मुझे पता नहीं
किसने रचाया
इस ब्रह्माण्ड को
लेकिन मेरे एक बात
जरुर समझ आ रही है।
प्रकृति के हर रूप ने बनाया है मुझको ।
मैंने इसे ही ईश्वर मान लिया है।
जल वायु धरा गगन, आग
पंच तत्व प्रकृति में
हर जगह हर वक्त विद्यमान है।
इस सभी तत्वों का संगम
मेरे तन में मेरा भगवान है।।
ना मैं नास्तिक हूं और ना मै आस्तिक हूं।
जो वास्तविक अनुभव करता हूं
देखता हूं और भरोसा करता हूं।
मैं उन्हें भी कैसे नकार सकता हूं
जिन्होंने मानवता के लिए काम किये थे।
लोगों के मन में सुषुप्त चेतना को जगाया
अत्याचार, अन्याय का विरोध करना सिखाया
आज मैं उनके त्याग और बलिदान को
कैसे भूल जाऊं और उन्हें ईश्वर क्यों ना मानूं।
लेकिन मैं अंधविश्वास, पाखंड
और दिखावे का सख्त विरोधी हूं
यह मानव को अपनी मंजिल से भटकाता है
अपने अंदर के ईश्वर से दूर भगाता है
जो चेतना एक मनुष्य के अंदर है
मनुष्य भटक जाता है और गलत राह पकड़ लेता है।
लोग निज स्वार्थ की खातिर
करते हैं लोगों को गुमराह और
करने बैठ जाते हैं व्यवसाय
लोगों के अंदर भय पैदा करके
उनके अंदर मरने का भय दिखाकर
उनके लिए स्वर्ग नर्क के सपने दिखाकर
लेकिन मैं नहीं मानता उन बातों को
जिसने मैंने भी नहीं देखा और नहीं देखा मेरे पुरूषों ने
अगर उन्होंने देखा होता तो वे नहीं कहते
" मैंने मेरे दादा परदादा से सुना था"
यहीं ट्रांसफर हो रहा है पीढ़ी दर पीढ़ी
जिसे लोगों ने आंखों से देखा
जिसने लोगों के जीवन को उठाया
एक दलदली गड्ढे से
सच्चाई का आभास कराकर
लोगों के अंदर भरे विचारों के
गंदे पन को उजागर करवाकर
क्यों समझते हैं लोग एक-दूसरे को
अपने आप में श्रेष्ठ।
मेरी ईश्वर स्वरूप कुदरत के
किसी रुप ने कभी भी
किसी के साथ भेदभाव नहीं किया।
एक कुदरत ही ईश्वर है और
ईश्वर ही कुदरत है।
मानव की कुदरत
जो प्रकृति के विरूद्ध ना काम करें
वहीं ईश्वर और ईश्वरीय वरदान है।
ना समझे आस्तिक इसको ना विरोध
ना समझे नास्तिक इसे सपोर्ट
ना मैं किसी की मंजिल का अवरोध
ना मैं किसी की मंजिल का क्रोध
मैं कर रहा था अपना शोध
मुझे अपनी चेतना से हुआ एक बोध
ईश्वर खोजा प्रकृति और प्रकृति रुप इंसान में
जो बसता हर कण, हर पल , हर वक्त इंसान में
अपने अंदर असीम शक्तियां हैं
हम उन्हें जागृत नहीं कर पाते
हम देखते हैं दूसरे के अंदर की बुराइयां
अपने अंदर की बुराइयां नहीं देख पाते ।।
(इंजीनियर शशिकुमार जाटव करौली राजस्थान)