मेरा पहला प्रेमपत्र
जब सहेलियां छेड़ती हर पल
सुनाती ,अपनी गुलाबी चिट्ठियां
उत्सुकता मन को झकझोरती
उस दिन उसने दिया था मुझे
जरा पहुंचा देना उसके पास
ओह! वह प्यारी गुलाबी चिट्ठी
मदभरी खुशबू से ओत-प्रोत
गुलाबी लिफाफे के भीतर से
लपलपाती गुलाबी चिट्ठी
आमंत्रित कर रही थी मुझे
एक बार, बस एक बार
खुली आँखों से स्पर्श करूँ
फिर, बुना मैंने सुंदर शब्दजाल
खुद से खुद को ही लिखा
अपना पहला गुलाबी प्रेमपत्र
सिर्फ तुम ही हो सकती हो
स्वयं की प्यारी प्रेमिका
या प्रेमी खूबसूरत स्वयं की
कि
तुम ही हो शक्ति भी
और शिव भी तुम ही हो
तुम ही हो संपूर्ण नर भी, नारी भी
हे गुलाबी प्रेम की खुली किताब
तुम ही प्रेम हो और
प्रेमिका भी तुम ही हो