आजकल सारा समय इसमें ही निकल जाता है किअब क्या नया लिखा जाये आजकल मुझे अपने स्कूल कि बहुत ज्यादा याद आ रही है ऐसा लग रहा है फिर से स्कूल में अपना दाखिला करवा लू फिर से स्कूल पढ़ने जाया करू और वो ही मौज मस्ती करू जो बचपन में किया करते थे जब टीचर कोई विषय का टेस्ट लेने को कहती थी तो में वो किताब ही फाड़ देती थी ताकि मुझसे कोई प्रश्न किया जाये तो में यह बोल सकूँ कि मेरी तो किताब ही फटी पड़ी है और फिर टीचर मुझे बैठने को बोल देती थी और में ऐसे टेस्ट से बच जाती थी सच में स्कूल के वो दिन आज भी मेरे दिलों दिमाग़ से इस तरह छाये हुये है जैसे आज भी में एक छोटी सी किसी स्कूल कि स्टूडेंट हूँ जब कभी स्कूल जाने का मन नहीं करता था तो में अपनी स्कूल कि यूनिफार्म छुपा लेती थी और सुबह जब मार्किट दूध लेने जाती थी तो घर पर और देर से आया करती थी ताकि मुझे स्कूल ना जाना पड़े पर फिर भी मेरी मम्मी मुझे देर से ही सही पर स्कूल जरूर भेजती थी मेरी छुपाई गई यूनिफार्म उन्हें मिल ही जाती थी आज यह सब बातें याद करके स्कूल कि वो यादें फिर से ताज़ा हो जाती है.....