा हुआ था उन ऑंखों में और भी ऑंसूओं ने अपना डेरा जमा लिया  और वें रह - रह कर उनकी गालों को भिंगो रहे थे । मैं भी अपने ऑंसूओं को आज रोक नहीं रही थी । उन्हें बहनें दें रही थी । पापा ने अपना हाथ आगे बढ़ाया और मैं एक छोटी बच्ची की तरह दौड़ते हुए उनके गले लग गई । पापा की गले लगकर दिल को बहुत सुकून की अनुभूति हुई । एक पल को लगा कि मेरी माॅं मेरे सिर पर हाथ फेर रही है लेकिन जब मैंने अपनी ऑंखें बंद की तों मुझे आपका चेहरा क्यों दिखा ?? वह दूसरी माॅं का चेहरा जिनके दिल में मेरे लिए तनिक भी एहसास नहीं हैं , जों मुझसे बेपनाह नफरत करती हैं और शायद मैं भी उनसे उतनी ही नफरत करती हूॅं जितनी वह मुझसे करती हैं । हमारे बीच नफरत बेहिसाब हैं और उसी नफरत का नतीजा यह है कि मैं आज अपनी दूसरी माॅं से मिलने उनके घर जा तों रही हूॅं लेकिन उन्हें यह दिखाने कि मैं आपके घर में और आपके सामने बगैर कुछ बने नहीं बल्कि सीमा सुरक्षा बल में एक असिस्टेंट कमांडेंट बनकर आई हूॅं । मेरा घर .. नहीं .. नहीं ... मेरी दूसरी माॅं का घर आ चुका था । बाहर लोगों की भीड़ देखकर मैं कुछ समझ नहीं पा रही थी तभी दिल ने कहा कि तेरी कामयाबी को देखने यह भीड़ इकट्ठा हुई है । अपने चेहरे पर गर्व या यूं कहो कि अहंकार लेकर मैं गाड़ी से उतर कर आगे बढ़ी । भीड़ ने खुसुर - फुसुर करना शुरू कर दिया था । मेरे आगे बढ़ते ही भीड़ खामोश हो गई और एकदम से सन्नाटा छा गया ।  बरामदे में मेरे जूते की आवाज उस चुप्पी में उभर कर मेरे कानों में पड़ने लगी । मैं अपने जूतों की खट - खट की आवाज के साथ आगे बढ़ती गई तभी मेरी ऑंखों ने कुछ ऐसा देखा कि मेरे बढ़ते हुए कदम एकाएक रूक गए और साथ ही जूतों की आवाज भी बरामदे में ही लुप्त हो गई । मैं  मूकदर्शक  बन  वहीं   पर खड़ी थी । पापा के हाथों का स्पर्श मैंने अपने कंधों पर पाया तब मैं अपने आप को रोक नहीं पाई और पापा से सवाल किया कि यह  सफेद कफन का श्रृंगार कर नीचे ढॅंका हुआ शव किसका है ?? पापा के यह कहते ही कि यह सफेद कपड़ों में लिपटा हुआ शव किसी और का नहीं बल्कि तुम्हारी माॅं का हैं यह सुनकर मैं गुस्से में पागल हो गई । पापा ! यह मेरी माॅं नहीं थी बल्कि दूसरी माॅं थी । आज तक इस घर में और मैंने भी वही किया जो यह चाहती थी लेकिन मैंने कभी भी यह नहीं चाहा कि इनकी मौत हो जाएं । मेरी दूसरी माॅं ने कहा कि मुझे कुछ बनकर इस घर में आना हैं तों आज मैं कामयाब और आत्मनिर्भर बनकर इनके घर आई हूॅं । मेरी सारी मेहनत व्यर्थ चली गई पापा ! मैंने इतनी मेहनत और यह कामयाबी इन्हीं को दिखाने के लिए ही तो की थी । पापा ! यह जिस लड़की से इतनी नफ़रत करती थी वह आज इनके सामने खड़ी हैं लेकिन यह उठ ही नहीं रहीं है । मुझे इन्हें दिखाना है कि मुझ जैसी बिन माॅं की बच्ची जिसे अपनी दूसरी माॅं से सिर्फ तानें ही मिलें , वह लड़की भी बड़ी अधिकारी बन सकती है । पापा ! इन्हें किसी तरह उठाओ और बोलों कि मुझे देखें । इनका भ्रम दूर करो पापा ! यह कहते हुए मैं अपने पापा के कदमों में गिर पड़ी । पापा ने मुझे उठाया और मुझे मेरे कमरे में लें आए । पलंग पर बिठाया और रोते हुए बाहर चले गए । मेरा सिर दर्द से फटा जा रहा था । मैंने सोचा कि दूसरी माॅं से मुझे क्या लेना-देना वैसे भी जब उन्होंने मेरे बारे में आजतक नहीं सोचा और ना ही कुछ किया तों मैं क्यों बेटी का फर्ज निभाने जाऊं । मैंने सोने के लिए जैसे ही तकिया उठाया तभी तकिए के नीचे रखी डायरी मेरे हाथ लगी । मैंने डायरी को उठाया , चारों