आज का विषय बहुत ही रोचक भरा विषय है मेरा दूसरा प्यार प्यार पहला हो या दूसरा क्या फर्क पड़ता है प्यार तो प्यार ही होता है..... किसी को कब अपना बना ले यही इस प्यार का रूप रंग होता है जहाँ बात प्यार कि होती है वहां कोई अपना पराया नहीं होता सबको एक सम्मान बराबर और प्यार का दर्जा दिया जाता है।
हमारे सामने वाले घर में एक छोटी सी लड़की रहा करती थी उसका नाम परी था उसको देख कर ऐसा लगता था जैसे आसमां से सच में एक सुन्दर सी परी आ गई हो उसके मम्मी पापा दोंनो ही वर्किंग थे, उसे घर पर मैड के पास छोड़कर जाया करते थे इसी मैड कि निखरानी में वह दिनभर घर पर रहा करती थी एक दिन अचानक जब उसने मुझे नीचे कुछ बच्चों के साथ खेलते हुये देखा तो वो भी मेरे साथ नीचे खेलने आ गई ऐसे करते -करते हम दोंनो में बहुत अच्छी दोस्ती हो गई परी मुझसे अपनी हर बात शेयर करती जो प्यार उसे अपने मम्मी पापा से नहीं मिला वो प्यार उसको मैंने दिया उसके अकेलेपन को मैंने दूर किया बेशक उसका पहला प्यार उसके मम्मी पापा थे पर उसका दूसरा प्यार में थी..... उसका वो प्यार जो उसे मेरी तरफ खींच लाया जो आज तक मेरे दिल में कही ना कही अभी भी मौजूद है और हमेशा रहेगा