गर डर होता खुदा का
द्वारा:-प्राची सिंह "मुंगेरी"
होता गर बस इतना सा यकीं.....
कि मेरे गुनाहों पे है बस उनकी नज़र ...
क्या ज़रूरत थी फिर अदालतों की...
डर हर किसी में बस एक खुदा का होता।।
ना कोई छोटा होता....
ना कोई सेठ, ना कोई साहूकार होता....
मिल जाता ज्ञान मंदिरों में...
रोटियां बंट जाती भंडारे में।।
जात - पात का इतना भेद न होता....
भाई - भाई होते सभी आपस में...
एक रूठता दूसरा मनाता....
सुख - दुःख बांट लेते भाईचारे में।।
गर होता दिल में सुकून और चैन...
मज़हब की बात बेईमानी लगती...
सर झुका सब दिल से मांगते...
होती नहीं कैसे पूरी कोई दुआ।।
मन में कोई खोट ना रहता...
होता गर बस इतना सा यकीं...
कि मेरे गुनाहों पे है बस उनकी नज़र...
क्या ज़रूरत थी फिर अदालतों की.….
डर हर किसी में बस एक खुदा का होता।।
मुहब्बत की कोई कमी न होती....
टूटे दिल का हाल लिए....
मिलता ना कोई मयखाने में...
होता गर बस इतना सा यकीं....
कोई ना देखा मुझे तो क्या...
अल्लाह सब देख रहा है....
कौन सही है....
कौन गलत है....
रहमत खुदा की ...
मेहरबानी उनकी सबपे बरस रही है।।