विषय:- गांव की शाम
मेरे गांव की वह स्वर्णिम शाम ,
जो स्वर्णिम आभा लेकर आती है।
धीरे-धीरे देते हुए भास्कर को विदाई,
अंबर से अंधकारमय चादर बिछ जाती है।।
खेतों से लौटते हुए हलधर ,
शहर से लोटते हुए बूढ़े , बच्चे और जवान।
सबके लिए विश्राम पटल ले ,
मनोहारी आई है यह सुहानी शाम ।।
पेड़ों पर पंक्षियों की चहचहाहट ,
चौपाल पर खेलते-कूदते बच्चों का शोर।
पेड़ पर फैल रही अस्त सूर्य की आभा,
करती मन को भाव विभोर।।
सारे दिन की थकान ,
विश्राम के करीब ले जाती है शाम ।
मंदिरों की बजती हुई घंटियां,
मस्जिदों पर पढ़ी जाने वाली नमाज ।।
गांव की कल-कल बहती सरिता में,
परछाई देख लगता है मानों अंबर से उतर आया भास्कर।मे
रे साथ दो बातें कर ले ,
मन की भावनाओं में तैर रहा यह भंवर ।।
इंजीनियर शशि कुमार करौली राजस्थान