shabd-logo

गुमनाम लेखक का आक्रोश

30 सितम्बर 2018

189 बार देखा गया 189
व्यंग्य गुमनाम लेखक का आक्रोश नफे सिंह कादयान, हमारे मोहल्ले का फेस-बुकिया गुमनाम लेखक चाँद तूफानी आक्रोशित है, गहरे सदमें में है। वह आजकल गहरी सोच में बड़बड़ाता हुआ हर समय चहल-कदमी सी करता रहता है। घूंसा बना कर उसके हाथ इधर-उधर झटकने का अंदाज ऐसा होता है जैसे किसी को जान से मारना चाहता हो। उसे लगता है कि जब तक उसके साहित्य के खिलाफ कोई धरना प्रदर्शन नही होगा वह गुमनाम ही बना रहेगा। उसे केवल फेसबुक पर ही दस-बीस लाइक मिलेंगे, वह कभी राष्ट्रीय स्तर पर ख्याती प्राप्त नहीं कर सकेगा। अपने घर पर पत्थर फिंकवाने, मुहं पर स्याही, कालिख पुतवाने, अपना पुतला जलवाने का महान उद्देश्य ले वह दो-तीन विवादित कृतियां लिख चुका है मगर अफसोस की विरोध एक का भी नहीं हुआ। अलबता उसकी हर पुस्तक पर स्थानीय तुकबाज साहित्य मंचों द्वारा विमोचन अवसर पर वाह-वाह की गई, दोपेजी अखबारों और थर्ड डिग्री पत्रिकाओं द्वारा समीक्षाएं लगाई गई। कई बार तो वो ये देख कर हैरान रह गया की जो पाठ उसने पुस्तक में लिखे ही नही उनकी भी समीक्षा उसके नाम से लग कर आ गई। हैरान परेशान लेखक महोदय की ये समझ में नहीं आ रहा था कि उसके लेखन में गलती कहां हुई है। वह तो हमारे मौहल्ले में पहली पुस्तक के बाद ही शपथ-पत्रिय दावा करता था कि देखना इसकी समीक्षा लगते ही देश में उबाल आ जायेगा। उस पर जानलेवा हमले होंगे और वह राष्ट्रीय स्तर के अखबार, टी.वी. चैनलों पर छा जायेगा। उसे जेड प्लस सुरक्षा मिलेगी और उसके नाम पर देश भर के साहित्यीक मंचों पर चर्चा चलेगी, संगोष्ठियां सम्मलेन होंगे, चैनलों पर थूक बिलोते हुए गर्मागर्म बहसें होगी। अपनी पहली पुस्तक में विवाद का तड़का लगाते हुए चाँद तूफानी ने देश के बाबाओं, मुल्लाओं, तांत्रिक, पोगे पण्डितों के खिलाफ जमकर जहर उगला। डेरे, आश्रम गुफाओं, तहखानों में उनके चेलियों के साथ रास-रंग के खूब नमक-मिर्च लगा, बड़े-बड़े किस्से लिख डाले। भगवान के नाम पर चेलों की दौलत हड़पने के कई उदाहरण दे डाले। उनके खिलाफ अखबारों में छपने वाली तमाम बलात्कार की घटनाओं को आधार बना दावा कर दिया कि ये सारे लोग दुष्कर्मी, फ्राॅड, मानवता पर कलंक हैं। चाँद तुफानी के इतना जहर उगलने के बाद भी किसी धार्मिक संस्थान के चेले-चपाटों ने उसे न तो जान से मारने की धमकी दी और न ही कोई फतवा जारी किया। यहां तक की किसी डेरे के चेले ने उसे गुमनाम पत्र डाल कर भी धमकी नहीं दी, नहीं तो वह जान से मारने की धमकी के खिलाफ थाने में रिर्पोट दर्ज करवा अखबार, टी.वी. चैनलों पर आक्रोश उत्पन कर वाह-वाही लूट सकता था पर ऐसा कुछ नही हुआ। यह देख चाँद थोड़ा मुरझाने के बाद ये सोचकर दूसरी विवादित पुस्तक लिखने लगा कि इन बाबाओं में इतना साहस ही नही है जो एक कलमकार का विरोध कर सकें। अब वो संत महात्मा नहीं रहे जो अपने विरोधियों को गोलियां मरवा देते थे, अपने चेलों को जन्नत की हूरें देने का लालच दे, मानव बम बना विरोधी को उड़ा देते थे, बाजारों में आगजनी करवा देते थे। दूसरी पुस्तक चाँद तूफानी ने देश के नेताओं के खिलाफ पोत कर मोहल्ले में घोषणा कर डाली कि इसकी समीक्षा लगते ही चहूं ओर सनसनी फैल जाएगी, अबकी बार