इस पुस्तक में आध्यात्म या समाज का चित्रण प्रस्तुत किया गया है।
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<p dir="ltr">🌷🌹<u><b>"लेखनी की गरिमा"</b></u>🌹🌷</p> <p dir="ltr"><i><b>कोई भी कवि या लेखक कभी, ब
<p dir="ltr">🌷🌹<b><u><i>"राब्ता-ए-फ़क़्र: सज़दा"</i></u></b>🌹🌷</p> <p dir="ltr">अक्सर ही इस संसार म
<div align="left"><p dir="ltr">🌷🌹<b><u>"परछाईं न साथ है देती"</u></b>🌹🌷</p> <p dir="ltr"><b><i>क
<p dir="ltr">🌷🌹<u><b>"महत्ता बिंदी की"</b></u>🌹🌷</p> <p dir="ltr"><i><b>बिंदी न केवल इक श्रंगार
<p dir="ltr">🌷🌹<u><b>"चिराग-ए-उजास"</b></u>🌹🌷</p> <p dir="ltr"><i><b>चिराग-ए-रोशन जहाँ भी हो, चह
<p dir="ltr">🌷🌹<u><b>"विकार, दिव्यता एवं भक्ति"</b></u>🌹🌷</p> <p dir="ltr"><i><b>अमृत नाम महा रस
<div align="left"><p dir="ltr">🌷🌹<b><u>"मनमौज़ी"</u></b>🌹🌷</p><p dir="ltr"><b><i>रूप मनमौज़ी ध्यान
<p dir="ltr">🌷🌹<i><b>"निल बटे सिफ़र/सन्नाटा"</b></i>🌹🌷</p> <p dir="ltr"><i><b>निल बटे सन्नाटा कह
<p dir="ltr">🌷🌹<u><b>"आक्रोश करें या न करें"</b></u>🌹🌷</p> <p dir="ltr"><i><b>आक्रोश गैरों पे क्
<p dir="ltr">🌷🌹<u><b>"आक्रोश कब, कैसे और समाधान"</b></u>🌹🌷</p> <p dir="ltr"><i><b>औरों के दुष्कर
<p dir="ltr">🌷🌹<u><b>"क़माल की जादुई झप्पी"</b></u>🌹🌷</p> <p dir="ltr"><i><b>यूं ही हर किसी को तो
<p dir="ltr">🌷🌹<u><b>"तन्हा कभी नहीं"</b></u>🌹🌷</p> <p dir="ltr"><i><b>तुम बिन कहाँ तन्हा थी शबर
<p dir="ltr">*🌷🌹<u><b>"राज़-ए-मुहूर्त"</b></u>🌹🌷*</p> <p dir="ltr"><i><b>राज़-ए-मुहूर्त जो कोई भी
<p dir="ltr">🌷🌹<u><b>"अंधेरा फ़क्त उजास की क्षीणता"</b></u>🌹🌷</p> <p dir="ltr"><b>अंधेरे का तो अप
<p dir="ltr">🌷🌹<u><b>"पिएं.. रामरस"</b></u>🌹🌷</p> <p dir="ltr"><i><b>शराब है फ़साद का पानी, पीकर
<p dir="ltr">🌷🌹<u><b>"नारी जानो सोये.."</b></u>🌹🌷</p> <p dir="ltr"><i><b>"यत्र नार्यस्तु पूज्यंत
<p dir="ltr">🌷🌹<u><b>"मन बावरा दिव्यरूप तू..."</b></u>🌹🌷</p> <p dir="ltr"><i><b>मन नटखट मन बावरा
<p dir="ltr">🌷🌹<u><b>"झरोखा"</b></u>🌹🌷</p> <p dir="ltr"><i><b>रसोई में झरोखे लगे होते हैं, इस ढं
<p dir="ltr">🌷🌹<u><b>"ओस रब्बी वरदान है.."</b></u>🌹🌷</p> <p dir="ltr"><i><b>ओस की बूंदें कहूँ इन
<p dir="ltr">🌷🌹<u><b>"अपनी दिव्य पनाहों में.."</b></u>🌹🌷</p> <p dir="ltr"><i><b>कहो कौन है अज़नबी
<p dir="ltr">🌷🌹<u><b>"इश्क़-हक़ीक़ी पूजा है..."</b></u>🌹🌷</p> <p dir="ltr"><i><b>पहला सबक है, क़िताब
<p dir="ltr">*🌷🌹<u><b>"श्रद्धा भक्ति विश्वास रहे, मन में आनंद का वास रहे"</b></u>🌹🌷*</p> <p dir=
<p dir="ltr">🌷🌹<u><b>"सब कुछ बदल गया"</b></u>🌹🌷</p> <p dir="ltr">हर एक मनुष्य को <b>सर्वश्रेष्ठ
<p dir="ltr">🌷🌹<u><b>"शरूर-ए-इश्क़ ख़ुमारी"</b></u>🌹🌷</p> <p dir="ltr"><i><b>उल्फ़त-ए-यार कितना है, इसका पैमाना नहीं होता। </b></i><br> <i><b>आपसी जज़्बात बहते हैं, उनसा दीवाना नहीं होता।</b></i><br>
🌷🌹"तुम... ज़िस्म हो या ज़िस्म में हो..."🌹🌷 तुम क्या महज़ ज़िस्म हो??? यदि ज़िस्म हो तो नामकरण के पहले एवं मरण के उपरांत... क्या अपनी पहचान बता सकोगे!! और यदि ज़िस्म नहीं हो तो फिर क्या हो और कौन हो!!! न
🌷🌹"बस मोल है ख़्यालात का..."🌹🌷 भास खुदको तब हुआ,अपनी सही औक़ात का। जब सितारे ने था चीरा, दिल अंधियारी रात का। नश्तर चुभाके दिल में जो,बेदर्दी से ज़ख़्म दिए। दर्द को भी न दर्द हुआ, प्रेम भरे जज़्बात का।
🌷🌹"कहीं ऐसा इलाही घर न मिलेगा.."🌹🌷 इस लुभावने गुलशन के जैसा, कहीं और यह मंजर न मिलेगा। उल्फ़त से महके जहाँ हर ज़र्रा, वहां ख़ौफ़-ए-ख़ंजर न मिलेगा। महकता हुआ हो हरपल ही जहां, हर वक़्त सुबह और शाम। रूहानि
🌷🌹"पूर्ण सत्गुरू ही सर्वकला संपन्न समरथ सत्ता है..."🌹🌷 पूर्ण सत्गुरू ही सर्वकला, संपन्न समरथ सत्ता है। बिन इसकी कृपा के तो, खिले न फूल-पत्ता है। सबकुछ लेवे देवे यही,'मोहन' अलौकिक दत्ता है। अज्ञा