यह समय ऐसे चल रहा जहां से नींद भी सपने भी अब सही नहीं लग रहे। एक चौथाई ही जीवन तो जिया यार फिर भी इतना कष्ट झेलना कैसे लग गया।
इसकी शुरुआत बचपन से ही बना दी गयी एक भूमिका जिसके तले दबे रहे दबते चले गए और निर्माण हुआ एक दबे हुए मानव का जिसमें चुनौती देने की हिम्मत नहीं रह गयी लगता है। आज ५ अक्टूबर है २०२२ का ,अभी १७ साल पहले ही तो मेरे दादा जी भर्ती थे एक फालतू के नर्सिंग होम में जहां उनकी अंतिम सांसे चल रहीं थी। मेरी उम्र भी तो ११ साल की थी मात्र मैं घर पर था शाम को ।भैया आये २४ इंच की साईकल से घर से अमूल स्प्रे के 250 gram वाले दूध के पाउडर में घर के मौसम्मी के जूस को हाथ से दबाकर निकालने और उस जूस को दादा जी को पिलाने के लिए जिससे उनको ताकत आये। उस साईकल के डंडे पर मैं बैठा था वो मौसम्मी के जूस को लेकर। नर्सिंग होम घर से 1 km की दूरी पर था।
मुझे लगा ये जूस आज बाबू को ठीक कर देगा। अंदर गया बाबू को देखा