तरफ देखा । मुझे कुछ पता नहीं चल रहा था कि यह डायरी किसकी है ?? डायरी खोलते ही पहले पृष्ठ पर ही अपना नाम लिखा देख कर मैं चौंके बिना नहीं रह पाई । मेरी उत्सुकता इस डायरी को पढ़ने और पता करने के लिए बढ़ गई कि यह डायरी किसने मेरे लिए लिखी और इस डायरी में आखिर क्या लिखा हुआ है ?? पूरी डायरी पढ़ने के बाद कल रात जों मेरी स्थिति थी वह वैसी क्यों थी अब मेरी समझ में आने लगा था । कल रात जों मुझे यह आभास हो रहा था कि कोई अपना कोई खास मुझसे सदा के लिए बिछड़ रहा है वह यह थी मेरी दूसरी माॅं जिन्होंने मुझे कामयाब और आत्मनिर्भर बनाने के लिए खुद को बुरी माॅं और दूसरी माॅं साबित करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी थी । वह नही चाहती थी कि मैं भी  उनकी तरह उनकी सौतेली माॅं और पिता की जिद की वजह से ऐसी घर में और ऐसे लड़के के साथ ब्याही जाऊं जैसा उनके साथ हुआ था । वह पढ़-लिखकर आत्मनिर्भर बनना चाहती थीं लेकिन उनके माॅं - बाप ने उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की बजाय उनकी शादी एक ऐसे आदमी से कर दी जिसके पास पैसा तों बहुत था लेकिन था वह विधुर और एक बच्ची का पिता । एक ऐसी बच्ची जिसमें वह अपना बचपन देखती थी । मैंने तों सुना था कि माएं अपने बच्चों को पढ़ाने - लिखाने और आत्मनिर्भर बनाने के लिए किसी से भी लड़ जाती हैं लेकिन मेरी दूसरी माॅं मुझे पढ़ाने - लिखाने और आत्मनिर्भर बनाने के लिए वह मुझसे ही लड़ पड़ी । मुझे कामयाबी हासिल कराने के लिए सबकी निगाहों में इतनी बुरी बन गई कि सब मेरे पापा से कहते कि अपनी बेटी को अपनी पत्नी के पास मत लाना नहीं तों वह उसे मार डालेगी । मेरी दूसरी माॅं ने अपना बच्चा भी इसलिए नहीं किया ताकि उनका ध्यान मुझ पर से ना हटे । मेरी नज़र और मेरा दिल  उनके इस बलिदान को देख और समझ क्यों  नहीं पाया ?  मैं आज तक जिन्हें दूसरी माॅं सोचकर अपने दिल में नफरत पालती रही वह तो मुझे अपनी सगी माॅं से भी ज्यादा प्यार करने वाली निकली । फर्क सिर्फ इतना है कि मेरी सगी माॅं मुझे अपनी ममता और दुलार से प्यार ‌करती थी और मेरी दूसरी माॅं ने नफरत से प्यार की शुरुआत की थी और उस प्यार को नफरत का लिबास पहना कर, मेरी जिंदगी को एक अलग मायने देकर , मुझे कामयाबी के ऊॅंचे शिखर पर पहुॅंचाने के लिए कितना कुछ सुना होगा आपने माॅं । हाॅं ! आप मेरी माॅं ही तों थी । आप जों तानें मुझे दे रही थी उससे कई गुणें तानें आपने भी तो सहे होंगे । किसी ने आपकों सौतेली माॅं कहकर तानों से आपकी छाती छलनी की होगी तों किसी ने दूसरी औरत कहकर आपको अपमानित किया होगा और मैंने भी तो आपको अपनी माॅं नही बल्कि दूसरी माॅं कहकर सबके सामने आपको जलील करने का पाप किया था । मुझे माफ़ कर दो माॅं । मैंने आपको आज तक ग़लत समझा लेकिन आज  आपके द्वारा फैलाया गया नफ़रत का पर्दा मेरी ऑंखों के सामने से हट चुका है और मुझे स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है कि आप मेरी दूसरी माॅं नहीं थी बल्कि आप तों मेरी माॅं थी । आपने बेशक मुझे अपनी कोख से जन्म नहीं दिया था लेकिन आप जों पर्दे के पीछे रह कर मेरे लिए और इस समाज के लिए विलेन बनी रही ऐसा आपको नहीं करना चाहिए था । आज से मेरे दिल में हमेशा आपके लिए वही इज्ज़त और सम्मान रहेगा जो मेरे मन में अपने जन्म देने वाली माॅं के लिए हैं ।                                                धन्यवाद 🙏🏻🙏🏻 " गुॅंजन कमल " 💗💞💓 

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