पक्का विवाद होगा। इस पुस्तक में उसने केंद्र व राज्यों में कार्यरत कई दिग्गज नेताओं द्वारा किये गए तथाकथित महाघोटालों की बखिया उधेड़ कर रख दी। उसने दूसरों के फटे में टांग फंसाने वाले सूचना जनसेवक कार्यकर्ताओं से सम्पर्क कर आंकड़ों सहित घपलेबाजियों का पूरा विवरण अपनी पुस्तक में लिख डाला। नेताओं के झूठे-सच्चे प्रेम प्रसंग, अयाशियों के किस्सों, अथाह दौलत पर भी जमकर कलम चलाई। लेखक महोदय ने इस बार एक कदम और आगे बड़ाते हुए नेताओं के खिलाफ लिखि पुस्तक का विमोचन एक नामी नेता से ही करवा डाला। उसे यकीन था की नेता जी पुस्तक देखते ही उसे अपने कार्यकर्ताओं द्वारा मंच से नीचे फिंकवा देंगे और वहां मौजूद पत्रकार इस मुद्दे को उछाल देंगे पर हाय री! बेचारे लेखक की बद्किस्मत। विमोचन के समय अपने कार्यकर्ताओं से बात करते हुए नेता जी ने पुस्तक के दो-चार पन्ने पलटे और खड़ा होकर चाँद राम को समाजिक कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाने वाला कलम का सच्चा सिपाही घोषित करते हुए उसकी भूरी-भूरी प्रशंसा कर डाली। विमोचन के बाद इस पुस्तक की कई पत्र-पत्रिकाओं में उल्टी-सीधी समीक्षा भी लग कर आई पर इस बार भी कोई हंगामा बरपा न हुआ। उसे न तो किसी टी.वी. चैनल वाले ने भाव दिया और न ही नेताओं के चमचों ने धरना प्रदर्शन किया। लेखक चाँद तूफानी की दो पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी थी पर उसे अपना तय किया कूलक्ष प्राप्त नहीं हो रहा था। अपना विरोध न होने के चलते वह बहुत निराश, हताश, व्यथित हुआ। आक्रोशित हो आखिरकार उसने अपनी आगमी पुस्तक में ईश निंदा कर लोगों से अपना जीवन समाप्त करवाने की ठान ली। सोचा कि चलो जिंदा नहीं तो मरकर ही सुर्खियों में आ जाऊंगा। कुछ साहित्य की आजादी के नाम पर उसकी जय-जय कार करेंगे तो कुछ गालियां देंगे। पहले वह अपनी हर पुस्तक का शुभारंभ करने से पहले ईश वंदना करता था मगर इस बार उसने दुनियां भर के ईश्वरों के खिलाफ एक महाग्रंथ लिख डाला। उसे पक्का यकीन था कि लोग अब उसे पत्थर मार-मार कर संगसार करने आएंगे मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ। विमोचन अवसर पर पिछली पुस्तकों की तरह इस बार भी उसका स्थानीय स्तर पर गुणगान किया गया। अब हमारे मोहल्ले का लेखक चाँद तूफानी आहें भरते हुए शपथ पूर्वक घोषणा करता फिर रहा है कि ये फिल्म वाले कुछ संगठनो, लोगों को पैसा दे अपनी फिल्मों का विरोध करवाते हैं ताकि उसका अधिक से अधिक प्रचार हो, जिससे उनकी करोड़ों की कमाई हो जाये। हमारे मोहल्ले का लेखक विचारवान तो बहुत है पर उसे ये ज्ञान नही है कि संत-महात्मा दूसरों की लिखि पुस्तके नहीं पढ़ते बल्कि अपने लिखे धर्म ग्रंथों को लोगों से पढ़वाते हैं। उन्हे पवित्र घोषित करवा उनकी पूजा करवाते हैं। और नेताओं के पास तो इतना समय ही नही है कि वे मोहल्ला लेखकों की पुस्तके पढ़ने बैठ जाएं। आम लोग भी पुस्तकें पढ़ने के लिये नहीं अपने ड्राईंगरूम में सजाने के लिये खरीदते हैं। नफे सिंह कादयान, गां-गगनपुर, जि.-अम्बाला, डा.खा.-बराड़ा-133201 (हरि.) Email-nkadhian@gmail.com. Mob.-9991809577 ****

नफे सिंह कादयान राइटर की अन्य किताबें

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए