🌷🌹"चिराग-ए-उजास"🌹🌷
चिराग-ए-रोशन जहाँ भी हो, चहुं ओर वहां उजास रहे।
दीप तले भी तम रहे न, गर पास में दीपक प्रकाश रहे।
तम का क्या वज़ूद है 'मोहन', उजास पास न आ पाए।
दिये की जगमग रोशनी से, राह-ए-सुकूं हर श्वास रहे।
जग उजियारा हो न सकता, मन में भरा अंधेरा है।
मैं मेरी तू तेरी के भ्रम ने, इस मन में डाला डेरा है।
दीप आलोकित करने से, 'मोहन' तम मिट जाता है।
ब्रह्मज्ञान से मन अलोकित, फिर नित नया सवेरा है।
दिये से दिया जलाएं मिलकर, रोशन कुल जहान करें।
तिमिर नज़र न आए कहीं पे, यत्न सदा ये महान करें।
दीप जले जो मन में भी,'मोहन' अज्ञानता न शेष रहे।
अंदर-बाहर सब हो आलोकित, हर राह आसान करें।
दिया जले जो घर के अंदर, घर को रोशन भरपूर करे।
दिया जले जे राह-चौराहे पे, तो सारा तम काफ़ूर करे।
मन दीप जलना लाज़िम 'मोहन', भ्रम-भुलेखे दूर करे।
ब्रह्मज्ञान का दिव्य ओज़ ही, यह जीवन पुरनूर करे।
मन का दीप न यूंही जलता, सत्गुरू मेहर जरूरी है।
ब्रह्म ज्ञान की दिव्य ज्योति से, होती यह रूह नूरी है।
दिव्य दृष्टि से रब ये दिखे, 'मोहन' सब कुछ ही रब है।
प्रेम ही प्रेम महके जग में, बहती श्रद्धा और सबूरी है।
🌺शुकर ऐ मेरे रहबरां🌺
🙏धन निरंकार जी🙏