मुझे याद है उन शहीदों की शहादत जिन्होंने मेरे देश के लिए कुर्बानियां दी .
कभी न सोचा की मेरा क्या होगा जन से बढ़कर देश की सेवा की.
ममता सिसक सिसक कर उस आँगन में आज भी रोती है
जहाँ उस सैनिक की स्मृतियाँ अतीत की तस्वीर देखती है
जो खड़ा हुआ था किसी एक के कन्धों का सहारा बनकर
वह निकला इस देश जन जन का बनकर दिनकर
आँखों में आंसू भले ही दे गया लेकिन गर्व का अहसास दे गया
जो था किसी एक माँ के आँचल से कितनी माओं को प्रेरणा दे गया
भले ही बोझ बढ़ गया बाप के कन्धों पर लेकिन उन्हें हर मुश्किल सहने की हिम्मत दे गया
जब आती है याद उस शेर जैसे सपूत की सेर न उठाने वाला पिता मन उठा ले गया
एक उम्मीद रहती थी हर श्रावण को जो दौड़कर चली आती थी
वचन लेने और रस्म निभाने के लिये
वह समझती थी मई बहिन हूँ उसकी अकेली प्रिय
लेकिन वह जीता था सारे ज़माने के लिये
हर बहिन की राखी बांध ली थी जब उसने सैनिक का चोला पहना था
वचन निभाऊंगा मेरे देश की हर बहिन चिंता मत करो यही उसका कहना था
आहट होती अगर देश की मिट्टी पर दुश्मन की
मुंह का निवाला छोड़ भाग निकलता था
शस्त्र पहने बन जाता भयंकर तूफ़ान
हवा की तरह दुश्मन पर वार करता था
अभी हाथों की मेहंदी नहीं निकली लेकिन माथे का सिन्दूर मिट गया
हाथों की खनखनाती चूड़ियों का क्यों शोर मिट गया
आज शिकायत है उसको उन सात वचनों की जो कुछ दिन पहले दिए उन्होंने